ब्यूरो चीफ फहीम सिद्दीकी

बाराबंकी। मोहसिना क़िदवई, राजनीतिक गलियारे का एक बहुत कद्दावर नाम। नब्बे साल से ऊपर की मिसाली ज़िन्दगी, जिसमें कोई दाग नही,किसी से कोई तल्खी नही, कोई धोखेबाज़ी नही, बस अपनी खूबियों एवं मेहनत से रास्ता बनाती रही। विधायक, राज्य में मंत्री, सांसद, केंद्र में मंत्री, राज्यसभा सांसद, कितने ही संस्थानो की अध्यक्ष, सदस्य, यहाँ तक अगर कुछ छोटे दिल के लीडर अड़ंगा न लगाते तो राष्ट्रपति पद के लिए भी उनके नाम की दौड़ चली थी और वह बन भी जाती। कांग्रेस यूपी की अध्यक्ष, नेहरू भवन की ईंट-ईंट जोड़ने वाली, कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य रहीं, यानी कुल जमा एक वृहद राजनैतिक जीवन। हाँ भला कांग्रेस की इन कद्दावर लीडर को कौन नही जानता। मोहसिना क़िदवई ने ज़िन्दगी में बड़े उतार चढ़ाव देखे, राजनीति में चमकते और ढलते वक्त को भी देखा, मगर उस चौखट को कभी भी नजर अंदाज नही किया, जहां से शुरुआत की थी। यानि सिविल लाइन स्थित ‘मोहसिना कोठी’। जो अब फिर से सियासी चकाचौंध से गुलजार होने जा रही है। वही कोठी जो कभी कांग्रेस की राजनीति का मुख्य केंद्र और शहर में पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहसिना क़िदवई का निवास हुआ करती थी। जहां श्रीमती क़िदवई ने सियासत का कखहरा सीखा। के.डी सिंह बाबू मार्ग स्थित ‘मोहिसना कोठी’ से मशहूर इस भवन की फिर चर्चा शुरू हो गई है। यह वही कोठी है जहां कांग्रेस में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते थे। जहां भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, जियाउर्रहमान अंसारी, डा ए. आर किदवई, पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महंत जगन्नाथ बक्श दास, पूर्व मंत्री पं श्याम लाल वाजपेयी, बाबू पुत्तू लाल वर्मा, बाबू बृज बहादुर श्रीवास्तव, पं चन्द्र भूषण शुक्ला, राम आसरे वर्मा, पं शेष नारायण शुक्ला, भगौती प्रसाद वर्मा, डॉ पुरूषोत्तम, ओवैस कर्मी सरीखे दिग्गज कांग्रेसियों का जमावड़ा लगा रहता था।


यह भवन साल 1952 में बनकर तैयार हुआ। जहां तत्कालीन कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व विधायक जमील उर रहमान किदवई का अस्थाई निवास था। जो मोहिसना क़िदवई के ससुर थे। साल 1953 में उनके बेटे खलील उर रहमान किदवई की मोहसिना क़िदवई से शादी हुई, जिसके बाद मोहसिना किदवई इसी कोठी में रहने लगी। वैसे जमील उर रहमान क़िदवई का मूलत पैतृक निवास बड़ागांव था। बड़ागांव में उनकी पुश्तैनी कोठी भी राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र रही, जहां कांग्रेस के दिग्गजों ने देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के तरीकों पर गरमागरम बहस की। धीरे-धीरे समय बीतता गया। आखिरकार, जमील उर रहमान क़िदवई ने सिविल लाइन स्थित एक भव्य कोठी की आधारशिला रखी जो बाद में जनपद ही नहीं बल्कि केन्द्र की सियासत की हिस्सा बनी। इस कोठी पर हर साल पहली जनवरी को मोहसिना किदवई का जन्मदिन बड़ी भव्यता के साथ मनाया जाता है। उसके बाद साल भर यह काठी अपने अतीत की यादों में खोई रहती है। साल 2009 में लोकसभा चुनाव के चलते आखिरी बार कोठी पर कांग्रेस नेत्री मोहसिना क़िदवई, बेनी प्रसाद वर्मा, डॉ पी.एल पुनिया, फवाद क़िदवई, इमरान क़िदवई, सुरेन्द्र नाथ अवस्थी, रिजवान उर रहमान क़िदवई सरीखे बहुत से कांग्रेसजनों का जमावड़ा लगा था। इस चुनाव में डॉ पी.एल पुनिया बाराबंकी से कांग्रेस प्रत्याशी थे और बेनी प्रसाद वर्मा गोण्डा से कांग्रेस प्रत्याशी थे। उसके बाद दो दिग्गज नेता चुनाव जीते पी.एल पुनिया केन्द्र में अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बने और बेनी प्रसाद वर्मा केन्द्रीय इस्पात मंत्री बने। अबकी बार फिर ऐसा मौका है जब लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र यह भवन राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ है।

बताते चलें कि बाराबंकी लोकसभा सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व सांसद डॉ. पी.एल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया इंडिया गठबंधन से कांग्रेस उम्मीदवार है। बीते शुक्रवार को कांग्रेस नेता डॉ. पी.एल पुनिया ने कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया का केन्द्रीय चुनाव कार्यालय इसी कोठी में खोला है। सूत्रों की माने तो कांग्रेस फिर इतिहास देाहराने जा रही है। लोगों का कहना है कि यह कोठी कांग्रेस की विरासत का आह्वान कर रही है। हालाँकि मोहसिना किदवई का जन्म इस भवन में नहीं हुआ था, वह शादी के बाद यहीं रहती थी और उनके राजनीतिक कैरियर की शुरूआत यहीं से हुई थी। लेकिन बाद में श्रीमती क़िदवई इसी कोठी से राजनीति के क्षितिज तक पहुंची। वहीं पी.एल पुनिया, बेनी प्रसाद वर्मा सरीखे कई नेताओं को राष्ट्रीय पहचान मिली। ऐसे में तनुज पुनिया भी अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत इसी कोठी से करना चाहते हैं। उनको उम्मीद है कि जनता अपने आशीर्वाद के रूप में उन्हें भी एक मौका जरूर देगी ताकि वह बाराबंकी को केन्द्र की सियासत में फिर से पहचान दिला सके। जो पहचान मोहसिना किदवई, पी.एल पुनिया, बेनी प्रसाद वर्मा, कमला प्रसाद रावत सरीखे नेताओं ने दिलाई थी। बहरहाल, आजकल फिर यह कोठी सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बन गई है। जिससे लोगों में उत्सुकता बनी हुई है।