लखनऊ: वरिष्ठ समाजवादी नेता व सपा के प्रमुख प्रवक्ता शिवपाल सिंह यादव ने आज कहा कि बसपा सुप्रीमों मायावती और केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के बीच हुए संवाद को निरर्थक और भटकाऊ बताते हुए कहा कि दोनों ने लोकसंवाद व राजनीतिक बहस की गरिमा गिराई है। “सिर काट कर ले जाएं“ व “मेरे पैरों में अपना सिर काट कर रख दें“ जैसी बातें इन दोनों नेत्रियों को शोभा नहीं देती। स्मृति ईरानी को माँ दुर्गा का उल्लेख करते समय सतर्कता बरतनी चाहिए थी, नकारात्मक बात को दोहराना भी गलत है। दोनों नेत्रियों को संसद की गरिमा गिराने के लिए देश के लोकतंत्र और संसद से माफी मांगनी चाहिए।

श्री यादव हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष व अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद के महाप्रयाण दिवस के उपलक्ष्य में 7, कालीदास मार्ग स्थित सभाकक्ष में आयोजित ‘आजाद व समाजवाद’ विषयक परिचर्चा में बोल रहे थे। 

परिचर्चा को सम्बोधित करते हुए शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि चन्द्रशेखर आजाद के वैचारिक पक्ष पर व्यापक विमर्श जरूरी है। भारतीय इतिहास में चन्द्रशेखर आजाद के योगदान का मूल्यांकन ठीक से नहीं हुआ। वे समाजवाद के स्वप्नदृष्टा थे। हमारा इतिहास साक्षी है कि 08 सितम्बर, 1928 को फिरोजशाह कोटला के पुराने किले में प्रथम समाजवादी संगठन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन की स्थापना चन्द्रशेखर के नेतृत्व में ही हुआ था। इसका घोषणा पत्र भारतीय समाजवादी आंदोलन का महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसमें स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है “मेहनतकश की तमाम आशाएँ अब समाजवाद पर टिकी हैं और सिर्फ यही पूर्ण स्वराज्य तथा भेदभाव खत्म करने में सहायक साबित हो सकता है।“ चन्द्रशेखर आजाद कोरे बंदूकची नहीं थे। उनकी पढ़ाई-लिखाई में गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने काशी में संस्कृत की दीक्षा ली थी और वे भगवतीशरण वर्मा, भगत सिंह और प्राफेसर नन्द किशोर निगम से दुनिया भर की क्रांतिकारी साहित्य का वाचन करवाया करते थे। वे अपने उद्बोधनों में अक्सर गीता की सूक्तियों के साथ-साथ रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की गजलों का भी प्रयोग किया करते थे। समाजवादी विचारधारा को मजबूत करना ही चन्द्रशेखर आजाद को दी गई सच्ची श्रद्धांजलि है। नई पीढ़ी आजाद व समाजवाद को पढ़े।

परिचर्चा में समाजवादी चिंतक व इण्टरनेशनल सोशलिस्ट काउंसिल के सचिव दीपक मिश्र ने कहा कि हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी और स्वतंत्रता व समाजवाद की लड़ाई को निर्णायक दौर में पहुंचाया। गुलामी के बाद चन्द्रशेखर आजाद सबसे बड़े विरोधी सांप्रदायिकता के थे। आज बढ़ती हुई सांप्रदायिकता के बीच में चन्द्रशेखर आजाद और भी अधिक प्रासंगिक प्रतीत होते हैं।a