नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान पाकिस्तान में फंसने के बाद भले ही सही-सलामत वापस लौट आए हों, पर 1971 में युद्धबंदी बनाए गए 54 भारतीयों की आज तक कोई खबर नहीं है। अभिनंदन की वतन वापसी और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के एक बयान के बाद उन 54 भारतीयों के परिजन भी ढेरों उम्मीदें बांधे हैं। दरअसल, शनिवार (दो मार्च, 2019) को सीएम ने कहा था कि वह पाक 1971 के युद्धबंदियों के होने की बात माने और उन्हें भी रिहा करे।

लापता 54 भारतीय के परिजन पिछले 48 सालों से लगातार याचिकाएं, चिट्ठियां और विरोध प्रदर्शन करते आ रहे हैं। फिर भी उन्हें युद्धबंदियों के बारे में खासा जानकारी नहीं मिली। ‘टीओआई’ की एक रिपोर्ट में लापता फ्लाइट लेफ्टिनेंट विजय वसंत तांबे की 70 वर्षीय पत्नी दमयंति के हवाले से कहा गया कि सरकार ने उनके पति को खोजने के लिए कभी ठोस कदम नहीं उठाए। शादी के महज 18 महीने बाद ही उन्हें इस मंजर का सामना करना पड़ा था।

तांबे दिल्ली में रहती हैं और वह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में खेल निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं। उन्होंने न्याय के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। उन्हीं की तरह पंजाब के मालवा क्षेत्र में चार ऐसे ही परिवार हैं, जिन्होंने अपने घर के सदस्यों को 71 की जंग में खो (लापता) दिया था। वे मानते हैं कि उनके परिजन अभी भी पाकिस्तानी जेलों में बंद हैं। यही वजह है कि वे नवजोत सिंह सिद्धू को इस बाबत चिट्ठी देने पर विचार कर रहे हैं, जो कि यह मसला पाक पीएम इमरान खान के समक्ष रखेंगे।

बठिंडा में लहरा धुरकोट गांव के निवासी हवलदार धर्म पाल सिंह बांग्लादेश की सरहद के पास तैनात थे, तभी उन्हें पाकिस्तानी सेना ने युद्धबंदी बना लिया था। घटना के बाद कुछ लोगों ने उन्हें शहीद बता दिया गया था, पर कुछ दिन बाद पाकिस्तानी जेल में पूर्व कैदी के साथ मुलाकात के बाद उसके परिजन में उम्मीद जाग उठी कि वह जिंदा हैं।

फरीदकोट के तहना गांव के सुजीत सिंह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में कॉन्सटेबल थे। वह कश्मीर के पुंछ सेक्टर में तैनात थे। उनके बेटे के मुताबिक, दिसंबर 1971 को उन्हें पाकिस्तानी रेंजर्स ने बंधक बना लिया था। पर परिजन को यकीन है कि वह कोट लखपत जेल में बंद हैं।