-राजेश सचान, युवा मंच

राजेश सचान, युवा मंच

कोराना संकट से निपटने के लिए योगी माडल को प्रोजेक्ट किया जा रहा है। संकट को अवसर में बदलने के संकल्प की बात मुख्यमंत्री कर रहे हैं। प्रवासी मजदूरों को प्रदेश में ही रोजगार के भरपूर अवसर मुहैया कराने की वकालत की जा रही है। स्किल मैपिंग चार्ट तैयार करने के आदेश दिए गए हैं और प्रदेश में भारी निवेश होने व रोजगार के अवसर पैदा होने की बातें की जा रही हैं। कल भी इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन और राष्ट्रीय रीयल एस्टेट विकास परिषद से सरकार ने एग्रीमेंट किया है बताया जा रहा है कि इससे शुरुआत में क्रमशः 5 लाख व 2.5 लाख रोजगार मिलेगा। हाल में मुख्यमंत्री ने वीडियो काफ्रेंस के माध्यम से इंवेस्टर्स को संबोधित किया था जिसमें बताया गया कि 100 अमरीकी कंपनियों ने भविष्य में इंवेस्टमेंट के लिए रूचि दिखाई है। इसी तरह मनरेगा में 50 लाख रोजगार देने का वादा किया गया है। इन तमाम घोषणाओं को समझने के लिए पहले की घोषणाओं और प्रदेश में रोजगार की क्या स्थिति है का अवलोकन करना जरूरी है।

21-22 फरवरी 2018 को लखनऊ में इंवेस्टर्स मीट हुई थी, उसे बहुत ही सफल बताया गया था, 500 कंपनियों ने हिस्सेदारी की और 1045 एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे। 4.28 लाख करोड़ रू का इंवेस्टमेंट और 28 लाख रोजगार पैदा होने का लक्ष्य रखा गया था। उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन के तहत एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करने/आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया था। इसी तरह बुंदेलखंड में डिफेंस कारिडोर में 20 हजार के इंवेस्टमेंट और 2.8 लाख जांब, सहित अनगिनत बार इंवेस्टमेंट और लाखों रोजगार सृजित करने की घोषणाएं कर चुके हैं। इन सभी इंवेस्टमेंट से कितने रोजगार सृजित हुए, इसका अंदाज़ा सिर्फ सरकार के इस एक आंकड़े से लगाया जा सकता है। फरवरी2018 में बहुप्रचारित इंवेस्टमेंट मीट की प्रगति रिपोर्ट देखें। उत्तर प्रदेश सरकार के उद्योग मंत्री सतीश महाना ने बताया कि 1045 प्रोजेक्ट्स में 90 से जनवरी 2020 से कमर्शियल उत्पादन शुरू हो जायेगा। इन प्रोजेक्ट्स में कुल इंवेस्टमेंट 39000 करोड़ है जो 4.28 लाख करोड़ लक्ष्य के सापेक्ष 10 फीसदी भी नहीं है। इसके अलावा 161 प्रगति पर हैं। इसके अलावा इंवेस्टमेंट के जो समझौते हुए हैं उनके बारे में तो कहीं कोई हिसाब किताब ही नहीं है। उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन में कितने युवा प्रशिक्षण पाये और कितने युवाओं को रोजगार मिला या आत्मनिर्भर हुए, इसकी असलियत से सब लोग वाकिफ ही हैं। इसी तरह का हश्र बहुचर्चित एक जिला एक उत्पाद जैसे प्रोजेक्ट का भी हुआ है। मनरेगा योजना तक में रोजगार का औसत बेहद कम है।

स्पष्ट है कि सरकार चाहे जितनी बड़ी बड़ी बाते करे, लेकिन प्रदेश में योगी राज में रोजगार के अवसरों में भारी कमी आयी है। सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकानामी (सीएमआइई) द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 में 2018 की उसी अवधि में 5.91% के सापेक्ष बेरोजगारी की दर बढ़कर 9.95% यानी करीब दुगना हो गई, जोकि राष्ट्रीय बेरोजगारी की दर से भी काफी ज्यादा थी। लेकिन प्रदेश में रोजगार के अभूतपूर्व संकट के बावजूद सरकार का प्रोपेगैंडा जोरों से चल रहा है कि 70 लाख नये रोजगार सृजन और खाली पदों को भरने का भाजपा ने जो चुनावी वादा अपने मैनीफेस्टो में किया था, उसका बड़ा हिस्सा पूरा हो गया है। इससे ज्यादा हास्यास्पद क्या होगा? कोराना संकट के मद्देनजर प्रदेश में नये रोजगार पैदा करने की बात की जा रही है लेकिन कोराना संकट के चलते ही बैकलाग भर्तियों पर रोक लगा दी गई, वैसे पहले ही भर्ती प्रक्रिया ठप जैसी ही थी।

नये रोजगार की घोषणाएं तो पहले की तमाम घोषणाओं की तरह हवाहवाई से ज्यादा दिखाई नहीं दे रही हैं। मनरेगा में भी रूटीन काम ज्यादा कराया नहीं जा रहा है। इसके अलावा कोराना महामारी से उद्योगों में जो संकट आया है खासकर एमएसएमई सेक्टर, कुटीर उद्योगों आदि में उससे उबारने का कोई रोडमैप नहीं दिखता है।अकेले आगरा में फुटवियर इंडस्ट्री से 5 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है, लेकिन पहले से ही यह इंडस्ट्री संकट में थी खासकर जो छोटे कारोबारी हैं, अब आगरा में जिस तरह का कोराना महामारी है उससे इस इंडस्ट्री में आधे से ज्यादा लोग बेरोजगार हो जायेंगे, लेकिन सरकार के पास इस इंडस्ट्री को पटरी पर लाने के लिए किसी तरह की योजना नहीं है।

जिस तरह प्रदेश में रोजगार और इंवेस्टमेंट को लेकर बड़ी बड़ी बाते की जा रही हैं, उसी तरह पूर्व में कोराना संकट से निपटने के आगरा माडल का प्रचार किया गया था। खुद भाजपा के मेयर ने मुख्यमंत्री से गुहार लगाई लेकिन बड़े कदम उठा कर महामारी की रोकथाम का उपाय नहीं किया गया, आज हालात हमारे सामने हैं।

इसलिए योगी माडल का जो प्रचार है उसकी जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है। श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर मजदूरों के अधिकारों पर हमला किया जा रहा है, आम तौर पर प्रदेश में पहले से नागरिक अधिकारों को रौंदा जा रहा है। सब मिला जुला कर बातें अधिक हो रही हैं, जमीन पर काम कम हो रहा है।