ज़ीनत शम्स

21 जून को भारत में 18 प्लस के लिए टीकाकरण शुरू हुआ जिसमें लगभग 86 लाख लोगों को एक ही दिन में टीका लगाया गया,यह एक ऐसीअच्छी बात है कि जिसके पीछे और बाद की कहानी बहुत खराब है. टीका उत्सव के बाद अब जो जानकारियां निकल कर सामने आ रही हैं उससे यह साफ़ लग रहा है कि यह यह वास्तव में एक ऐसा कीर्तिमान है जो बना नहीं बल्कि गढ़ा गया है. क्योंकि वैक्सीनेशन का यह कोई प्रोग्राम न होकर एक इवेंट मैनेजमेंट भर मालूम पड़ता है जो कोरोनाकाल में किसी के प्रचार की भूख मिटाने के लिए आयोजित हुआ था. विभिन्न प्रदेशों से प्राप्त डाटा को अगर देखें तो पता चलता है कि खेला हो गया.

मध्य प्रदेश टीका उत्सव के दिन वैक्सीन देने में पहले नंबर पर आया जहां 21 जून को लगभग 17 लाख लोगों को वैक्सीन में लगी मगर दूसरे ही दिन यह गिनती 5000 तक भी नहीं पहुँच पाई. यह सारा खेल आपको तब आसानी से समझ में आ जायेगा जब आप भाजपा शासित सिर्फ तीन राज्यों के 20 और 22 जून के आंकड़ों को देखेंगे। मामा के मध्यप्रदेश में 20 जून को महज़ 692 टीके लगे, 21 जून को रिकॉर्ड 16,91,667 और अगले दिन 22 जून को सिर्फ़ 4825 लोगों को वैक्सीन लगी. इसी तरह कर्नाटक में 20 जून को 68,172 टीके लगे, 21 जून यानि टीकोत्सव के दिन यह संख्या 11 लाख 21 हज़ार 648 पहुँच गयी. हरियाणा का भी कुछ ऐसा ही हाल रहा जहाँ 20 जून को 37537, 21 जून को 4,96,598 और फिर अगले ही दिन यह संख्या लुढ़ककर 75894 पहुँच गयी.

इन आंकड़ों से साफ़ पता चलता है कि 21 जून को रिकॉर्ड गढ़ने के लिए क्या खेला किया गया. ऐसा लगभग सभी भाजपा शासित राज्यों में हुआ.

इस पूरे टीका उत्सव पर अगर नज़र डालें तो यह कोई वैक्सीनेशन ड्राइव न लगकर एक व्यक्ति का प्रचार अभियान ज़्यादा नज़र आता है. 21 जून को पूरे देश में सार्वजानिक स्थानों पर, बैंकों में, सरकारी दफ्तरों में, शिक्षण संस्थानों में थैंक्यू मोदी जी के पोस्टर लगे और इन सब पोस्टर और बैनरों एक ही इबारत, एक जैसे चेहरे नज़र आये मानों योजनाबद्ध तरीके से इस सबकी पहले से तैयारी चल रही थी. सवाल यह उठता है कि मुफ्त वैक्सीन का इतना प्रचार क्यों? क्या आप कोई अनोखा काम कर रहे हैं? पूरी दुनिया में कोरोना की वैक्सीन मुफ्त ही लग रही है पर क्या कहीं पोस्टर लगे हैं कि थैंक्यू बाइडेन, थैंक्यू पुतिन, थैंक्यू बोरिस। यह पोस्टर इसलिए नहीं लगे कि मुफ्त वैक्सीनेशन नागरिकों का हक है और वैक्सीन हमेशा फ्री ही लगी है लेकिन सरकार इसका ढिंढोरा कभी नहीं पीटतीं विशेषकर किसी व्यक्ति विशेष का।

इससे पहले भी भारत में 17 करोड़ लोगों को पोलियो की ड्राप 1 दिन में पिलाई गई जो एक विश्व कीर्तिमान है तब क्या मनमोहन सरकार ने इसका ढिंढोरा पीटा था, क्या तब थैंक्यू मनमोहन के पोस्टर लगे थे और याद रखिये यह रिकॉर्ड तब बना था जब देश में इतनी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी. लेकिन मोदी जी को इस विपदा की घड़ी में भी लोगों के जख्मों को कुरेदने में मजा आता है. यह पोस्टर अगर तब लगे होते जब आप वैक्सीन विदेशों में न भेजकर अपने नागरिकों को उपलब्ध कराते और दूसरी लहर में होने वाले विनाश से लोगों को बचा लेते तब यह जनता जरूर आपको थैंक यू बोलती। इस महामारी में बेड की कमी, दवाओं की कमी,इलाज की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से असमय मरने वाले लोग अब आपको थैंक यू कैसे बोलेंगे? जनता ने बड़े भयानक मंज़र देखे हैं जो घाव मिले हैं उन्हें नासूर बनते देखा है. यह नासूर टीकों का कीर्तिमान गढ़ने से नहीं ठीक होंगे। आर्टिफिशल थैंक्यू का माहौल बनाने से कुछ नहीं होगा क्यों शमशान घाटों, क़ब्रिस्तानों, गंगा किनारे अपने प्रियजनों का असमय अंतिम संस्कार करने वाले दिल से बहुत दुखी हैं और दुखी मन से थैंक्यू कैसे निकल सकता है मोदी जी. सोचिये ज़रा