-एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा गत वर्ष पारित उत्तर प्रदेश धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून 2020 न केवल अल्पसंख्यक बल्कि घोर दलित विरोधी भी है। यह कानून न केवल असंवैधानिक है बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण भी करता है। यद्यपि इसे तथाकथित लव-जिहाद को रोकने के नाम पर बनाया गया है बल्कि इसका सबसे बड़ा निशाना मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, जैन के साथ साथ बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलित भी होंगे। वास्तव में यह कानून आरएसएस की हिन्दू राष्ट्र की हिन्दुत्व की अवधारणा को मूर्तरूप देने के ध्येय से ही बनाया गया है। उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश, उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने भी ऐसा ही कानून बनाया है बल्कि हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी इसे बनाने की घोषणा कर दी है। गुजरात में यह कानून पहले से ही मौजूद है परंतु उसके प्रावधान इतने कठोर नहीं थे जितने कि इन कानूनों के हैं।

यद्यपि इस कानून को बनाने के पीछे प्रचारित उद्देश्य हिन्दू औरतों की मुसलमान पुरुषों से धर्म परिवर्तन करवा कर शादियों को रोकना है परंतु वास्तव में इसका उद्देश्य सभी प्रकार के धर्म परिवर्तनों पर रोक लगाना है। इस कानून के उद्देश्य में स्पष्ट तौर पर अंकित है कि इसका उद्देश्य मिथ्या, झूठ, जबरन, प्रभाव दिखाकर, धमकाकर, लालच देकर, विवाह के नाम पर या धोखे से किए या कराए गए धर्म परिवर्तन को अपराध की श्रेणी में लाना है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इस कानून का मुख्य ध्येय हिन्दू धर्म को छोड़ कर शेष सभी धर्मों में परिवर्तन को रोकना है जबकि हमारा इतिहास बताता है कि हमारे देश में सदियों से विभिन्न धर्मों का आगमन होता रहा है और लोग धर्म परिवर्तन करते रहे हैं। ऐसा कानूनी प्रतिबंध लग जाने से देश में हिन्दू धर्म को छोड़ कर शेष सभी धर्मों का विकास रुक जाएगा। इसका मुख्य ध्येय देश को हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है और शेष धर्मावलंबियों को कमजोर/सीमित करके हिन्दुत्व के अधीन लाना है जोकि आरएसएस का घोषित एजंडा है।

यह सर्वविदित है का हमारा देश एक धर्म निरपेक्ष एवं लोकतान्त्रिक राष्ट्र है और हमारे संविधान में सभी नागरिकों को संविधान की धारा 21 के अंतर्गत जीवन एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार है। इस अधिकार के अंतर्गत हरेक व्यक्ति को अपनी पसंद की शादी करने का अधिकार प्राप्त है परंतु उपरोक्त कानून इस पर यह प्रतिबंध लगाता है कि कोई गैर हिन्दू किसी हिन्दू औरत से शादी नहीं कर सकता यदि उसमें शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन किया गया है। इस प्रकार राज्य व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं निजता के अधिकार का अतिक्रमण करता है। इस मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय बार बार कह चुके हैं कि यह नागरिकों के दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है और रद्द करने योग्य है। परंतु इसके बावजूद भी योगी सरकार अंतर-धार्मिक शादियों के लिए लोगों को जेल में डाल रही है। यह कार्रवाही पूर्णतया गैर कानूनी है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और सरकार का फासीवादी कृत्य है।

संविधान की धारा 25 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है जिसमें अन्तःकरण की और धर्म के आबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार निहित है। परंतु वर्तमान कानून इस स्वतंत्रता को पूर्णतया बाधित कर देता है क्योंकि इस में राज्य की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन नहीं कर सकता। इस प्रकार यह कानून नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को पूर्णतया समाप्त कर देता है। इससे स्पष्ट है कि इस कानून का मुख्य उद्देश्य सभी धर्मों के प्रचार प्रसार पर प्रतिबंध लगा कर केवल हिन्दू धर्म को स्थापित करना है जैसी कि आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा है।

अगर देखा जाए तो जब से केंद्र तथा राज्यों में भाजपा की सरकारें आई हैं तब से मुसलमानों तथा ईसाइयों पर हिंदुत्वादियों के हमले तेज हुए हैं। वर्ष 2019 में देश में उत्तर प्रदेश में ईसाईयों पर सबसे अधिक हमले हुए हैं। इसी प्रकार मुसलमानों का उत्पीड़न भी चरमसीमा पर है। इसका परिणाम यह है कि न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी ये लोग अपने सामान्य धार्मिक कार्यकलाप भी आसानी से सम्पन्न नहीं कर पा रहे हैं। इससे मुसलमानों तथा ईसाइयों द्वारा धर्म परिवर्तन तो लगभग बंद ही हो गया है। इसके विपरीत दलित वर्ग डा. अंबेडकर के बौद्ध धम्म परिवर्तन के आंदोलन से प्रेरित हो कर लगातार धर्म परिवर्तन करता आ रहा है जिसका परिणाम यह है कि भारत में बौद्धों की जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है। 2011 की जनगणना में यह देश की कुल आबादी का 0.7% हो गई है। यह भी ज्ञातव्य है दलितों के लिए बौद्ध धम्म परिवर्तन उनकी मुक्ति का आंदोलन है। यह एक ऐतिहासिक सच है कि भारत में ब्राह्मण धर्म और बौद्ध धम्म में पुराना संघर्ष रहा है। बाबासाहेब ने तो भारत के इतिहास को बौद्ध धम्म और ब्राह्मण धर्म के संघर्ष का इतिहास कहा है। उन्होंने बौद्ध धम्म के उद्भव को क्रांति और ब्राह्मण धर्म के पुनरुदभव को प्रतिक्रांति के रूप में चिन्हित किया है।

यह भी एक सच्चाई है कि देश में अगर आरएसएस के हिन्दुत्व के विरुद्ध कोई वर्ग मजबूती से खड़ा हो रहा है तो वह दलित वर्ग ही है जो बाबासाहेब की जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज की स्थापना की अवधारणा से लैस है। बाबासाहेब ने इस उद्देश्य की प्राप्ति केवल बौद्ध धम्म के माध्यम से ही संभव हो सकती है। इस प्रकार हिन्दुत्ववादी ऐसे कानूनों के माध्यम से दलित वर्ग के बौद्ध धम्म आंदोलन को अवरुद्ध करके उन्हें जबरन हिन्दू बनाए रख कर अपनी ब्राह्मणवादी वर्ण व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं। अतः इन कानूनों का अगला सबसे बड़ा निशाना दलित ही होंगे। ऐसी परिस्थिति में अन्य अल्पसंख्यकों के साथ साथ दलितों को हिंदुत्ववादियों के इस हमले को पहचानना होगा और इसका सभी संभव प्रतिरोध करना होगा। इसके लिये इस कानून को उच्च न्यायालय में चुनौती देने के साथ साथ इसके विरोध में जनमत भी बनाना होगा और आरएसएस/भाजपा के राजनीतिक आधिपत्य को भी समाप्त करने के लिए धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक एवं प्रगतिशील ताकतों के साथ एकताबद्ध होना होगा। यदि इस समय दलित वर्ग चूक किया गया तो फिर पुष्यमित्र शुंग के युग के दमन की पुनरावृति होना अवश्यंभावी है।