10 सिख तीर्थ यात्रियों को आतंकवादी बता कर मार डालने के केस में विशेष सीबीआई अदालत ने सुनाई सजा 

पीलीभीत: यूपी के पीलीभीत जिले में जून 1991 में 10 सिख तीर्थ यात्रियों को आतंकवादी बता कर मार देने वाले 47 पुलिसकर्मियों को आज लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। सिख तीर्थ यात्री बिहार में पटना साहिब और महाराष्ट्र में हुजूर साहिब के दर्शन कर वापस लौट रहे थे, तभी पीलीभीत के पास उन्हें पुलिस ने बस से उतारा और तीन अलग-अलग जंगलों में ले जाकर गोली मार दी।

पुलिस ने कहा था कि उसने 10 आतंकवादियों को एनकाउंटर में मार गिराया, लेकिन जब यह पता चला कि वे सिख तीर्थ यात्री थे तो हंगामा खड़ा गया। इस मामले में 57 पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन मामले की जांच के दौरान 10 पुलिस वालों की मौत हो गई। ऐसा कहा गया कि इन हत्याओं का मकसद आतंकियों को मारने पर मिलने वाला पुरस्कार था।

29 जून 1991 को यूपी के सितार गंज से 25 सिख तीर्थयात्रियों का जत्था पटना साहिब, हुज़ूर साहिब और और नानकमत्ता साहिब के दर्शन के लिए  निकला था। 13 जुलाई को उसे पीलीभीत आना था, लेकिन 12 जुलाई को ही पीलीभीत से पहले 60-70 पुलिस वालों ने उनकी बस को घेर लिया और उन्हें उतार लिया। बस में 13 पुरुष, महिलाएं और 3 बच्चे थे। पुलिस ने महिलाओं, बच्चों और दो बुजुर्ग पुरुषों को छोड़ दिया, लेकिन 11 पुरुषों को वे अपने साथ ले गए।

मिली जानकारी के अनुसार, इनमें से एक तलविंदर सिंह को पुलिस ने मार कर नदी में बहा दिया, जिसकी लाश भी नहीं मिली। बाकी दस सिखों को पुलिस वाले सारे दिन अपनी बस में शहर घुमाते रहे, लेकिन रात में उनके हाथ पीछे बांधकर तीन टोलियों में बांट दिया। दो टोली में चार-चार सिख और एक में दो सिख रखे गए। इन सभी को तीन अलग-अलग जंगलों में ले जाकर गोली मार दी गई।

यह वह दौर था जब पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था। पुलिस ने अगले दिन ऐलान किया कि उसने खालिस्तान लिबरेशन आर्मी और खालिस्तान कमांडो फोर्स के 10 आतंकवादियों को मार गिराया है। तीर्थ यात्रियों के परिवार वालों को जब यह पता चला तो हंगामा हो गया।

पहले केस सिविल पुलिस के पास था, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सीबीआई जांच शुरू हुई। सीबीआई ने 178 गवाह बनाए, 207 दस्तावेज सबूत के लिए लगाए और पुलिसकर्मियों के हथियार, कारतूस और 101 दूसरी चीजें सबूत के तौर पर पेश कीं। आखिरकार सीबीआई ने अदालत में यह साबित कर दिया कि पुलिस ने अपना “गुड वर्क “दिखाने के लिए तीर्थ यात्रियों को आतंकवादी बता कर मार डाला।

पीलीभीत के पस्तौर गांव में जसवंत कौर के पति नरेंदर सिंह अपनी मां के साथ तीर्थ यात्रा पर गए थे। पुलिस ने उन्हें मार डाला। उस वक्त नरेंदर के चार बच्चे (16 साल, 8 साल ,5  साल और 3 साल के) थे। पत्नी जसवंत कौर उस वक़्त 35 साल की थीं। वह बताती हैं, हमारी सास को पुलिसवालों ने छोड़ दिया था। उनके सामने उनके बेटे को वे ले गए, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उन्हें कहां ले गए। पुलिस ने उन्हें इतना कष्ट दिया था कि उनके मुंह से बस यही निकलता था कि उसको पुलिस ले गई-उसको पुलिस ले गई। बाद में पता चला कि उन्हें आतंकवादी बता कर मार डाला है।

जांच से पता चला है कि पुलिस की एनकाउंटर थ्योरी पूरी तरह फर्जी थी। मरने वालों के पोस्टपार्टम में उनके जिस्म पर चोट के तमाम निशान थे। फॉरेंसिक जांच में उस बस में भी गोलियों के निशान मिले जिसमें पुलिस उन्हें ले गई थी। गोलियों के निशान मिटाने के लिए बस को डेंट-पेंट कर दिया गया था। एनकाउंटर में पीएसी को भी शामिल बताया गया, लेकिन जांच से साबित हुआ कि पीएसी उस वक्त अपने कैंप में थी। पुलिस के एक थाना इंचार्ज को एनकाउंटर में शामिल दिखाया था, लेकिन वह उस वक्त एक अस्पताल में भर्ती था। कोर्ट ने पुलिस से पूछा कि यह कैसे संभव है कि किसी एक जिले में तीन अलग-अलग जंगलों में जो एक-दूसरे से काफी दूर हैं ,एक साथ आतंकवादियों से मुठभेड़ हो जाए? अदालत ने यह भी पूछा कि किसी मरने वाले की लाश उनके घर वालों को क्यों नहीं दी गई? पुलिस ने उनका अंतिम संस्कार क्यों किया? इनमें से किसी भी सवाल का जवाब पुलिस के पास नहीं था।