Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

सिर्फ कैलेंडर के बदलने से नहीं बदलेंगे हालात

(आलेख : बादल सरोज) नववर्ष की शुभकामनायें, और जैसा कि कहे जाने का रिवाज़ है उसके साथ कि, यह नया साल – 2025 – आपके लिए पिछले सभी वर्षों की अपेक्षा बेहतर
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

2025 : दिल्ली और विपक्षी एकजुटता

(आलेख : राजेंद्र शर्मा) नये साल, 2025 के संबंध में, गुजरता हुआ साल जाते-जाते कुछ महत्वपूर्ण संकेत दे गया है। इनमें प्रमुख चुनावी संकेतों पर नजर डाल ली जाए। गुजरे हुए साल
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

जनता को अधिकारहीन करने का खेल : अधिकार-आधारित मनरेगा और उसके प्रति शत्रु भाव

(आलेख : प्रभात पटनायक, अनुवाद : राजेंद्र शर्मा) फ़ासीवादी सरकारों का मकसद जनता को अधिकारहीन बनाना होता है और मोदी सरकार इसका अपवाद नहीं है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

आर्थिक असमानता : क्या भारत सरकार पिकेटी के ‘कराधान’ प्रस्ताव को मानेगी?

(आलेख : शुभम शर्मा, सुमित दहिया ; अनुवाद : संजय पराते) फ्रांसीसी अर्थशास्त्री और मशहूर किताब ‘कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी’ के लेखक थॉमस पिकेटी हाल ही में भारत आए थे।
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

बाबासाहेब अम्बेडकर : हिन्दू दक्षिणपंथी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

(आलेख : राम पुनियानी) हाल (दिसंबर 2025) में संसद में चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में एक ओर बाबासाहेब अम्बेडकर का अपमान किया, तो दूसरी ओर यह साबित
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

बाबा साहब से कौन नफरत करता है?

(आलेख : शुभम शर्मा, अनुवाद : संजय पराते) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी और भारत के गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान ने संसद में खलबली मचा दी है। शाह
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

संविधान पर बहस : बोले तो बहुत — मगर बताने के लिए कम, छुपाने के लिए ज्यादा

(आलेख : बादल सरोज) 🔵 संविधान पर हुई बहस में प्रधानमंत्री मोदी लगभग दो घंटा बोले, मगर ठीक वही बात नहीं बोली, जो बोलनी थी। लोकसभा में अपने कुल 110 मिनट के
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

हमारा संविधान, सुप्रीम कोर्ट और समाजवाद की परिभाषा

(आलेख : प्रभात पटनायक, अनुवाद : राजेंद्र शर्मा) भारतीय संविधान की उद्देशिका से ‘‘समाजवाद’’ की संज्ञा को हटाने की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, 22 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

जब न्यायाधीश ही हत्यारों की अगुवाई करने लगे!

(आलेख : महेंद्र मिश्र) संविधान ही नहीं, अब समय देश बचाने का है। पिछले दस सालों में इस सरकार ने देश को जो जख्म दिए हैं, अब वे मवाद बनकर फूटने लगे
Tweet about this on TwitterShare on LinkedInEmail this to someoneShare on FacebookShare on Whatsapp

बाबरी से मुरादाबाद वाया रतलाम : बाड़ाबंदी का अभियान

(आलेख : बादल सरोज) हादसे वक्त के गुजरने के साथ अपने आप बेअसर नहीं होते, जख्म खुद-ब-खुद नहीं भरते। इसका उलट जरूर होता है, गुनाह अगर सही तरीके से, बिना कोई रू-रियायत