लखनऊ: राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री रामदास आठवले ने कहा कि देश में हाथ से मैला ढोने वाले (मैनुअल सकैवेंजर) की संख्या 66,692 है जिसमें सबसे अधिक 37,379 (56.0%) लोग उत्तर प्रदेश में हैं। यह एक शर्मनाक स्थिति है। क्या यह योगीराज के रामराज की देन है? इस मामले में दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र है यहाँ ऐसे लोगों की संख्या 7,378 है। उत्तराखंड में इनकी संख्या 4,295 तथा असम में 4,295 है। यह स्थिति तब है जब कानून में प्रावधान है कि अगर कोई मैला ढोने का काम कराता है तो उसे सजा दी जाएगी, लेकिन केंद्र सरकार ने यह खुद स्वीकार किया है कि उन्हें इस संबंध में किसी को भी सजा दिए जाने की कोई जानकारी नहीं है।

गौरतलब है कि मैला ढोने वालों का पुनर्वास सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की “मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना (एसआरएमएस) के तहत किया जाता है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी मंत्रालय की संस्था नेशनल सफाई कर्मचारी फाईनेन्स एंड डेवलपमेंट कार्पोरेशन (एनएसकेएफडीसी) द्वारा किया जाता है।

“सबका साथ, सबका विकास” का नारा लगाने वाली मोदी सरकार ने मैला ढोने वालों के पुनर्वास की योजना के बजट में 73% की कटौती कर दी है। पिछले साल वित्त वर्ष 2020-2021 के लिए इस योजना के तहत 110 करोड़ का बजट आवंटित किया गया था, किंतु अब इसमें कटौती करके इसे केवल 30 करोड़ कर दिया गया है। यह आवंटित राशि की तुलना में 72.72 फीसदी कम है। इसके इलावा आगामी वित वर्ष 2021-2022 के लिए इस योजना का बजट 100 करोड़ रखा गया है जो पिछले साल की तुलना में कम है।

श्री आठवले ने यह भी बताया कि पिछले पाँच साल में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की मौत हुई थी।

अतः आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट हाथ से मैला उठाने वाले लोगों के पुनर्वास के लिए योजना में बजट कटौती की निंदा करता है तथा इन लोगों के पुनर्वास के लिए तुरंत कार्रवाही की मांग करता है।