लखनऊ
प्रदेश में बिजली व्यवस्था के चरमराने के लिए प्रबंधन व बिजली कर्मियों को ऊर्जा मंत्री एके शर्मा द्वारा प्रमुख वजह बताने पर वर्कर्स फ्रंट ने कहा कि ऊर्जा मंत्री का वक्तव्य सरकार की विफलता पर पर्दा डालने और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का है।

वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि बिजली महकमे के शीर्ष प्रबंधन में शासन के प्रतिनिधि हैं ऐसे में शीर्ष प्रबंधन सीधे तौर पर ऊर्जा मंत्री व उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देशन में काम करता है।

दरअसल सच्चाई यह है कि मौजूदा बिजली संकट की तात्कालिक वजह प्रदेश व केंद्र सरकार के स्तर पर संकट का आकलन करने और उससे निपटने की कार्ययोजना तैयार करने की विफलता है। केंद्रीय मंत्रियों की जो हाल में बैठक हुई है, इसे बहुत पहले होना चाहिए था, जिससे कोयला रैक की कमी नहीं होती। इसी तरह अक्टूबर में पैदा हुए कोयला-बिजली संकट से सीख लेकर योगी सरकार द्वारा कार्ययोजना का अभाव दिखता है साथ ही शासन द्वारा शीर्ष प्रबंधन के कामकाज की मानीटरिंग नहीं की गई जोकि ऊर्जा मंत्री के वक्तव्य में भी दिखता है।

इसके अलावा रूटीन रखरखाव आदि के लिए समुचित बजट भी नहीं मुहैया कराया गया।

गौरतलब है कि सरकार रखरखाव आदि में बजट की कमी व भारी घाटा की वजह बिजली विभाग को जिम्मेदार ठहरा रही है जबकि सार्वजनिक ईकाइयों से बेहद सस्ते दामों पर बिजली उत्पादन हो रहा है लेकिन सरकार ने कारपोरेट कंपनियों से उच्च दरों पर बिजली खरीद के करार किया है, इसके अलावा ऐसे समझौते भी हैं कि उत्पादन की अधिकता होने पर सरकारी बिजली घरों से थर्मल बैकिंग कर सस्ती बिजली का उत्पादन बंद किया जाता है। दरअसल कारपोरेट बिजली कंपनियों की लूट व मुनाफाखोरी ही बिजली घाटे की प्रमुख वजह है। पूरी कवायद ऊर्जा सेक्टर को कारपोरेट कंपनियों के हवाले करने का है और सरकार की यही नीति मौजूदा कोयला व बिजली संकट के लिए जिम्मेदार है। अगर ऊर्जा क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करने पर जोर होता तो आज कोयला उत्पादन में हम आत्मनिर्भर होते और विदेशी आयात पर निर्भरता नहीं रहती।