डॉक्टर मुहम्मद नजीब क़ासमी

डॉक्टर नजीब क़ासमी

कोरोना वाइरस के कारण लॉकडाउन जारी है। बीमारी के फैलाव के कारण लॉकडाउन का बढ़ाया जाना तकरीबन यकीनी है। अर्थात काफी सम्भव है कि इस वर्ष ईदुल फित्र की नमाज मुसलमान ईदगाह या मसाजिद में अदा ना कर सकेंगे, जो शायद इतिहास में पहली बार होगा। अगरचे दुआ है कि अल्लाह तआला जल्द से जल्द इस वबाई मर्ज की समाप्ति का फैसला फरमा दे, ताकि जहां मुसलमान ईद की नमाज मसाजिद या ईदगाह में अदा कर सकें वहीं दुनिया में आवागमन आरम्भ हो सके। सरकार से भी अपील है कि शर्तेँ के साथ मसाजिद व ईदगाह में ईद की नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाये। जब लॉकडाउन में सरकार की अनुमति से शराब की दुकानों पर भारी भीड़ जमा हो सकती है, हजारों मजदूरों व क्षात्रों का स्थानांतरण हो सकता है और मंडियों व बाजारों में अनेक सामग्री की बिक्री हो सकती है तो व्यक्तिगत दूरी को बाकी रखते हुये मसाजिद व ईदगाह में ईद की नमाज की अदायगी भी हो सकती है। सऊदी हुकूमत से दोबारा दरख्वास्त है कि हरमैन शरीफैन में एतेकाफ की सुन्नत पर अमल करने को यकीनी बनाया जाए क्योंकि 2 हिजरी में रोजा की फरजियत के बाद से वफात तक नबीए-अकरम स० ने सदैव रमजान में एतेकाफ फरमाया। सहाबाए कराम, ताबेईन और तबे ताबेईन भी इसी सुन्नत पर एहतेमाम से अमल फरमाया करते थे। और यह भी कि हरमैन शरीफैन को आखिरी अशरा की ईबादत के लिए जरूरी शर्तेँ के साथ खोल दिया जाए जैसा कि डॉ० अब्दुर रहमान अस्सुदैस साहब ने एक सप्ताह पूर्व एलान भी किया था। बहरहाल लॉकडाउन जारी रहने पर दो अहम मसायल की वजाहत जरूरी समझता हूं।

एतेकाफ: सवाब की नियत से मस्जिद में ठहरने को एतेकाफ कहा जाता है। एतेकाफ में इंसान दुनियावी कामों को छोड़ कर अल्लाह तआला के दर यानी मस्जिद का रुख़ करता है। पूरी तवज्जोह के साथ इबादत में मशगूल रहने से अल्लाह तआला के साथ जो खास तअल्लुक़ और क़ुरबत पैदा होती है वह तमाम इबादतों में एक निराली शान रखती है।

मसनून एतेकाफ: यह रमज़ान के आखिरी अशरा का एतेकाफ है जो सुन्नत अलल किफाया है, यानी मुहल्ला में अगर एक शख्स भी एतेकाफ करले तो सबके ज़िम्मे से साक़ित हो जाएगा, वरना सब छोड़ने की वजह से गुनाहगार होंगे। रमज़ानुल मुबारक की बीस तारीख को सूरज डूबने से कुछ पहले एतेकाफ शुरू किया जाता है और ईद का चांद नज़र आने तक जारी रहता है। इस एतेकाफ के ज़रिया अल्लाह तआला से क़ुरबत के साथ शबे क़दर की इबादत हासिल हो जाती है जिसमें इबादत करना अल्लाह तआला के फरमान के मुताबिक़ हज़ार महीनों यानी 83 साल की इबादत से ज़्यादा बेहतर है। 2 हिजरी में रोज़ा की फर्ज़ियत के बाद से वफात तक नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमेशा रमज़ान में एतेकाफ फरमाया।

मसनून एतेकाफ से मुतअल्लिक़ बाज़ अहादीसे नबविया: हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमज़ान के पहले अशरे में एतेकाफ फरमाया और फिर दूसरे अशरे में भी फिर खेमे से जिसमें एतेकाफ फरमा रहे थे बाहर सर निकाल कर इरशाद फरमाया कि मैंने पहले अशरे का एतेकाफ शबे क़दर की तलाश और एहतेमाम की वजह से किया था फिर इसी की वजह से दूसरे अशरा में किया फिर मुझे किसी (फरिश्ता) ने बताया कि वह रात आखिरी अशरे में है, लिहाज़ा जो लोग मेरे साथ एतेकाफ कर रहे हैं वह आखिरी अशरे का भी एतेकाफ करें। (बुखारी व मुस्लिम)


हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रमज़ान के आखिरी अशरे में एतेकाफ फरमाते थे, वफात तक आपका यह मामूल रहा। (बुखारी व मुस्लिम)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाहु सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर रमज़ान के आखिरी अशरे में एतेकाफ फरमाते थे, लेकिन जिस साल आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात हुई उस साल आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बीस दिन का एतेकाफ फरमाया। (बुखारी)

औरतों का एतेकाफ: उम्मते मुस्लिमा का इत्तिफाक़ है कि मर्द हज़रात की तरह औरतें भी एतेकाफ कर सकती हैं, हज़रत इमाम अबू हनीफा और दूसरे उलमा-ए-किराम ने फरमाया कि औरतों के एतेकाफ के लिए मस्जिद के बजाए घर की वह खास जगह जो आम तौर पर नमाज़ वगैरह के लिए मखसूस कर ली जाती है ज़्यादा बेहतर है।

एतेकाफ के बाज़ अहम मसाइल: मोतकिफ को बिला ज़रूरते शरइया व तबइया एतेकाफ वाली मस्जिद से बाहर निकलना जाएज़ नहीं है। मोतकिफ के मुतअल्लेक़ीन में से कोई सख्त बीमार हो जाए या किसी की वफात हो जाए या कोई बड़ा हादसा पेश आ जाए या मोतकिफ खुद ही सख्त बीमार हो जाए या उसकी जान व माल को खतरे में पड़ जाए तो मोतकिफ के मस्जिद से चले जाने से एतेकाफ टूट जाएगा लेकिन ऐसी मजबूरी में चले जाने से गुनाह नहीं होगा इंशाअल्लाह। अलबत्ता बाद में कज़ा कर लेनी चाहिए।

ईदुल फित्र के बाज़ मसाइल: इस्लाम ने ईदुल फित्र के मौक़ा पर शरई हुदूद के अंदर रहते हुए मिल जुल कर खुशियां मनाने की इजाज़त दी है। अहादीस में आया है कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब हिजरत करके मदीना तशरीफ ले गए तो वहां देखा कि लोग दो दिनों को तेहवार के तौर पर मनाते हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब अहले मदीना से पूछा कि यह दो दिन कैसे हैं जिनमें वह खेल कूद में मशगूल रहते हैं और खुशियां मनाते हैं, तो अंसार ने जवाब दिया कि हम लोग ज़माना क़दीम से इन दोनों दिनों में खुशियां मनाते चले आ रहे हैं। यह सुन कर हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिए इन दो दिनों से बेहतर दो दिन मुक़र्रर फरमाए हैं, एक ईदुल फित्र और दूसरा ईदुल अज़हा। (अबू दाउद)
ईदुल फित्र के दिन रोज़ा रखना हराम है जैसा कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशादात में वारिद हुआ है।
ईद के दिन गुस्ल करना, मिसवाक करना, हसबे इस्तिताअत उमदा कपड़े पहनना, खुशबू लगाना, सुबह होने के बाद ईद की नमाज़ से पहले खजूर या कोई मीठी चीज़ खाना, ईद की नमाज़ के लिए जाने से पहले सदक़ए फित्र अदा करना, एक रास्ता से ईदगाह जाना और दूसर रास्ते से वापस आना, नमाज़ के लिए जाते हुए तकबीर कहना यह सब ईद की सुन्नतों में से हैं। हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईदुल फित्र में नमाज़ से पहले कुछ खा कर जाते थे और ईदुल अज़हा में बेगैर कुछ खाए जाते थे। (तिर्मिज़ी) ईदुल फित्र के रोज़ नमाज़े ईद से पहले नमाज़े इशराक़ न पढ़ें। (बुखारी व मुस्लिम)

लॉकडाउन के जारी रहने पर ईदुल फित्र की नमाज भी जुमआ की तरह घरों में अदा की जा सकती है, जिस के लिए ईमाम के अतिरिक्त तीन लोग काफी हैं।

ईदुल फित्र की नमाज: ईदुल फित्र के दिन दो रिकात नमाज़ जमाअत के साथ बतौर शुक्रया अदा करना वाजिब है। ईदुल फित्र की नमाज़ का वक़्त तुलू-ए-आफताब के बाद से शुरू हो जाता है जो ज़वाल तक रहता है, लेकिन ज़ियादा देर करना उचित नहीं है । ईदुल फित्र और ईदुल अज़हा की नमाज़ में ज़ायद तकबीरें भी कहीं जाती हैं जिनकी तादाद में फुक़हा का इख्तिलाफ है, अलबत्ता ज़ायद तकबीरों के कम या ज़्यादा होने की सूरत में उम्मते मुस्लिमा नमाज़ के सही होने पर मुत्तफिक़ है। हज़रत इमाम अबू हनीफा ने 6 ज़ायद तकबीरों के क़ौल को इख्तियार किया है

ईद की नमाज के लिए आजान व इक़ामत नहीं: जुमआ की नमाज के लिए आजान और इक़ामत दोनों होती हैं। ईदुल फित्र और ईदुज्जुहा की नमाजों के लिए आजान और इक़ामत दोनों नहीं होती हैं। हजरत जाबिर बिन समरा रजी० फरमाते हैं कि मैं ने ईदों की नमाजें हुजूरे अकरम के पीछे बार बार पढ़ी है मगर आजान और इक़ामत के बगैर। (मुस्लिम)
जुमआ की नमाज के लिए जो शरायत हैं वही ईदों की नमाजों के लिए भी हैं, अर्थात् जिन पर नमाजे जुमआ है उन्हीं पर ईदों की नमाज भी हैं। जहाँ जुमआ की नमाज जायज है वहीं ईदों की नमाज भी जायज है। जिस तरह जगह-जगह जुमआ की नमाज अदा की जा सकती है उसी तरह ईद की नमाज भी एक ही शहर में विभिन्न स्थानों में बल्कि लॉकडाउन जैसी स्थिति में घरों में भी ईद की नमाजें अदा कर सकते हैं।

नमाजे ईद पढ़ने का तरीका: सबसे पहले नमाज की नीयत करें। नीयत असल में दिल के इरादे का नाम है, जुबान से भी कहलें तो बेहतर है कि मैं दो रिकअत वाजिब नमाजे ईद छः जायद तकबीरों के साथ पढ़ता हूं फिर अल्लाहो अकबर कहकर हाथ बांध लें और सुबहानका अल्लाहुम्मा..पढ़ें। इसके बाद तकबीरे तहरीमा की तरह दोनों हाथों को कानों उठाते हुए तीन बार अल्लाहो अकबर कहें। दो तकबीरों के बाद हाथ छोड़ दें और तीसरी तकबीर के बाद हाथ बांध लें। हाथ बांधने के बाद इमाम साहब सूरए फातिहा और सूरत पढ़ें, मुकतदी खामोश रहकर सुनें। इस के बाद पहली रिकअत आम नमाज की तरह पढ़ें। दूसरी रिकअत में इमाम साहब सबसे पहले सूरए फातिहा और सूरत पढ़ें मुकतदी खामोश रहकर सुनें। दूसरी रिकअत में सूरत पढ़ने के बाद दोनों हाथों को कानों तक उठा कर तीन बार तकबीर कहें। फिर अल्लाहो अकबर कहकर रुकूअ करें और बाकी नमाज आम नमाज की तरह पूरी करें। ईद की नमाज के बाद दुआ मांग सकते हैं लेकिन खुतबा के बाद दुआ मसनून नहीं है।

खुतबाए ईदुल फित्र: ईदुल फित्र की नमाज के बाद इमाम का खुतबा पढ़ना सुन्नत है, खुतबा आरम्भ हो जाये तो खामोश बैठकर उसको सुनना चाहिये। जो लोग खुतबा के दौरान बातचीत करते रहते हैं या खुतबा छोड़ कर चले जाते हैं वह सही नहीं करते हैं। लॉकडाउन में संक्षिप्त नमाज पढ़ाई जाये और खुतबा संक्षेप में दिया जाये। देखकर भी खुतबा पढ़ा जा सकता है। यदि किसी जगह कोई खुतबा नहीं पढ़ सकता है तो खुतबा के बगैर भी नमाज हो जायेगी क्योंकि ईद का खुतबा सुन्नत है फर्ज नहीं। कुरआन करीम की छोटी सूरतें भी खुतबे में पढ़ी जा सकती हैं। जुमआ की तरह दो खुतबे दिये जायें, दोनों खुतबों के बीच थोड़ी देर के लिए ईमाम साहब मिमबर या कुर्सी इत्यादि पर बैठ जायें।

ईद की नमाज के बाद ईद मिलना: ईद की नमाज से फरागत के बाद गले मिलना या मुसाफहा करना ईद की सुन्नत नहीं है और इन दिनों कोरोना वबाई मर्ज भी फैला हुआ है, इसलिए ईद की नमाज से फरागत के बाद गले मिलने या मुसाफहा करने से बचें क्योंकि एहतियाती तदाबीर का एख्तियार करना शरीयते इस्लामिया के मुखालिफ नहीं है।