पटना: बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब पार्टी के छह में से पांच सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर सदन में अलग गुट के रूप में मान्यता देने का आग्रह किया। पार्टी सांसदों का यह कदम लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान के लिए बड़ा धक्का है। वहीं यह भी माना जा रहा है कि ये सांसद सत्तारूढ़ जेडीयू को समर्थन दे सकते हैं। बता दें कि चिराग पासवान के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकने वाले कोई और नहीं बल्कि उनके चाचा पशुपति कुमार पारस हैं। इन पांचों सांसदों का नेतृत्व रामविलास पासवान के छोटे भाई और हाजीपुर के सांसद पशुपति नाथ पारस कर रहे हैं।

पार्टी के संस्‍थापक राम विलास पासवान की मौत के एक साल के अंदर ही पार्टी दो-फाड़ हो गई है। बताया जाता है कि चिराग पासवान से नाराज सांसद एवं उनके चचेरे भाई प्रिंस कुमार, चंदन कुमार, वीणा देवी और महबूब अली कैसर ने उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता मान लिया है।

हालांकि लोक जनशक्ति पार्टी नेता पशुपति कुमार पारस का कहना है कि हमारी पार्टी में 6 सांसद हैं। 5 सांसदों की इच्छा थी की पार्टी का अस्तित्व खत्म हो रहा है इसलिए पार्टी को बचाया जाए। मैं पार्टी तोड़ा नहीं हूं पार्टी को बचाया हूं। चिराग पासवान से कोई शिकायत नहीं है। कोई आपत्ति नहीं है वे पार्टी में रहें।

बिहार के हाजीपुर से लोजपा के लोकसभा सांसद पशुपति कुमार पारस ने कहा कि मैं अकेला महसूस कर रहा हूं। पार्टी की बागडोर जिनके हांथ में गई। पार्टी के 99% कार्यकर्ता, सांसद, विधायक और समर्थक सभी की इच्छा थी कि हम 2014 में एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनें और इस बार के विधानसभा चुनाव में भी हिस्सा बने रहें।

उन्होंने कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी बिखर रही थी कुछ असामाजिक तत्वों ने हमारी पार्टी में सेंध डाला और 99% कार्यकर्ताओं के भावना की अनदेखी करके गठबंधन को तोड़ दिया।

बता दें कि रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस अलौली से पांच बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने जेएनपी उम्मीदवार के रूप में 1977 में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता। तब से वे एलकेडी, जेपी और एलजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते रहे हैं। उन्होंने बिहार सरकार में पशु और मछली संसाधन विभाग के मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने हाजीपुर से 2019 का संसदीय चुनाव जीता और संसद के सदस्य बने।