लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज आई0एम0आर0टी0 बिजनेस स्कूल गोमती नगर में योगदा सत्संग सोसायटी आफ इण्डिया के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। योगदा सत्संग सोसायटी की स्थापना श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा 1917 में की गई थी। इस अवसर पर स्वामी शुद्धानन्द गिरी कोषाध्यक्ष योगदा सत्संग सोसायटी आफ इण्डिया ने ‘क्रियायोग द्वारा आत्म विकास एवं चिन्ता मुक्त जीवन’ विषय पर अपना प्रवचन दिया। समारोह में ब्रह्मचारी चैतन्यानन्द जी महाराज ने ‘पावर प्वाइंट’ के माध्यम से श्री श्री परमहंस योगानन्द के जीवनवृत्त और संदेश पर संक्षिप्त प्रस्तुति दी।

राज्यपाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि जीवन और जीवन में चिंता से मुक्ति विचार का विषय है। सकारात्मक सोच मनुष्य की चिंता को दूर करती है। जब मनुष्य अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन प्रमाणिकता और ईमानदारी से करता है तो चिंता नहीं होती है। हर व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की चिंता है, धनवान को धन की चिंता है, जिसके पास खाने को बहुत कुछ है उसे पाचन की चिंता है और जिसके पास कुछ नहीं है उसे भूख की चिंता है। उन्होंने कहा कि चिंता के कारण का चिंतन करना महत्व का काम है।

श्री नाईक ने कहा कि भारतीय संस्कृति हजारों वर्ष पुरानी है। वसुधैव कुटुम्बकम् का श्लोक सार्वजनिक जीवन का चित्रण करता है। छोटे मन वाले लोग तेरा और मेरा सोचते हैं पर उदार चरित्र वाले पूरे विश्व को परिवार मानते हैं। यह कल्पना कि हम एक परिवार के हैं, सब को समाधान देती है। दूसरे का दुःख दूर करके उसे सुख पहुंचाने से मन को शांति प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में जो बातें बताई गई हैं वास्तव में वहीं समाधान देने वाली हैं।

राज्यपाल ने योगदा सत्संग सोसायटी आफ इण्डिया की प्रशंसा करते हुए कहा कि किसी भी संस्था का सौ वर्ष पूरा होना महत्वपूर्ण पड़ाव है। ऐसे कार्यक्रम से सामाजिक लाभ होता है। इस दृष्टि से योग की भूमिका महत्वपूर्ण है। योग का लक्ष्य स्वस्थ तन, स्वस्थ मन एवं स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए योग को आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जीवन में सफलता के लिए ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ की भूमिका महत्वपूर्ण है।