-एस.आर. दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

हाल में राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो द्वारा क्राईम इन इंडिया-2019 रिपोर्ट जारी की गयी है. इस रिपोर्ट में वर्ष 2019 में पूरे देश में आदिवासी (जनजातियाँ) उत्पीड़न के विरुद्ध अपराध के जो आंकड़े छपे हैं उनसे यह उभर कर आया है कि इसमें उत्तर प्रदेश पूरे देश में सबसे आगे है. उत्तर प्रदेश की आदिवासी आबादी देश की आबादी का 0.6 % प्रतिशत है. रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2019 में आदिवासियों के विरुद्ध उत्पीड़न के कुल 8,257 अपराध घटित हुए जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में 721 अपराध घटित हुए जो कि राष्ट्रीय स्तर पर कुल घटित अपराध का 8.7 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों की आबादी केवल 0.6% प्रतिशत है. इस अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर प्रति एक लाख आदिवासी आबादी पर घटित अपराध की दर 7.9 रही जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 63.6 रही जोकि राष्ट्रीय दर से 56% अधिक है. इस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी उत्पीडन के मामले में उत्तर प्रदेश का देश में पहला स्थान है. इन आंकड़ों से एक बात उभर कर आई है कि उत्तर प्रदेश में आदिवासी एवं आदिवासी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि आदिवासी महिलाओं पर अत्याचार के मामलों की संख्या और दर राष्ट्रीय दर से बहुत ऊँची है.

अब अगर आदिवासियों पर राष्ट्र स्तर पर तथा उत्तर प्रदेश में घटित अपराधों के श्रेणीवार आंकड़ों का विश्लेषण किया जाये तो स्थिति निम्न प्रकार है:-
एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम(आईपीसी सहित) के अपराध: वर्ष 2019 में पूरे देश में इस अधिनियम के अंतर्गत 7,815 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 705 अपराध घटित हुए जो राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध का लगभग 9% है. इन अपराधों की राष्ट्रीय दर (प्रति 1 लाख आबादी पर) 7.5 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 62.2 थी जोकि बहुत अधिक है. इस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर इन अपराधों के मामलों में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री प्रदेश के अपराध एवं अपराधमुक्त कर देने का दावा कर रहे हैं.

हत्या: इस वर्ष में पूरे देश में 182 तथा अकेले उत्तर प्रदेश में 34 हत्याएं हुयीं जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध का लगभग 15% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.2 के विपरीत उत्तर प्रदेश की दर 0.4 रही. इसमें राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश का दूसरा स्थान है. इससे स्पष्ट है कि आदिवासी हत्यायों के मामले में उत्तर प्रदेश काफी आगे है. पिछले वर्ष सोनभद्र जिले में भूमि को लेकर 10 आदिवासियों की हत्या एक ज्वलंत उदाहरण है.

महिलाओं को अपहरण धारा (363,……..369 IPC): इस शीर्षक के अंतर्गत पूरे देश में 153 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 15 मामले रहे जोकि देश में कुल अपराध का 9.8% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.1 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 1.3 रही जो राष्ट्रीय दर से काफी ऊँची है.

महिलाओं का अपहरण (धारा 363): इस शीर्षक के अंतर्गत पूरे देश में 78 अपराध घटित हुए जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में 12 मामले रहे जोकि देश में कुल अपराध का 15.4% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.1 थी जबकि उत्तर प्रदेश की यह दर 0.2 रही जो राष्ट्रीय दर से दोगुनी है.

महिलाओं का विवाह के लिए अपहरण (366) : वर्ष 2019 में पूरे देश में विवाह के लिए अपहरण के कुल 54 मामले घटित हुए जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में 13 अपराध घटित हुए जोकि देश में कुल अपराध का 24% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 0.1 के विपरीत उत्तर प्रदेश की यह दर 1.1 रही जो कि पूरे देश में सब से ऊँची है.

बलात्कार (धारा 376) : वर्ष 2019 में पूरे देश में आदिवासी महिलाओं के बलात्कार के 1,110 अपराध घटित हुए जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में 35 मामले दर्ज हुए जोकि राष्ट्रीय स्तर पर घटित कुल अपराध का 3.1% है. इस अपराध की राष्ट्रीय दर 1.1 के विपरीत उत्तर प्रदेश की दर 3.1 रही है जोकि राष्ट्रीय दर की तीन गुना है. परन्तु यह भी सर्वविदित है कि पुलिस में ऊँची जातियों के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराना कितना मुश्किल होता है जैसा कि हाल की हाथरस की घटना से स्पष्ट है. अतः बलात्कार के बहुत से मामले या तो लिखे ही नहीं जाते हैं या उनको अन्य हलकी धाराओं में दर्ज किया जाता है. अगर राज्य भी पीड़ित की जगह उत्पीड़क के साथ खड़ा हो जैसाकि हाथरस के मामले में देखा गया है, तो पीड़ित की मुश्किल और भी बढ़ जाती है.

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश में आदिवासियों के विरुद्ध घटित कुल अपराध की दर राष्ट्रीय दर से बहुत अधिक है. इसमें आदिवासियों के विरुद्ध गंभीर अपराध जैसे हत्या, बलात्कार, अपहरण और विवाह के लिए अपहरण और एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत घटित अपराधों की दर राष्ट्रीय दर से बहुत अधिक रही. इन आंकड़ों से एक बात उभर कर सामने आई है कि उत्तर प्रदेश में आदिवासी महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसे बलात्कार, अपहरण, यौन उत्पीड़न तथा विवाह के लिए अपहरण आदि की संख्या एवं दर राष्ट्रीय दर से बहुत ऊँची है. इससे यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में आदिवासी/आदिवासी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं.

यह उल्लेखनीय है कि सामंती अवशेष और विकास मदों के धन की लूट से बना सामंती, माफिया तथा पूंजी का गठजोड़ दलित/आदिवासी समेत समाज के सभी शोषित, दमित लोगों का उत्पीड़न करता है, जिसका मनोबल योगी सरकार में बहुत बढ़ा हुआ है। यही वह तत्व हैं जो सोनभद्र के उभ्भा से लेकर हाथरस के बूलगढ़ी तक हमले करवाते हैं। यह तत्व निचले स्तर पर राजनीतिक दलों के पक्ष में काम करते हैं और समाज के जनवादी विकास को रोकते हैं और सामाजिक तनाव को बढ़ाते हैं। बूलगढ़ी में दमन का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों को इन तत्वों के प्रति अपना रूख साफ करना चाहिए। साथ ही यह भी विचारणीय है कि आदिवासियों/दलितों के नाम पर बन रही सेनाओं से दलितों का भला नहीं होने जा रहा क्योंकि उनके पास दलित मुक्ति की न तो नीति है और न ही नियत। अतः सभी राजनीतिक पार्टियों को ऐसे तत्वों को पार्टी में कोई भी जगह न देने की घोषणा करनी चाहिए.