-एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

एस आर दारापुरी

कोविड-19 महामारी भयावह रफ्तार से देश में बढ़ती जा रही है और इससे निपटने की कोई कारगर तैयारी नहीं दिखती है। अब यह सभी लोग मानने लगे हैं कि बिना तैयारी के लाकडाउन किया गया और बिना किसी तैयारी के ही लाकडाउन को हटाया गया है। अब लोगों को उनकी नियति पर ही छोड़ दिया गया है। जब गंभीर सवाल महामारी और चौपट होती अर्थव्यवस्था से निपटने का था, उस समय भाजपा और उसकी सरकार चुनाव प्रचार में उतर गई और बिहार, उड़ीसा और बंगाल में अपनी वर्चुअल रैली की। जनता ने इसे अच्छा नहीं माना, इसे चुनावी राजनीतिक रैली मान कर ही जैसा कि सोशल मीडिया में दिख रहा है अपने गुस्से का इजहार कर रही है।

इसी प्रष्ठभूमि में सुशासन (गुड गवर्नेंस) के नये राजनीतिक प्रवक्ता दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया महाशय अरविंद केजरीवाल ने यह फरमान जारी किया कि दिल्ली के अस्पतालों में दिल्ली के ही लोगों का ईलाज होगा। गनीमत है कि जन भावना और जन दबाव को देखते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल ने उनके फैसले को पलट दिया। आइये अरविंद केजरीवाल की राजनीति को थोडा समझ लें। अन्ना हजारे का आंदोलन चला। कांग्रेस शासन में जो भ्रष्टाचार था उसके विरूद्ध चला। अन्ना हजारे आंदोलन में आरएसएस की भी बड़ी भूमिका रही है, अब यह बताने की जरूरत नहीं है। अन्ना हजारे आंदोलन का क्या हश्र हुआ इसे भी देश के लोग जानते हैं। उसमें से आम आदमी पार्टी निकली। आम आदमी पार्टी की क्या राजनीति रही? यह विचारधारा के विरूद्ध राजनीति करने की बात करती रही। इस आम आदमी पार्टी ने पश्चिम के विचारधारा विहीन विचार को स्वीकार किया। देश के अंदर जो लोग चाहते थे कि अच्छा गवर्नेंस हो उन्होंने समर्थन किया, देश के अंदर निहित स्वार्थ की कुछ ताकतों ने समर्थन किया और विदेश की भी ताकतों ने समर्थन किया है। विदेश की बहुत सारी ताकतें ऐसी हैं जो विचारधारा विहीन राजनीति का समर्थन करती हैं। बहुत सारे लोगों का मानना है कि इनका फोर्ड फाउंडेशन से गहरा संबंध रहा है। फोर्ड फाउंडेशन की वैचारिकी क्या है और यह किसके लिए काम करती है यह भी स्पष्ट है।

इनके गुड गवर्नेंस के नाम पर मोहल्ला क्लीनिक, स्कूल, बिजली, पानी आदि का खूब प्रोपैगंडा किया गया। इसी तरह जब लाकडाउन हुआ तो बढ़ चढ़ कर प्रचार किया गया कि लाखों लोगों को प्रतिदिन सरकार भोजन करा रही है, सभी जरूरतमंदों को राशन और पैसा दिया जा रहा है, मजदूरों के लिए कैंपों की व्यवस्था की गई है न जाने कितनी घोषणायें की गई। जमीनी हकीकत क्या थी कि भोजन के स्टालों पर दो-दो किमी लम्बी लाईनें लग रही थीं, 5-5 घण्टे लाईनों में लगने के बाद बहुतेरे लोगों को बिना भोजन के ही वापस लौटना पड़ रहा था और लोगों को बमुश्किल एक वक्त का ही भोजन मिल पा रहा है। यमुना तट से लेकर जगह-जगह लोग जैसे तैसे भटक रहे थे, कहीं कोई सरकारी इंतजाम नहीं दिखा। इनकी घोषणाओं पर शुरू से ही लोगों को भरोसा नहीं था, इसी वजह से लोग वहां रूकने को तैयार नहीं थे।

अब जब इनको सब का ईलाज करना था, स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाना था, तब दिल्ली से बाहर के लोगों का ईलाज नहीं करने का फरमान जारी कर रहे हैं। दिल्ली की संरचना ही देखिये, आसपास के जिले दिल्ली से वैसे ही जुड़े हैं जैसे दिल्ली के अंदर के हिस्से। इन जिलों को मिलाकर ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि दिल्ली में जो बाहर से आकर मजदूर रहते हैं इसमे बड़े पैमाने पर दलित-आदिवासी और बैकवर्ड हैं, उनके पास तो दिल्ली का किसी तरह का पहचानपत्र ही नहीं है। अगर इन्हें कोरोना हो जायेगा तो वह क्या बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश में आकर ईलाज करायेंगे। जबकि संविधान में हर आदमी को कहीं पर रहने, आने-जाने, स्वास्थ्य सुविधाओं आदि का पूरा अधिकार दिया हुआ है।

जन विरोधी होने का ऐसा साहस भाजपा नहीं कर सकती, और लोग भी नहीं कर पाये, पर केजरीवाल सरकार उससे भी आगे जा रही है। केजरीवाल बढ़ चढ़ कर भाजपा से दोस्ती करने और मोदी की नकल करने में आगे रहते हैं। कुछ लोग इनको “छोटा मोदी” भी कहते हैं। बहरहाल अभी की परिस्थिति में जो कोरोना के विरूद्ध लड़ाई है और अर्थव्यवस्था के पुर्नउत्थान का सवाल है यह आज का राजनीतिक प्रश्न है और मोदी सरकार हो, केजरीवाल सरकार हो या अन्य कोई क्षेत्रीय सरकार हो के ऊपर जनता को अपना दबाव बनाये रखना है और जीने का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शिक्षा का अधिकार आदि, जो संविधान प्रदत्त अधिकार हैं, उन्हें हासिल करने के लिए मुहिम चलाये रखने की जरूरत है।