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प्रणव बनते पीएम तो 2014 में न हारती कांग्रेस: सलमान खुर्शीद

नई दिल्ली। पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि अगर प्रणब मुखर्जी 2004 में पीएम बन गए होते तो कांग्रेस 2014 में नहीं हारती। प्रणब मुखर्जी की जगह मनमोहन के चयन से न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि बाहरी लोगों को भी आश्चर्य हुआ और कई लोगों का कहना है कि अगर उस समय प्रणब पीएम बन जाते तो 2014 में कांग्रेस पार्टी की हार नहीं होती। खुर्शीद ने अपनी नई किताब द अदर साइड ऑफ द माउंटेन में लिखा है, बदतरीन घटने के बाद अक्लमंदी दिखावा हमेशा आसान होता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि समूचे राष्ट्र ने नरसिंह राव सरकार (जून 1991 से मई 1996) के दौरान दिशा बदल देने वाले वित्तमंत्री के रूप में डा. मनमोहन सिंह की तारीफ की थी।

उन्होंने कहा, लेकिन जब डा. सिंह ने 1999 का लोकसभा चुनाव उस सीट से, दक्षिण दिल्ली, से चुनाव लड़ा जिसे उनके लिए देश में सबसे सुरक्षित सीट समझी गई थी तो उन्हें एक ऐसे उम्मीदवार ने परास्त कर दिया जिनका नाम बहुत लोग याद नहीं कर पाएंगे (यह भाजपा के प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा थे)। खुर्शीद ने अपनी किताब को एक शख्स का नहीं बल्कि बहुत सारे लोगों की संक्षिप्त जीवनी बताई है जो संप्रग के हिस्सा थे। बहरहाल, पूर्व विदेश मंत्री कहते हैं कि कुछ प्रारंभिक अनिच्छा के बाद, संप्रग-1 का नेतृत्व करने के लिए सिंह को चुनने के सोनिया गांधी के फैसले का न केवल व्यापक स्वागत हुआ बल्कि पांच साल बाद के चुनावी जनादेश से सही भी साबित हुआ जब हम ज्यादा बहुमत से सत्ता में वापस आए।

संप्रग-2 में विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारियां संभाल चुके खुर्शीद ने कहा कि वह खुशनसीब हैं कि उन्हें सिंह का विश्वास हासिल था। अलबत्ता सिंह ने एक बार बड़ी नरमी दिखाते हुए मीडिया के समक्ष की गई एक टिप्पणी के लिए उनसे कैफियत तलब की थी। इस टिप्पणी में उन्होंने इंगित किया था कि भारत अफगानिस्तान के लिए घातक हथियार उपलब्ध नहीं कराएगा। उन्होंने कहा, विदेश मंत्री के रूप में, ज्यादातर मामलों में मुझे खासी खुली छूट हासिल थी। प्रधानमंत्री पड़ोसी देशों में, अमेरिका की हमारी फिर से खोज, चीन के साथ सहस्राब्दी वार्ता और जापान के साथ कदम से कदम मिलाने की उत्तेजना में विशेष रूचि ले रहे थे।

खुर्शीद ने कहा, मुझे बस एक बार की याद आती है जब डा. सिंह ने उस प्रेस टिप्पणी के लिए मुझे नरमी से झिड़का था जिसमें इंगित किया गया था कि हम अफगानिस्तान को घातक हथियार प्रदान नहीं कर सकते। यह (तत्कालीन अफगान) राष्ट्रपति हामिद करजाई के लगातार आग्रह पर की गई थी, अलबत्ता उन्होंने कभी इसे मुद्दा नहीं बनाया। खुर्शीद ने महसूस किया कि अपनी उसूली रूखों के बारे में साफगोई से बोलने में कोई हर्ज नहीं है जिससे हटने की कोई संभावना नहीं है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि सैन्यकर्मियों ने मुझसे कहा था कि हमारे पास अनगिनत टैंक रिजर्व में हैं जिनकी सेना में उपयोग की उम्मीद नहीं है और जिसे बिना किसी ज्यादा खर्च के चुस्त-दुरूस्त किया जा सकता है।

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