ज़ीनत शम्स

देश इस समय त्रासदी को भोग रहा है, सरकार में बैठे ज़िम्मेदार अपनी ज़िम्मेदारी लेने से बच रहे हैं और जो भी उनकी आलोचना कर रहा है उसे कुचलने की हर संभव कोशिश में लगे हैं, दिल्ली में “मोदी जी हमारे बच्चों की वैक्सीन बाहर क्यों भेज दिया” के पोस्टर चिपकाने वालों को गिरफ्तार किया गया। वजह! आलोचना बर्दाश्त नहीं।

लेकिनआलोचना सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों में भी हो रही है. मेडिकल जर्नल लांसेट ने भी आलोचना करते हुए कहा कि मोदी जी ने वार्निंग मिलने के बाद भी त्यौहार और चुनाव होने दिए और वैक्सीन की रफ़्तार भी धीमी रही जिससे केवल दो प्रतिशत लोग ही वैक्सीनेट हुए और महामारी को बढ़ने का मौक़ा मिला।

कोरोना की दूसरी लहर आने के बाद जब राज्य वैक्सीन की मांग करने लगे तो पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन की अनुपलब्धता सामने आने लगी, परिणाम स्वरुप बार बार टीककरण अभियान बाधित हो रहा है. टीकाकरण की तारीख मिलने के बाद भी लोगों को सेंटरों से वापस लौटना पड़ रहा है. दूसरी डोज़ का अंतराल भी लगातार लम्बा होता जा रहा है , पहले 28 दिन का था जो अब बढ़कर 12 से 16 हफ्ते हो गया है. तर्क दिया जा रहा है कि वैज्ञानिक आधार पर यह निर्णय किये जा रहे हैं लेकिन जब आप वैक्सीन की किल्लत की बात सुनते है तो बात कुछ और ही नज़र आती है.

वैक्सीन विदेश भेजने पर जब पहली बार सवाल उठा तो 17 मार्च को देश के विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ने कहा कि देश में पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध है, इसलिए वैक्सीन दूसरे देशों को मदद के रूप में भेजी जा रही है. कहना गलत न होगा कि वैक्सीन का इस्तेमाल दुनिया में अपनी छवि चमकाने के लिए किया गया और अपने नागरिकों के बारे में नहीं सोचा गया.

नतीजा क्या सामने आ रहा है यह सबको दिख रहा है. देश त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहा है, हर तरफ जलती और दफन होती लाशें है. हमेशा सुनसान रहने वाले शमशान और क़ब्रिस्तान लाशों से ऐसे आबाद हुए कि जगह कम पड़ गयी. एक नया सिलसिला हुआ, लाशों को नदियों में बहाने का, गंगा किनारे रेत में दफनाने का, क्योंकि शमशान छोटे पड़ने के साथ मंहगे भी जो गए. गरीब कहाँ से लाये पैसा, सो जिससे जो और जैसे बन पड़ा उसने अपने प्रियजन का उस तरह से अंतिम संस्कार किया। यह अलग बात है शवों को वह सम्मान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था.

अब सवाल उठता है कि इस दुर्दशा का ज़िम्मेदार कौन है? ज़ाहिर सी बात है कि लोग सरकार को ही ज़िम्मेदार ठहराएंगे और सवाल भी पूछेंगे। और सरकार है कि लोगों के मुंह पर ताले जड़ना चाहती है, हर सवाल पूछने वाले को सवालों के घेरे में लेना चाहती है, हर मददगार को संदेह की नज़र से देखती है, उन्हें सलाखों के पीछे भी भेजती है. मगर बोलने की आज़ादी पर हमला कब तक? जब सामने किसी अपने की लाश पड़ी होगी तो वह कैसे शांत रह सकता है. वह सवाल ज़रूर पूछेगा और देश के मुखिया को उसके सवाल का जवाब भी देना होगा, क्योंकि वह ज़िम्मेदार है हर अच्छी और बुरी बात के लिए, उसे सामने आकर ज़िम्मेदारी लेनी होगी।

कोरोना की इस आपदा से निपटने के लिए मोदी जी आपको सबके साथ मिलकर रणनीति बनाकर चलना होगा। राजनीतिक अहंकार को छोड़ विपक्ष को भी साथ में लेना होगा। इस तरह की त्रासदी में आलोचना को दबाने की जगह उनमें छिपे सवालों को समझना होगा, उन्हें हल करने का प्रयास करना होगा। बेशक विपक्षी पार्टियों को भी राजनीति से ऊपर उठना होगा लेकिन देश का मुखिया होने के नाते पहल तो आपको ही करना होगा। अगर ऐसा न हुआ और आलोचना करने और उन्हें कुचलने का सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो इस त्रासदी से निकलना और भी मुश्किल होता जायेगा। इसलिए राजनीतिक स्वार्थ को परे रखिये और आलोचना को बर्दाश्त करना सीखिए। ज़रा सोचिये !