जमीअत उलमा हिंद की हिदायत पर कानपुर समेत जुमा को ‘‘यौमे दुआ’’ के रूप में मनाया गया

कानपुर:- इस्लाम एक सही और मुकम्मल धर्म है जिसे कयामत तक आने वाले इंसानों की रहनुमाई के लिए ब्रह्मांड के निर्माता और मालिक ने चयनित कर दिया है और यह कयामत तक बाक़ी रहेगा, अल्लाह तआला ने खुद इसकी रक्षा का दायित्व ले रखा है। यदि हम अपने आप को इस्लाम से जोड़ते हैं और इस्लामी आज्ञाओं के सांचे में अपना जीवन ढाल देते हैं, तो हम ब्रह्मांड के मालिक की सुरक्षा में आ जायेंगे। आज पूरी दुनिया में मुसलमानों की जो दुर्दशा है उसका मूल कारण इस्लाम से दूरी है, शरीअत से दूर होने की वजह से हमारे दिल कमजोर हो गए हैं, हौसले पस्त हो गए हैं, सोचने समझने की क्षमता लुप्त हो गई है। जब तक हमने इस्लाम धर्म को मजबूती से पकड़ रखा था तो सख्त से सख्त स्थितियों के बावजूद हमारे हौसले पस्त नहीं हुए, तब हमारे अंदर त्याग की भावना थी, हिम्मत और हौसला था, रूस में कम्युनिस्टों द्वारा मुसलमानों का नरसंहार और जबरदस्त अत्याचार हुआ। हालांकि ईमान वाले निराश नहीं हुए थे, उन्होंने पूरी तरह से अपने जीवन को शरीअत के अधीन कर दिया था, तब क्या हुआ ? दुनिया ने देखा कि जिस ज़माने में कुरआन का नाम लेना अपराध था, किसी के बारे में पता चलेगा तो उसे गोली मार दी जाएगी, और उस ज़माने के दौरान हजारों की संख्या उलमा तैयार हुए, हाफिज़ तैयार हुए। आसमान ने यह दृश्य भी देखा कि षिक्षक और छात्र घर के तहखानों में छिप जाते तो आलिम और हाफिज़ बन बाहर निकलते, कुरान के ऐसे हाफिज़ तैयार किये गये जिन्होंने कभी अपने जीवन में कुरान नहीं देखा था। कुरान अपने सीनों में बचाया गया था, यह सब संभव हुआ क्योंकि हमने अपने आपको इस्लाम के अधीन कर दिया था, इस्लामी आदेशों के सांचे में ढाल लिया था। इन विचारों की अभिव्यक्ति जमीअत उलेमा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष और शहर कानपुर के कार्यवाहक काजी मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक उसामा कासमी ने जामा मस्जिद अषरफाबाद जाजमऊ में जुमा की नमाज से पहले अपने संबोधन में किया।

मौलाना ने बर्मा की स्थिति पर विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुए कहा कि एक समय था जब बर्मा इस्लामी राज्य था, फिर अंग्रेजों ने उस पे कब्जा कर लिया, स्वतंत्रता आंदोलन चला तो मुसलमानों के साथ अन्य धर्मों के लोगों ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, अंग्रेजों जाने के बाद मौजूदा सरकार वहाँ के मुसलमानों पर जुल्म के पहाड़ तोड़े हुए है, हजारों गांव जला कर पूरी तरह खत्म कर दिए गए, हजारों मुसलमानों को मार डाला जा रहा है, लाखों लोग अपना घर-बार छोड़कर पलायन के लिए मजबूर हैं, भय व आतंक का नंगा नाच हो रहा है और दुनिया एक मूक तमाशाई बनी हुई है, पूरे विश्व में 5-10 इंसानों की मौत हंगामा करने वाली मानवाधिकार संगठनों कों बर्मा में मरने वाले हजारों लोगों की लाषें नहीं दिखाई दे रही हैं, कोई भी उनके लिए बात करने के लिए तैयार नहीं है।

मौलाना उसामा ने कड़ी नाराज़गी व्यक्त करते हुए सभी विश्व शक्तियों से हस्तक्षेप करने और संयुक्त राष्ट्र तुरंत बैठक बुला करके म्यांमार सरकार को हत्या, मारधाड़, अत्याचार और बर्बरता के इस बर्बर प्रक्रिया को रोकने तथा रोहंगिया मुसलमानों को नागरिकता का अधिकार बहाल करने की मांग की गई । मौलाना ओसामा ने जमीअत उलमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना सैयद महमूद मदनी की मांग का समर्थन किया कि अगर म्यांमार सरकार उत्पीड़न, सैन्य कार्रवाई से बाज़ ना आये तों संयुक्त राष्ट्र द्वारा म्यांमार में सैन्य कार्रवाई और आर्थिक प्रतिबंध लगाया जाए, साथ ही देश छोड़कर पलायन करके विभिन्न देशों में जाने वालों और शरण लेने वालों को रिफ्यूजी का दर्जा देकर उन्हें चैन से जीने का अवसर प्रदान करे। मौलाना ने भारत सरकार से विशेष रूप से कहा कि वह मजलूमों के साथ अपने पुराने और पारंपरिक मानवीय मामला जारी रखे और जो रोहंगिया मुसलमान देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहते हैं उन्हें रिफ्यूजी क़रार दे।

इसी के साथ ही जमीअत उलेमा ए हिंद के मार्गदर्शन और जमीअत उलेमा यूपी की अपील पर पूरे राज्य और देश में म्यांमार के मजलूमों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए जुमा के दिने को उनके लिए ‘‘यौमे दुआ’’ के रूप में मनाया गया और जुमा की नमाज में खासकर दुआ का आयोजन किया गया। प्रांतीय अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल उल हक उसामा कासमी के अनुरोध पर, जमीयत उलेमा के सभी स्थानीय, शहरी और जिला इकाइयों में विशेष रूप से दुआ का आयोजन किया गया था।