एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

योगी सरकार पिछले कई महीनों से उतार प्रदेश के अलग अलग मंडलों में दलितों को लुभाने के लिए सभाएं एवं घोषणाएं कर रही है। हाल में 3 नवंबर को योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में अनुसूचित जाति सम्मेलन को संबोधित करते हुए घोषणा की है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिसंबर तक प्रदेश में सवा करोड़ दलितों को जमीन के पट्टे दिए जाएंगे। उनका यह वादा केवल चुनावी वादा प्रतीत होता है। यह वही गोरखपुर है यहाँ पिछले महीने 10 अक्तूबर को एक एकड़ भूमि की मांग को लेकर दलित महिलाओं द्वारा कमिश्नर कार्यालय पर शांतिपूर्ण धरने को गैर कानूनी घोषित करके 13 लोगों पर भारी धाराओं में फर्जी केस लगा कर जेल भेज दिया गया था जिनमें मैं भी शामिल था। गिरफतार किए गए 9 लोगों में मेरे इलावा धरने के संयोजक श्रवण कुमार निराला तथा पत्रकार सिद्धार्थ रामू एवं दिल्ली से आए 5 यूट्यूबर भी थे। हम लोगों पर थाना कैंट में दिनांक 11 अक्तूबर को मुकदमा अपराध संख्या 717/2023 धारा 147/188/342/332/353/504/506/120 बी/ भाo दंo विo, धारा 7 क्रिमिनल ला एमेंडमेंट एक्ट व धारा 3 लोक संपत्ति निवारण अधिनियम तथा 138 विद्युत अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत किया गया जिसमें 13 लोगों को नामजद किया गया तथा 10-15 को अज्ञात आरोपी बनाया गया। इसमें हमारे ऊपर बिना अनुमति के सभा करने, धारा 144 का उलंघन करने, सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा डालने, चोट पहुँचाने तथा धमकाने, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने, साजिश करने तथा विद्युत चोरी करने का आरोप लगाया गया। इतना ही नहीं हम लोगों पर बाद में धारा 307 (हत्या का प्रयास) का फर्जी आरोप भी लगाया गया ताकि हम लोगों को जमानत न मिले तथा हमें जेल भेजा जा सके। यह उल्लेखनीय है कि वादी ने प्रथम सूचना में गला दबाने का कोई जिकर ही नहीं किया था परंतु हमारे विरुद्ध अपराध को गैर जमानतीय बना कर हम लोगों को जेल भेज दिया गया। जेल में हम लोगों के साथ राजनीतिक बंदियों की जगह अपराधियों वाला व्यवहार किया गया और हमें सामान्य अपराधियों के साथ बैरक में रखा गया। अंततः तीन हफ्ते बाद हम लोग जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आए। इस घटना से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि योगी सरकार दलितों को भूमि पट्टा देने के प्रति कितनी समर्पित है।

इतना ही नहीं यदि आप योगी सरकार का पिछले 6 साल का रिकार्ड देखेंगे तो आप पाएंगे कि योगी सरकार अब तक की सभी सरकारों के मुकाबले में सबसे अधिक दलित विरोधी सरकार रही है। उसके काल में दलितों पर अधिक अत्याचार, हाथरस कांड तथा उभा कांड हुए हैं। उसका दलितों को भूमि आवंटन का रिकार्ड बहुत ही बुरा रहा है। तथ्य यह बताते हैं की योगी सरकार ने अब तक दलितों को भूमि आवंटन की बजाए उनसे भूमि छीनने का ही काम किया है जैसा कि निम्नलिखित विवरण से स्पष्ट है :-

  1. दलितों तथा आदिवासियों की जमीन से बेदखली

यह सर्विदित है कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश के 2017 विधान सभा चुनाव में अपने संकल्प पत्र में लिखा था कि यदि उसकी सरकार बनेगी तो ज़मीन के सभी अवैध कब्जे (ग्राम सभा तथा वनभूमि) खाली कराए जायेंगे। मार्च 2017 में सरकार बनने पर योगी सरकार ने इस पर तुरंत कार्रवाही शुरू कर दी और इसके अनुपालन में ग्राम समाज की भूमि तथा जंगल की ज़मीन से उन लोगों को बेदखल किया जाने लगा जिन का ज़मीन पर कब्ज़ा तो था परन्तु उसका पट्टा उनके नाम नहीं था। इस में अधिकतर लोग दलित एवं आदिवासी थे। इस आदेश के अनुसार 13 जिलों के वनाधिकार के ख़ारिज हुए 74,701 दावेदारों को भी बेदखल किया जाना था। जब योगी सरकार ने बेदखली की कार्रवाही शुरू की तो इस के खिलाफ हमारी पार्टी आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में बेदखली की कार्रवाही को रोकने तथा सभी दावों के पुनर परीक्षण का अनुरोध किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हमारे अनुरोध पर बेदखली की कार्रवाही पर रोक लगाने, सभी दावेदारों को छुटा हुआ दावा दाखिल करने तथा पुराने दावों पर अपील करने के लिए एक महीने का समय दिया तथा सरकार को तीन महीने में सभी दावों की पुनः सुनवाई करके निस्तारण करने का आदेश दिया। परंतु उक्त अवधि पूर्ण हो जाने के बाद भी सरकार द्वारा इस संबंध में कोई भी कार्रवाही नहीं की गई जो योगी सरकार के दलित प्रेम को दर्शाता है।

कुछ वर्ष पहले वाईल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया द्वारा सुप्रीम कोर्ट में वनाधिकार कानून की वैधता को चुनौती दी गयी थी तथा वनाधिकार के अंतर्गत निरस्त किये गये दावों से जुड़ी ज़मीन को खाली करवाने हेतु सभी राज्य सरकारों को आदेशित करने का अनुरोध किया गया था। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों/वनवासियों का पक्ष नहीं रखा। परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफा 2 फरवरी, 2019 को वनाधिकार के ख़ारिज हुए सभी दावों की ज़मीन 24 जुलाई, 2019 तक खाली कराने का आदेश पारित कर दिया। इससे पूरे देश में प्रभावित होने वाले परिवारों की संख्या 20 लाख थी जिसमें उत्तर प्रदेश के 74,701 परिवार हैं। इस आदेश के विरुद्ध हम लोगों ने आदिवासी वनवासी महासभा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में फिर गुहार लगाई जिसमें हम लोगों ने बेदखली आदेश पर रोक लगाने तथा सभी राज्यों को सभी दावों का पुनर्परीक्षण करने का अनुरोध किया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हमारे अनुरोध को स्वीकार करते हुए 10 जुलाई, 2019 तक बेदखली पर रोक तथा सभी राज्यों को सभी दावों के पुन: सुनवाई का आदेश दिया था परंतु 4 वर्ष बीत जाने पर इस पर कोई भी उल्लेखनीय कार्रवाही नहीं की गई है। इसके फलस्वरूप लाखों दलितों, आदिवासियों तथा वनवासियों पर बेदखली की तलवार लटक रही है।

  1. दलितों की भूमि की जिलाधिकारी की अनुमति के बिना बिक्री का आदेश

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की जमीन की खरीद-फरोख्त से जुड़े नियमों में बदलाव कर दिया है। अब एससी/एसटी की जमीन खरीदने से पहले जिले के डीएम की अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी. यूपी सरकार ने टाउनशिप से जुड़े नियमों में बड़ा बदलाव भी किया है। पहले एससी/एसटी लैंड एक्ट के अनुसार, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति की जमीन को एससी/एसटी वर्ग का व्यक्ति ही खरीद सकता था। अन्य वर्गों को इसके लिए जिलाधिकारी की अनुमति लेनी पड़ती थी। लेकिन अब यूपी सरकार ने इसमें संशोधन कर दिया है. लोग अब बिना डीएम की अनुमति के एससी/एसटी की जमीन खरीद सकेंगे। इससे दबंगों द्वारा डरा धमक कर अथवा बहला फुसला कर भूमि लेना आसान हो गया है।

  1. उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार की दर राष्ट्रीय दर से ऊपर

एनसीआरबी द्वारा वर्ष 2020 के अपराध से संबंधित आँकड़े यह दर्शाते हैं कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार के मामलों की दर राष्ट्रीय स्तर पर अपराध की दर से काफी ऊंची है। यह ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी प्रदेश की कुल आबादी का 21% है जबकि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार का घटित अपराध 12714 राष्ट्रीय दर (1 लाख आबादी पर) 25.4 की अपेक्षा 30.7 है। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में दलितों पर कुल घटित अपराध राष्ट्रीय स्तर पर दलितों पर घटित कुल अपराध का 25.3% है अर्थात देश में दलितों पर घटित अपराध का एक चौथाई है।

दलितों के विरुद्ध अत्याचार/अपराध के आंकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित एवं दलित महिलाओं के विरुद्ध अपराध का प्रतिशत एवं दर राष्ट्रीय स्तर पर दलितों पर होने वाले अपराध तथा दर से बहुत अधिक है। इससे योगी सरकार का अपराध पर नियंत्रण का दावा एक दम झूठा सिद्ध हो जाता है। यह भी ज्ञातव्य है कि सरकारी आँकड़े सही तस्वीर पेश नहीं करते हैं क्योंकि बहुत सारे अपराध का शिकार लोग या तो थाने तक जाते ही नहीं, जाते भी हैं तो अपराध दर्ज नहीं होते। इसमें पुलिस का दलित विरोधी नजरिया भी काफी आड़े आता है। पर इसके बावजूद भी जो आँकड़े सरकारी तौर पर छपे हैं वे उत्तर प्रदेश में दलितों की दयनीय स्थिति दर्शाते हैं और योगी सरकार के दलित विरोधी होने का प्रमाण है।

योगी सरकार की दलितों के प्रति संवेदनशीलता का सबसे बड़ा उदाहरण हाथरस में बलात्कार की शिकार दलित लड़की को परिवार की अनुमति के बिना रात्रि में ही जला देना है।

इसी प्रकार योगी सरकार की आदिवासियों के प्रति संवेदनशीलता की सबसे बड़ी उदाहरण सोनभद्र जिले के उभा गाँव में उनकी जमीन पर दबंगों द्वारा प्रशासन की शाह पर कब्जा करने के प्रयास में 10 आदिवासियों की हत्या भी है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि योगी द्वारा दिसंबर तक सवा करोड़ पट्टों का वितरण करने की घोषणा महज छलावा है तथा आसन्न चुनावों के सम्मुख जुमला है। परंतु दलित एवं आदिवासी इस छलावे में फंसने वाले नहीं हैं। उन्होंने भूमि आवंटन की मांग को लेकर जो आंदोलन शुरू किया है वह रुकने वाला नहीं है तथा वह शीघ्र ही व्यापक रूप धारण करेगा। आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट इस आंदोलन से जुड़े संगठनों एवं पार्टियों से संपर्क करके उन्हें एक प्लेटफार्म पर लाने का प्रयास कर रहा है।

आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने हमेशा ही भूमि सुधार एवं भूमि आवंटन को अपने एजंडे में प्रमुख स्थान दिया है और इसके लिए अदालत में तथा ज़मीन पर लड़ाई भी लड़ी है। हमारी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में वनाधिकार कानून को ईमानदारी से लागू कराने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय तथा सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर करके आदेश भी प्राप्त किए हैं। अतः आइपीएफ सभी दलित/आदिवासी हितैषी संगठनों एवं दलित/गैर दलित राजनीतिक पार्टियों का आवाहन करता है कि वे 2024 के चुनाव में भूमि सुधार और भूमि आवंटन को सभी राजनीतिक पार्टियों के एजंडे में शामिल कराने के लिए एक मंच पर आएं।