लखनऊ:  पीलीभीत फर्जी पुलिस मुठभेड़ के मामले में 47 पुलिस वालों को आजीवन कारावास की सज़ा एक न्यायपूर्ण फैसला है. यह बात एस.आर. दारापुरी, पूर्व आई.जी. एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस नोट में कही है. उन्होंने आगे बताया है कि इस मामले में आरोपी बनाये गए 57 लोगों में से अब तक दस लोगों की मौत हो चुकी है. सीबीआई के विशेष अभियोजन अधिकारी एससी जायसवाल ने बताया कि 12 जुलाई 1991 को नानकमत्ता, पटना साहिब, हुजूर साहिब व अन्य तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए 25 सिख यात्रियों का जत्था बस से वापस लौट रहा था तभी कछाला घाट के पास पुलिस वालों ने बस को रोका तथा 11 युवकों को उतार कर अपनी नीली बस में बैठा लिया। इनमें से दस की लाश मिली।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। वकील आरएस सोढी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी जिस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 1992 को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी।

आज सजा सुनाने के निर्णय से एक बात तो स्पष्ट हो गयी है कि हम लोग अभी भी अपनी न्याय व्यवस्था में भरोसा रख सकते हैं.

सीबीआई की विवेचना में सब से बड़ी खामी यह है कि इस में केवल निम्न स्तर के पुलिस अधिकारियों को ही दोशी सिद्ध किया गया है और किसी भी उच्च अधिकारी को नहीं खास करके तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पीलीभीत को. पुलिस महकमे में काम करने वाले सभी लोग जानते हैं कि जिले में कोई भी फर्जी मुठभेड़ पुलिस अधीक्षक की जानकारी और सहमति के बिना नहीं हो सकती है.

एक ओर जहाँ सीबीआई इस फर्जी मुठभेड़ के दोषी पुलिस अधिकारियों को सजा दिलाने के लिए बधाई की पात्र है वहीँ दूसरी और इस घटना के लिए ज़िम्मेदार सब से बड़े अधिकारी को बचाने की दोषी भी है.

हम उम्मीद कर सकते हैं कि इस फर्जी मुठभेड़ के मामले में इतनी बड़ी संख्या में पुलिस अधिकारियों को दण्डित किये जाने के निर्णय से उत्तर प्रदेश के पुलिस अधिकारी कुछ सबक सीखेंगे और भविष्य में ऐसी फर्जी मुठभेड़ें करने से बचेंगे. कुछ समय पहले तक उत्तर प्रदेश पुलिस फर्जी मुठभेड़ के मामले में पूरे देश में अव्वल थी.वैसे भी सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश कर दिया है कि पुलिस द्वारा मारे जाने वाले हरेक व्यक्ति के मामले में पुलिस वालों के खिलाफ हत्या का अभियोग दर्ज होगा और उस की निष्पक्ष विवेचना की जाएगी.