लखनऊ: कल योगी सरकार ने चार साल पूरे होने पर अपनी जो उपलब्धियाँ गिनाई हैं उनमें एक भी उपलब्धि उत्तर प्रदेश की 21.10% दलित आबादी के बारे में नहीं है। इससे स्वतः स्पष्ट है कि इन चार सालों में योगी सरकार ने इन वर्गों के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं किया है। इसके विपरीत इस अवधि में दलित उत्पीड़न में निरंतर बढ़ोतरी हुई है जैसाकि इन आंकड़ों से स्पष्ट है। राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो द्वारा प्रत्येक वर्ष दलित/आदिवासियों के विरुद्ध घटित अपराध के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2016 में 10,426, 2017 में 11,444 तथा 2018 में 11,924 तथा वर्ष 2019 में 11,829 अपराध घटित हुए जो अपराधों में निरंतर वृद्धि का प्रतीक है। 2018 में उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध अपराध देश में घटित कुल अपराध का 27.9 प्रतिशत था जबकि वर्ष 2019 में 25.8 प्रतिशत रहा। 2018 में. उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध अपराध की दर (अपराध प्रति एक लाख आबादी पर) 28.8 है जोकि राष्ट्रीय दर 21.3% से कहीं अधिक है। इसी प्रकार 2019 में उत्तर प्रदेश की यह दर 28.6 रही जोकि राष्ट्रीय दर 22.8 से 6% अधिक है. इस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर दलित उत्पीड़न के मामलों में उत्तर प्रदेश का 7वां स्थान रहा. यह भी उल्लेखनीय है कि 2016 की राष्ट्रीय अपराध दर 20.3 के मुकाबले में यह काफी अधिक है. इन आंकड़ों से एक यह बात भी उभर कर आई कि उत्तर प्रदेश में दलित एवं दलित महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि दलित महिलाओं पर अत्याचार के मामलों की संख्या और दर राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची रही है.

गत वर्ष हाथरस में दलित लड़की के मामले में दलितों के विरुद्ध अपराधों के बारे में योगी सरकार के नजरिए का अंदाज लगाया जा सकता कि कैसे सरकार नें बलात्कार को नकारने में पूरी ताकत लगा दी तथा फिर कितनी अमानवीयता से मृतका को घर वालों की रजामंदी के बिना मिट्टी का तेल डाल कर रात में ही जला दिया।

कल योगी सरकार द्वारा अपनी उपलब्धियों का जशन एक सप्ताह तक मनाए जाने के दौरान भाजपा नेताओं द्वारा दलितों के घरों में भोजन करने का कार्यक्रम भी रखा गया है जोकि महज नौटंकी है। यह ज्ञातव्य है कि इससे पहले भी भाजपा इस प्रकार् का नाटक कर चुकी है है। यह न केवल दलितों को मूर्ख बनाने बल्कि उन्हें दलित होने का एहसास कराकर अपमानित का प्रयास भी है।