नई दिल्ली: केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आंदोलन जारी है। सरकार और किसानों में गतिरोध को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यीय कमेटी बनाई थी। इस कमेटी से भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह मान ने खुद को अलग कर लिया है।

मान का था विरोध
कमेटी गठित करने के बाद ही भूपिंदर सिंह मान के नाम का किसान विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि भूपिंदर सिंह मान पहले ही तीनों कृषि कानून का समर्थन कर चुके हैं।

किसानों हितों से समझौता नहीं
भूपेंद्र सिंह मान ने एक बयान जारी कर कहा है कि मैं कृषि कानूनों पर किसान यूनियनों के साथ बातचीत शुरू करने के लिए 4 सदस्यीय समिति में नामित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का आभारी हूं। एक किसान और खुद यूनियन लीडर के रूप में, खेत संघों और आम जनता के बीच प्रचलित भावनाओं और आशंकाओं को देखते हुए, मैं पंजाब या किसानों के हितों से समझौता नहीं कर सकता हूं। मैं खुद को समिति से हटा रहा हूं और मैं हमेशा अपने किसानों और पंजाब के साथ खड़ा रहूंगा।

कृषि कानूनों का कर चुके हैं समर्थन
कभी कांग्रेस पृष्ठभूमि के किसान नेता रहे 82 वर्षीय भूपिंदर सिंह मान पाला बदल कर इन दिनों भाजपा के पाले में हैं। अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के चेयरमैन मान को वीपी सिंह के शासनकाल में राष्ट्रपति ने 1990 में राज्यसभा में नामांकित किया था। पहले मान को कृषि कानूनों पर कुछ आपत्तियां हैं। उनकी समिति ने 14 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कुछ आपत्तियों के साथ कृषि कानूनों का समर्थन किया था। पत्र में लिखा था, ‘आज भारत की कृषि व्यवस्था को मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्‍व में जो तीन कानून पारित किए गए हैं हम उन कानूनों के पक्ष में सरकार का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं।’

सुप्रीम कोर्ट ने गठित की है कमिटी
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी थी और एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और अनिल घनवंत शामिल हैं। इस कमेटी से भूपेंद्र सिंह मान ने खुद को अलग कर लिया है। कमेटी का गठन इसलिए किया है कि यह कमेटी सरकार और किसानों के बीच कानूनों पर जारी विवाद को समझेगी और अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को ही सौंपेगी। जब तक कमेटी की रिपोर्ट नहीं आयेगी तब तक कृषि कानूनों के अमल पर रोक रहेगी।