नई दिल्ली: सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को ‘अल्पसंख्यक संस्थान’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। केंद्र सरकार ने कहा कि वह अपील को वापस लेना चाहती है और मानती है कि अजीज बाशा केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था और AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं करार दिया जा सकता क्योंकि इसे संसद के एक कानून के द्वारा बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि 6 हफ्ते में वह अर्जी दाखिल कर बताएंगे कि वह अपनी अर्जी क्यों वापस लेना चाहते है। मामले की अगली सुनवाई जुलाई में होगी।

दरअसल साल 2004 में AMU ने 50 प्रतिशत पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सीटों को मुसलमानों के लिए आरक्षित कर दिया था। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया था जिसके बाद केंद्र और AMU ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। अपील में कहा गया कि AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान है और मुसलमानों को आरक्षण देने का फैसला इसी अधिकार से लिया गया है।

बता दें कि MAO कॉलेज को विघटित कर साल 1920 में AMU एक्ट लागू किया गया था। संसद ने 1951 में AMU संसोधन एक्ट पारित किया और इसके दरवाजे गैर-मुसलमानों के लिए खोले गए। साल 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने अजीज बाशा केस में कहा कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है क्योंकि इसकी स्थापना संसद द्वारा बनाए कानून से हुई है न कि इसे मुसलमानों ने खड़ा किया है। साल 1981 में संसद में एक संशोधन के जरिए एक तरह से AMU का ‘अल्पसंख्यक टैग’ लौटा दिया गया और उसे भारत में मुसलमानों की ‘सांस्कृतिक और शैक्षणिक तरक्की’ के लिए काम करने की इजाजत’ दे दी गई।