दिल्ली:
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने आज भारत के मुसलमानों से अपील जारी करते हुए कहा कि “एक मुसलमान जो नमाज़, रोज़ा और हज और ज़कात के मामले में शरिया के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य है। उसी तरह, सामाजिक मुद्दों में शरीयत के नियमों का पालन करना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है

मौलाना ने आगे कहा कि सरकार के समक्ष समान नागरिक संहिता की प्रस्तावित रूपरेखा से पता चलता है कि यह कई मामलों में शरिया कानून के खिलाफ है , इसलिए धार्मिक दृष्टि से मुसलमानों के लिए यह सर्वथा अस्वीकार्य है, इसके अतिरिक्त यह देशहित में भी नहीं है; क्योंकि भारत विभिन्न धर्मों और विभिन्न संस्कृतियों का एक संग्रह है, और यही विविधता इसकी सुंदरता है, यदि इस विविधता को समाप्त कर दिया जाता है और सब पर एक ही कानून लागू किया जाता है, तो यह आशंका है कि राष्ट्रीय एकता प्रभावित होगी। यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार ने विभिन्न अलगाववादी समुदायों को इस वादे पर राष्ट्रीय धारा में शामिल किया है कि उनके प्रथागत कानून प्रभावित नहीं होंगे, समान नागरिक संहिता से उस वादे की खिलाफवर्जी होगी। इसलिए पर्सनल लॉ के संदर्भ में विभिन्न समूहों के विचारों पर विचार करना जरूरी है और यही संविधान की भावना है।

बोर्ड ने कहा कि भारत के विधि आयोग ने कुछ साल पहले समान नागरिक संहिता के लिए एक प्रश्नावली जारी की थी, बोर्ड ने एक विस्तृत जवाब भी दाखिल किया था और बोर्ड के एक प्रतिनिधिमंडल ने आयोग के अध्यक्ष से मुलाकात कर इस पर अपने विचार व्यक्त किए थे जिन्हें विधि आयोग ने सराहा भी था, अब 14 जून को विधि आयोग ने अपनी वेबसाइट पर इस बारे में एकबार फिर एक प्रश्नावली जारी की है और पार्टियों और व्यक्तियों से अनुरोध किया है कि वेअपने विचार 14 जुलाई तक प्रस्तुत करें। इस पृष्ठभूमि में बोर्ड विशेषज्ञ अधिवक्ताओं और न्यायविदों के परामर्श से एक संक्षिप्त मसौदा बुनियादी तैयार कर रहा है, उसी के मुताबिक विभिन्न व्यक्तियों और संगठनों से जवाब देना उचित होगा, इसके अलावा, एक विस्तृत मसौदा (प्रस्तावित कानून के सभी पहलुओं की व्याख्या करते हुए) बाद में विधि आयोग को प्रस्तुत किया जाएगा।

बोर्ड हमेशा इस मुद्दे के प्रति सतर्क और जागरूक रहा है, समान नागरिक संहिता पर एक स्थायी समिति है जिसने विशेषज्ञ वकीलों का एक पैनल गठित किया है, विभिन्न गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक प्रतिनिधियों, विपक्षी नेताओं और दलितों से मिल कर इस मुद्दे पर बोर्ड के दृष्टिकोण के समर्थन हासिल की कोशिश की जा रही है और जिसमें सफलता मिल रही है.

बयान में आगे कहा गया है कि इस पृष्ठभूमि में सभी मुस्लिम संगठनों, विभिन्न व्यवसायों से जुड़े लोगों, जैसे शिक्षक, डॉक्टर, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक नेता और विशेष रूप से महिलाओं और छोटे और बड़े धार्मिक और राष्ट्रीय संगठनों से अपील है कि बोर्ड के निर्देश आने के बाद अधिक से अधिक लोगों को भारत के विधि आयोग की वेबसाइट पर जाकर समान नागरिक संहिता के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज कराएं और देशवासियों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें और उन्हें समझाएं कि यह केवल मुसलमानों की समस्या नहीं है; बल्कि इससे सभी वर्ग प्रभावित होंगे।

मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि बोर्ड आश्वासन देता है कि वह सभी स्तरों पर समान नागरिक संहिता को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेगा, इसके लिए सभी शांतिपूर्ण साधनों का उपयोग करेगा, उन्होंने कहा कि बोर्ड देश के मुसलमानों से इस बात की आशा रखता है कि इस बारे में जब भी इस बारे में कोई आवाज़ देगा, सभी उसका समर्थन करेंगे।