लखनऊ: उत्तर प्रदेश में गो हत्या पर अब 10 साल कारावास तक की सजा और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है । इसके लिए उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने गोवध निवारण कानून 1955 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

संशोधन प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी
अपर मुख्य सचिव (गृह एवं सूचना) अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया, “गोवध निवारण कानून को और अधिक मजबूत बनाने के मकसद से उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने 1955 के इस कानून में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।” उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में उनके सरकारी आवास पर हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में यह महत्वपूर्ण फैसला किया गया।

गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश लाने का फैसला
अवस्थी ने बताया कि राज्य कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 लाने का फैसला किया। इस अध्यादेश को लाने तथा उसके स्थान पर विधानमंडल में विधेयक पेश कर पुन: पारित कराए जाने का फैसला भी कैबिनेट ने किया।

उन्होंने बताया कि राज्य विधानमंडल का सत्र ना होने तथा शीघ्र कार्रवाई किए जाने के मद्देनजर अध्यादेश लाने का फैसला किया गया। अवस्थी ने बताया कि अध्यादेश का उद्देश्य उत्तर प्रदेश गोवध निवारण कानून, 1955 को और अधिक संगठित एवं प्रभावी बनाना तथा गोवंशीय पशुओं की रक्षा एवं गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों को पूर्णतया रोकना है।

गोवंशीय पशुओं को शारीरिक क्षति पर 7 साल तक की सजा
अवनीश अवस्थी ने बताया कि मूल कानून (संशोधन के साथ) की धारा—5 में गोवंशीय पशुओं को शारीरिक क्षति पहुंचाकर उनके जीवन को संकट में डालने या उनका अंग भंग करने और गोवंशीय पशुओं के जीवन को संकट में डालने वाली परिस्थितियों में परिवहन करने के लिए दंड के प्रावधान नहीं हैं।

न्यूनतम एक वर्ष की वर्ष की सजा
उन्होंने बताया कि मूल कानून में धारा—5 ख के रूप में इस प्रावधान को शामिल किया जाएगा और न्यूनतम एक वर्ष के कठोर कारावास के दंड की व्यवस्था रहेगी, जो सात वर्ष तक हो सकती है और जुर्माना न्यूनतम एक लाख रुपये होगा, जो तीन लाख रुपये तक हो सकता है। मूल कानून में कुछ और संशोधन अध्यादेश के माध्यम से करने का प्रस्ताव है।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश गोवध निवारण कानून, 1955 छह जनवरी 1956 को प्रदेश में लागू हुआ था। वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी। वर्ष 1958, 1961, 1979 एवं 2002 में कानून में संशोधन किया गया तथा नियमावली का 1964 व 1979 में संशोधन हुआ, लेकिन कानून में कुछ ऐसी शिथिलताएं बनी रहीं, जिसके कारण यह कानून जनभावना की अपेक्षानुसार प्रभावी ढंग से कार्यान्वित न हो सका और प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अवैध गोवध एवं गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन की शिकायतें प्राप्त होती रहीं।