नयी दिल्ली: पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने कहा है कि अयोध्या का राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद ‘‘भारत के कानूनी इतिहास में सर्वाधिक जोरदार तरीके से लड़े गये मुकदमों में एक’’ था, जिसमें प्रत्येक बिंदु पर ‘‘तीखी’’ बहस हुई और वकीलों ने दलील पेश करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। पूर्व सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अयोध्या भूमि विवाद मामले में फैसला सुनाया था। पिछले साल नौ नवंबर को पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

पीठ ने केंद्र को यह निर्देश भी दिया कि वह एक मस्जिद बनाने के लिये अयोध्या में किसी प्रमुख स्थान पर सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूमि आवंटित करे। अयोध्या मामले की सुनवाई और फैसले पर एक पुस्तक लिखने वाली पत्रकार माला दीक्षित को एक संदेश में पूर्व सीजेआई ने कहा कि भारी-भरकम रिकार्डों के आधार पर बहुआयामी मुद्दों का निर्णय किया गया। उन्होंने कहा, ‘‘अयोध्या मामला, भारत के कानूनी इतिहास में सर्वाधिक जोरदार तरीके से लड़े गये मुकदमों में एक था। इसका हमेशा ही एक विशेष स्थान रहेगा। मौखिक एवं विभिन्न भाषाओं से अनुवाद कराये गये दस्तावेजी साक्ष्यों सहित भारी-भरकम रिकार्डों के आधार पर बहुआयामी मुद्दों का एक अंतिम समाधान निकला। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक बिंदु पर तीखी बहस हुई और मुकदमा लड़ रहे पक्षों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों के जाने माने समूह ने दलील पेश करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। ’’ दीक्षित ने ‘अयोध्या से अदालत तक भगवान श्री राम’ पुस्तक लिखी है, जिसमें सुनवाई और फैसले का विवरण है।

शुक्रवार को यहां इसका विमोचन हुआ। इस ऐतिहासिक मुकदमे की 40 दिनों तक सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा कि अंतिम फैसले पर पहुंचना कई तरह के कारणों को लेकर एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। उन्होंने अपने संदेश में कहा, ‘‘40 दिनों की लगातार सुनवाई के दौरान प्रख्यात वकीलों के सहयोग और पीठ को उनकी सहायता अभूतपूर्व थी। ’’