एस.आर. दारापुरी आई.पी.एस. (से.नि.)

वर्तमान में आर.एस.एस. धर्म परिवर्तित हिन्दुओं को घर वापसी के बहाने जबरन हिन्दू बनाने पर तुली हुई है. पर वे कभी भी ईमानदारी से इस सच्च को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि इन लोगों ने हिन्दू धर्म उन के जातिगत अत्याचारों और भेदभाव के कारण ही छोड़ा था और आगे भी छोड़ते रहेंगे. हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है. वह कोई भी धर्म छोड़ने या धारण करने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र है. डॉ. आंबेडकर के अनुसारे धर्म एक कपड़े की तरह है जिसे कभी भी बदला जा सकता है, फेंका जा सकता है. उनकी यह अवधारणा भी बहुत सही है कि धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए. डॉ. आंबेडकर का यह भी कहना था कि जो धर्म व्यक्ति को जन्म से नीच बना कर रखे वह धर्म नहीं बल्कि गुलाम बनाए कर रखने का षड्यंत्र है.

आर.एस.एस. कानून बना कर धर्म परिवर्तन को इस लिए रोकना चाह रही है क्योंकि दलित और निचली जातियों के लोग हिंदुओं के अत्याचार से दुखी होकर हिन्दू धर्म छोड़ रहे हैं जिस से हिंदुओं की आबादी लगातार कम हो रही है. विदेशों में बसे हिंदुओं की बड़ी संख्या भी हिन्दू धर्म छोड़ रही है. हिंदुओं की असली चिंता हिन्दू धर्म नहीं बल्कि उन के धर्म से तेजी से हो रहा पलायन है. वैसे भी इस नरक में कौन नीच बन कर रहना चाहेगा? हिंदुओं की असली चिंता हिन्दू धर्म नहीं बल्कि जाति व्यवस्था से दुखी हो कर इसे छोड़ने के कारण निरंतर घट रही आबादी है.

पिछले 60 वर्षों में डॉ. आंबेडकर के आवाहन पर लाखों लाखों दलितों ने हिन्दू धर्म को छोड़ कर बौद्ध धम्म में अपनी वापसी की है क्योंकि डॉ. आंबेडकर के अनुसार वर्तमान अछूत पूर्व में बौद्ध थे और हिंदुओं ने उन्हें जबरदस्ती अछूत बनाया था और उन्हें निकृष्ट पेशे करने के लिए बाध्य किया था. अब दलित हिंदुओं द्वारा अपने ऊपर किये गए अत्याचारों से पूरी तरह अवगत हो चुके हैं और वे पुनः हिन्दू धर्म के नरक में जाने के लिए तैयार नहीं हैं. बाबासाहेब ने उन्हें बौद्ध धम्म का मुक्ति मार्ग दिखा दिया है जिस पर वे तेजी से अग्रसर हो रहे हैं.

यह देखा गया है कि जिन जिन राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में धर्म परिवर्तन सम्बन्धी कानून बना है उस का हिन्दुत्ववादी खुल कर दुरूपयोग करते हैं और उस में उन्हें हिंदुत्व मानसिकता से ग्रस्त प्रशासन का पूरा सहयोग रहता है. इस का सब से ताजा उदाहरण गुजरात है जहाँ कुछ समय पहले मोदी राज में दलितों द्वारा धर्म परिवर्तन समारोह आयोजित करने में प्रशासन द्वारा कितनी बाधाएं पैदा की गयी थीं. परंतु इसके बावजूद दलितों ने बहुत बड़ी संख्या में दलितों ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धम्म में वापसी कि थी. अतः धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने सम्बन्धी यदि कोई कानून बनता है तो उसका सब से बड़ा खामियाजा दलितों को ही भुगतना पड़ेगा क्योंकि उन के बौद्ध धम्म आन्दोलन पर भी रोक लग जायेगी. यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि शायद कुछ लोग ही होंगें जिन्होंने दबाव अथवा लालच में धर्म परिवर्तन किया हो. वरना सभी लोगों ने स्वेच्छा से ही धर्म परिवर्तन किया है. यदि यह सत्य भी है तो हिन्दू भी इस का अपवाद नहीं हैं. कौन नहीं जानता कि हिंदुओं ने बौद्धों का कितना कत्ल-ए-आम किया है और उन्हें जबरन हिन्दू बनाया है. उन्होंने कितने बौद्ध मंदिरों को जबरन हिन्दू मंदिरों में बदला है जिस के प्रमाण आज भी मौजूद हैं. क्या बद्री नाथ मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, तिरुपति मंदिर बुद्ध मंदिर नहीं हैं? दूसरों पर आरोप लगाने से पहले हिदुओं को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए. बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी.

अतः यह आवश्यक है कि आर.एस.एस. की धर्म परिवर्तन पर कानून बना कर रोक लगाने की मांग का सभी को कड़ा विरोध करना चाहिए और सड़कों पर उतरना चाहिए ताकि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा हो सके. भारत कोई हिन्दू राष्ट्र नहीं बल्कि एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यदि हिन्दू बहुसंख्यक गैर-हिंदुओं पर इसी तरह से आतंक फैलायेंगे तो इस के गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं.

पिछले कुछ समय में भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश तथा हरियाणा में धर्म परिवर्तन रोकने हेतु कानून बनाए गए हैं जिनमें शासन की अनुमति के बिना धर्म परिवर्तन करने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इन में से उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के कानूनों को संविधान विरोधी होने के कारण रद्द करने हेतु जनहित याचिका दायर की गई है। उम्मीद है कि यह सभी कानून रद्द हो जाएंगे। इसी बीच आरएसएस के एक वकील द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन को देश के लिए बड़ा खतरा बता कर केंद्र सरकार को धर्म परिवर्तन रोकने हेतु कानून बनाने के लिए निर्देशित करने का अनुरोध किया गया है। दुर्भाग्य उस बेंच में एक जज साहब हैं जो इसके पक्षधर दिखाई देते हैं। इसका भी सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया जा रहा है। इस मुद्दे पर दलितों तथा अन्य सभी अल्प संख्यकों को सतर्क रहने तथा इसका सुप्रीम कोर्ट में विरोध करने की जरूरत है।