सभी सीनियर अधिकारियों को निर्देश जारी, ऐसे अपराधों पर सख्ती से लगे लगाम 

लखनऊ: प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद सर्कुलर जारी कर सीनियर पुलिस अधिकारियों को महिलाआंे के साथ घटित होने वाले अपराधों पर लगाम लगाने के सख्त निर्देश दिए हैं । पुलिस महानिदेशक ने जनपदों को महिलाआंे के साथ घटित होने वाले अपराध को अत्यन्त निन्दनीय बताते हुए कहा कि विशेष रूप से बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, छेड़खानी एवं अपहरण इत्यादि घटनायें  पुलिस की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं और आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। महिलाओं के विरूद्ध होने वाली घटनाओं की प्रभावी रोकथाम आवश्यक है। इस संबंध में जारी निर्देशों का अनुपालन कर महिलाओं के विरूद्ध अपराधों की प्रभावी रोकथाम की जाये। 

सर्कुलर में यह भी निर्देश दिया गया है कि महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराधों के पंजीयन से लेकर विवेचना समाप्ति तक पुलिस द्वारा पर्याप्त संवेदनशीलता दर्शायी जाय। ऐसे अपराध की सूचना के पश्चात् पर्याप्त संवेदनशीलता बरतते हुए तथा इस सम्बन्ध में समय-समय पर दिये गये न्यायालय के आदेशों एवं विधि के प्रभावी नियमों का पालन करते हुए कार्यवाही करायी जाये ताकि किसी भी पीडि़ता का अनावश्यक उत्पीड़न न हो एवं उनके सम्मान की रक्षा हो सके। महिला सम्बन्धी अपराध की सूचना मिलने पर थाने का दिवसाधिकारी थाने पर उपलब्ध महिला पुलिस अधिकारी को सूचित करें। थाने पर नियुक्त महिला पुलिस अधिकारी का प्रथम दायित्व होगा कि वह पीडि़त महिला एवं उसके परिवार को सान्त्वना देकर उसे शांत कराये। अछेड़खानी व बलात्कार के प्रकरणांे में विवेचना के दौरान उसका बयान महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही लिया जाए। पीडि़त महिला यदि शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग है तो सूचना का अभिलेखीकरण पीडि़ता के घर पर या उसके चयनित स्थान पर अनुवादक या विशिष्ट शिक्षक की मौजूदगी मंे महिला पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाए सम्बन्धित अभिलेखीकरण की वीडियोग्राफी भी करायी जाए। 

यदि पीडि़ता को कानूनी सहायता की आवश्यकता हो अथवा पीडि़ता और उसके परिवार ने अपने किसी अधिवक्ता को नहीं बुलाया है, तो डियूटी आॅफीसर का यह दायित्व होगा कि वह कानूनी सहायता हेतु तत्काल जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कानूनी सहायक स्वयंसेवी या अधिवक्ता को बुलाये। प्रत्येक थाने पर ऐसे स्वयंसेवी अधिवकताओं की एक सूची होनी चाहिए, जो महिला सम्बन्घी लैंगिक अपराधों में पीडि़ता की मदद करते हैं। बलात्कार के प्रकरणों में पीडि़त महिला का बयान धारा 164 द0प्र0सं0 के अन्र्तगत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष भी तत्काल कराया जाए। बलात्कार के प्रकरणों में यदि पीडि़ता को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने में 24 घण्टे से अधिक समय लगता है तो विवेचक अभियेाग दैनिकी में इसका कारण अंकित करे और इसकी एक प्रति मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करे।

बलात्कार की पीडि़ता का बयान उसके आवास पर या उसके द्वारा इच्छित स्थान पर उसके माता-पिता, अविभावको, नजदीकी रिश्तेदारों या सामाजिक कार्यकर्ता की मौजूदगी में लिया जाए। बयान लेने के लिए पीडि़त महिला को किसी भी दशा में थाना एवं अन्यत्र स्थान पर नहीं बुलाया जाये यह बयान पीडि़त महिला के घर में एकान्त मंे ही लिया जाये। प्रत्येक बयान की आडियो/वीडियो रिकार्डिग की जाय। बलात्कार की घटनाओं मे संलिप्त अभियुक्त की गिरफ्तारी के उपरान्त 53(ए) द0प्र0सं0 के प्राविधानों के अनुसार चिकित्सीय परीक्षण कराया जाय।

किसी भी दशा में अभियुक्त को कार्यवाही शिनाख्त के अतिरिक्त पीडि़त के समक्ष नहीं लाया जाए। किसी भी दशा मे पीडि़ता को थाने पर नहीं रखा जाए यदि चिकित्सा की ज़रुरत हो तो उसे चिकित्सालय मे भर्ती कराया जाए अन्यथा स्वेच्छा पर घर जाने दिया जाएगा। महिलाओं के साथ घटित बलात्कार, हिंसा एवं दुव्र्यहार आदि के प्रकरणों में मीडिया को ब्रीफिंग करते समय महिला के आचरण एवं रहन-सहन, कपड़े पहनने के तरीके एवं उसके व उसके साथी के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की अमर्यादित टिप्पणी न की जाय। घटना के सम्बन्ध में तथ्यों की पूरी जानकारी कर सत्य एवं प्रमाणित विवरण प्रस्तुत किये जायें।