एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

इस विषय पर कुछ लिखने से पहले इस चित्र पर कुछ चर्चा ज़रूरी है. जैसाकि आप देख रहे हैं कि हेलीकापटर से नीचे उतर रहा काले चश्मे और नीले गमछे वाला व्यक्ति चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ़ रावण है और नीचे उसकी अगुवाई करने वाला बिहार का एक हत्यारोपी नेता पप्पू यादव है. यह सीन संभवतया बिहार के पटना का है. इस बार बिहार चुनाव में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (जअपा) तथा चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (आसपा) नें गठबधन किया है.

चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले का है तथा भीम आर्मी तथा आज़ाद समाज पार्टी का अध्यक्ष है. पप्पू यादव उर्फ़ राजेश रंजन अब तक चार बार 1991,1996,1999 तथा 2004 में स्वंतत्र, सपा, लोक जनता पार्टी तथा आरजेडी पार्टी से लोक सभा का चुनाव जीत चुका है. इस चुनाव में पप्पू यादव ने पीडीए (प्रगतिशील लोकतान्त्रिक गठबंधन) बनाया है जिसमें उसकी अपनी पार्टी के इलावा चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी तथा एसडीपीआई है. यह गठबंधन 150 सीटों पर चुनाव लड़ने तथा 50-60 सीटें जीतने का दावा कर रहा है. इस गठबंधन ने पप्पू यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया है. अभी गठबंधन का चुनावी घोषणा पत्र जारी होना बाकी है. एक घोषणा में कहा गया है कि यदि उनकी सरकार बनी तो व्यापारियों से कोई भी टैक्स नहीं लिया जायेगा.

उपरोक्त संक्षिप्त परिचय के बाद अब इस लेख के शीर्षक पर चर्चा पर आते हैं. जैसाकि आप अवगत हैं कि चन्द्र शेखर सहारनपुर में शब्बीरपुर गाँव में दलितों पर हिंसा के मामले में चर्चा में आया था. वहां पर पुलिस के साथ मजामत के मामले में वह तथा उसके कई साथी गिरफ्तार हुए थे और चंद्रशेखर पर योगी सरकार ने रासुका लगा दिया था परन्तु बाद में उसे अचानक हटा लिया गया और उसे रिहा कर दिया गया. यह उल्लेखनीय है कि उसे जेल से रिहा कराने के लिए सहारनपुर के डीएम तथा एसपी खुद रात में गए थे जोकि एक असामान्य घटना है.

इसके बाद वह पिछले वर्ष दिल्ली में फिर चर्चा में आया था जब रविदास मंदिर के मामले में पुलिस के साथ टकराहट तथा तोड़फोड़ के मामले में वह तथा उसके साथी गिरफ्तार हो गए थे. काफी दिन जेल में रहने के बाद वह रिहा हो गया था. इसके बाद हाल में वह हाथरस में दलित लड़की के साथ बलात्कार एवं हत्या के मामले में प्रेस में छपा था. इसी साल ही उसने आजाद समाज पार्टी- कांशी राम नाम से एक राजनीतिक पार्टी भी बनाई है. वह अपने आप को कांशी राम का सच्चा उतराधिकारी कहता है और उसके मिशन को ही आगे बढाने की बात करता है. वह मायवती को बुआ कहता है जबकि मायवती का कहना है वह ऐसा जबरदस्ती कर रहा है और बसपा का उससे कुछ लेना देना नहीं है.

चंद्रशेखर ने अभी तक अपनी पार्टी का कोई भी एजंडा प्रकाशित नहीं किया है कि दलितों के उत्थान के लिए उसकी क्या कार्य योजना है. अभी तक वह केवल कांशी राम के मिशन को ही आगे बढाने की बात कर रहा है. यह सर्विदित है कि कांशी राम का मिशन तो किसी भी तरह से सत्ता प्राप्त करना था जिसके लिए वह अवसरवादी एवं सिद्धान्तहीन होने में भी गौरव महसूस करते थे. इसी लिए उनके जीवन काल में ही बसपा ने दलितों की धुर विरोधी पार्टी भाजपा के साथ तीन बार हाथ मिला कर मायावती को मुख्य मंत्री बनवाया था. इससे आम दलित को तो कोई लाभ नहीं हुआ बल्कि कुछ दलालों को पैसा कमाने का अवसर ज़रूर मिला जिसमें मायवती भी शामिल है. इसके इलावा भाजपा ने उत्तर प्रदेश में बसपा को समर्थन देकर अपनी कमज़ोर स्थिति को मज़बूत कर लिया. अगर गौर से देखा जाये तो उत्तर भारत में भाजपा को मज़बूत करने का मुख्य श्रेय कांशी राम/मायावती को ही जाता है

यह भी विचारणीय है कि कांशी राम/मायावती, उदित राज और राम विलास पासवान जैसे दलित नेता वर्तमान राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी की बात ही करते रहे हैं जोकि उन्हें कुछ हद तक मिली भी. परन्तु क्या इससे आम दलित की हालत में कोई सुधार आया. इसका उत्तर हाँ में तो बिलकुल नहीं हो सकता है. इससे स्पष्ट है दलितों का उत्थान वर्तमान सत्ता में हिस्सेदारी से नहीं बल्कि वर्तमान व्यवस्था में रेडिकल परिवर्तन करके ही आ सकता है. इसके लिए दलित राजनीति के लिए एक रेडिकल एजंडा अपनाना ज़रूरी है जो भूमि आवंटन, रोज़गार, समान शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ, कृषि का विकास तथा समाजवादी व्यवस्था की स्थापना से ही संभव है. अतः चंद्रशेखर जब कांशी राम के सत्तावादी मिशन को ही आगे बढाने की बात करता है तो विचारणीय है कि यदि उसे सत्ता में कुछ हिस्सेदारी मिल भी जाये तो क्या इससे दलितों का कोई कल्याण हो पायेगा.

यह भी सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश में कांशी राम/ मायवती जिन गुंडे बदमाशों को टिकट बेचते थे, वे जीतने के बाद दलितों का कोई भी काम नहीं करते थे. इसके विपरीत जब वे दलितों पर अत्याचार करते थे तो मायावती उनको सजा दिलाने की बजाए उनका बचाव ही करती थी जैसाकि आज़मगढ़ में दलित इंज़ीनियर जंगली राम की बसपा नेता द्वारा फर्जी बिलों का सत्यापन न करने पर पीट पीट कर हत्या तथा फैजाबाद में बसपा विधायक आनंद सेन यादव द्वारा दलित लड़की शशि की हत्या के मामले में देखा गया था. इसी तरह बसपा के बाहुबली नेता धनंजय सिंह 2007 में जौनपुर के चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी सोनकर की हत्या में आरोपी रहा हैं. इतना ही नहीं मायवती सरकार ने इसे हत्या न मान कर आत्महत्या करार दे दिया था.

यह भी देखा गया था कि बसपा के दौर में दलितों की जिन दलित विरोधी/ माफियायों/गुंडों से लड़ाई थी मायावती ने उन्हें ही टिकट देकर तथा दलितों का वोट दिला कर जितवाया जिससे दलितो का तो कोई भला नहीं हुआ जबकि गुंडे बदमाश बसपा का संरक्षण पा कर अधिक फल फूल गए. अतः दलितों को दूसरों के हेलीकापटर से चलने वाले नेताओं से सावधान रहना चाहिए और उनके मुद्दों के लिए इमानदारी से लड़ने वाली पार्टी का साथ देना चाहिए. आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट जो काफी लम्बे समय से जनवादी राजनीति द्वारा दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, मजदूरों किसानों, महिलाओं के मुद्दों पर प्रभावी ढंग से लड़ रहा है, उनके लिए एक बेहतर एवं कारगर विकल्प हो सकता है जिस पर उन्हें गंभीरता से विचार करना चाहिए.

बिहार में पप्पू यादव के साथ गठबंधन के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि यह गठबंधन किसी कार्यक्रम अथवा विचारधारा को लेकर नहीं बल्कि केवल अवसरवादी चुनावी गठबंधन है. वैसे भी बिहार में चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी (आसपा) की कोई ख़ास उपस्थिति नहीं है बल्कि केवल भीम आर्मी की कुछ सदस्यता पर ही आधारित है जिससे कुछ दलित नौजवान जुड़े हुए हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि आसपा एक बिलकुल नयी पार्टी है जिसके पास बहुत अधिक फंड होने की उम्मीद नहीं की जा सकती. फिर आसपा के अध्यक्ष का हेलीकापटर जिसका एक घंटे का किराया कम से कम एक लाख है, का खर्चा कौन उठा रहा है. बहरहाल जो भी यह खर्चा उठा रहा है वह दलितों नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए ही कर रहा है.

अतः दलितों को यह सोचना चाहिए कि बिना किसी परिवर्तनकामी दलित एजंडा के केवल सत्ता में किसी भी तरह से हिस्सेदारी प्राप्त करने में लगा कोई दलित नेता उनका कुछ उद्धार कर सकेगा. आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट एक परिवर्तनकामी एजंडा लेकर जनवादी राजनीति के माध्यम से एक वैकल्पिक राजनीति स्थापित करने में लगा हुआ है जिसमें सभी जनवादी लोकतान्त्रिक व्यक्तियों/ संगठनों एवं पार्टियों का स्वागत है.