मेरे जाने के बाद मेरे दुशमनों और दोस्तो को तंग ना किया जाए .. कुछ यूं बयां कर रहे शब्दों ने मेरा ध्यान अपनी  तरफ खिचा। हर तरफ रोहित वेमुला को लेकर शोर शराबा, बयानबाजी, दालित के नाम पर राजनीति, अनशन , और भी ना जाने कहा तक इस केस की जड़े पहुंच रही है। पर एक साधारण प्रश्न जो आम जन के दिमाग में कौंध रहा है कि रोहित की मौत पर ही क्यों इतना हंगमा हो रहा है ?  हजारों रोहित कभी बेरोजगारी से आहत होकर तो कभी न्याय के लंबे इंतजार के खौफ से ही मोत की गौद में सोना पंसद करते है। लेकिन ऐसा शोर शाराबा तब तो नही मचता? तो आखिर क्यों हैदराबाद यूनिवर्सिटी में हुई रोहित की आत्महत्या के विरोध में दिल्ली और यूपी तक तेज स्वर हुए? क्यों दलित–दलित बोलकर हमारे सामज को बांटा जा रहा है? क्यों राहुल दोबारा से हैदाराबाद जाते है और रोहित के इंसाफ  के लिए अनशन पर बैठ जाते है? क्यों केजरीवाल को हमेशा मोदी ही जिम्मेदार नज़र आते है? ऐसे हजारो प्रश्न है जो किसी एक को इस घटना का जिम्मेदार नही मानती है। इस पूरे केस में किसी एक की गलती नही है। 

आखों में सपने साजएं हैदराबाद यूनिवर्सिटी सें पी.एच़. डी  कर रहे छात्र  रोहित वेमुला ने आत्महत्या क्यों की? ये समझने के लिए रोहित द्वारा लिखा पत्र पढ़ा। उस पत्र में रोहित की संवेदना महसुस हुई और समझ आया की किस कदर वो  हताश हुआ और सारी समस्याओं का समाधान उसे  सिर्फ आत्महत्या में नज़र आया।

रोहित ने अपने पत्र में लिखा है कि उसको साथ महिनें की फैलेशिप नही मिली। जो सबसे पहले यूनिवर्सिटी पर सवाल उठाती है। अखिर क्यों हमारी व्यवस्था इतनी स्लो है?

आत्महत्या से दो हफ़्ते पहले विश्वविद्यालय ने उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक नेता के साथ कथित मारपीट की वजह से निलंबित कर दिया था। रोहित के साथ विश्वविद्यालय से निलंबित सी. सेशैया  ने कहा की एबीवीपी के सदस्यों ने हम पर तब हमला किया जब हम मुज़फ़्फ़रनगर दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म पर बैन लगाए जाने का विरोध कर रहे थे।

विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने प्राथमिक जांच में हमें क्लीन चिट दी थी। लेकिन 21 दिसंबर को वाइस चांसलर ने हमें हॉस्टल से निकालने का आदेश जारी कर दिया। वही सेशैया इसके लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को भेजे गए राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय के पत्र को ज़िम्मेदार मानते हैं जिसमें इन छात्रों पर वीसी से कार्रवाई करने की मांग की गई थी। हलांकि एबीवीपी ने इस इलजाम का विरोध किया है। 

तो सवाल ये की इसकी जांच करने के लिए अभी तक कोई सक्रिय नज़र क्यों नही आ रहा है? सबसे पहले जिम्मेदारी यूनीवर्सिटी के वीसी, अप्पा राव पोडिले की होती है। जिस रिपोर्ट में ये पाया गया की रोहित और उनके दोस्त को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक नेता के साथ कथित मारपीट की वजह से उनको निलंबित किया गया था। अब रोहित के  मौत के बाद  उस रिपोर्ट पर भी सवाल उठ रहे है। क्या  विश्वविद्यालय प्रशासन के ख़िलाफ़ आंदोलन चला रहे रोहित और उनके दोस्तो का तरीका सही नही था। 

 या रोहित और उनके दोस्तो को राष्ट्रविरोधी कहना संघ का सही वार है। क्योंकि रोहित और उनका संगठन य़ाकूब मेनन के फांसी के खिलाफ थे। जिसके लिए इन्होंने काफी आंदोलन भी किए थे। पर एक तरफ तो संघ के उपर भी प्रश्न खड़ा होता  है की क्या संघ का ये कहना ठीक है की रोहित राष्ट्रविरोधी थे। बात ये नही की उन्होंने क्या किया। बात है की रोहित को ये कदम ही क्यों अख्तियार करना पड़ा?क्या रोहित की और मजबुरिया थी या वो जिंदगी से तंग आ गया था? पर कुछ भी कहे सवाल तो सिर्फ यूनिवर्सिटी पर लगा है। रोहित के मौत के नाम पर ऐसा लगता है जैस हर कोई अपना सिक्का ज़माना चांहता हो। मायावाती भी कुद पड़ी इस आग में उन्होंने सोचा की बहुत शांत स्वाभाव हो गया चलो अब दलित के हितैषी बना जाए। पर रोहित की मौत का अफसोस तो दूर, सब उसकी जाति पर राजनीति करने लगे। मोदी के राज़ में दलितों को न्याय मिलना मुश्किल हो रहा है जैसे तीर बाण चला कर मायावती अपने अपको दलितों का मसिहा समझने का प्रयास कर रही है। और करे भी क्यों ना आखिरकार यूपी में चुनाव जो होने वाले है। पर रोहित के दलित होने या ना होने पर जैसे पूरी राजनीति टिकी हो। तभी तो इस केस ने तूल भी पकड़ा। हर नेता ने अपने हिसाब से इस केस का इस्तेमाल किया। पर अफसोस है की अखिरी में जबरद्स्ती राहुल गांधी ही पूरे प्रकरण में अपनी रोटीयां सेंकते नज़र आए। पर सच तो यह है की अकसर वह रोटीयां सेंकने की  कोशिश करते है वंहा  करते है जंहा आग कम होती या ज्यादा आग में  अपने हाथ जला बैठते है। 

वही रोहित के मौत के बाद सारे छात्र एकत्रित हो जाते है धरना करते है तब जाकर भी मुझे इस पर कोई कार्यवाही नज़र नई आती है। 

और स्मृति ईरानी पर भी सवाल उठने शुरु हो जाते है। क्योंकि इनका मानना है की जो यूनिवर्सिटी ने किया वह ठीक किया और कानून के हिसाब से किया।  फिर क्यों छात्रों के विरोध से वहां के वीसी को अपना पद खोना पड़ता है। क्यों बाकी छात्रों का निलंबन वापस लिया जाता है। हो ना हो इस केस को जितना हल्का समझा जा रहा है इसकी जड़े उतनी ही गहरी है। जिस तरीके ये पूरा घटनाक्रम चल रहा  है उससे ये भी अंदजा हो रहा है जैस ये किसी की सोची समझी तरकीब है। रोहित ने शिक्षा क्षेत्र  पर अपने जाने के बाद दोबारा से कई प्रश्न उठाये है पर ऐसे कितने केस किसी ड़ायरी में बंद रह जाते है। और चूं तक नही होती है। दूसरी और आंध प्रदेश और तेलगांना के मुख्यमंत्री को तो सुध ही नही है। बीजेपी कहती है की हरियाणा के भगाना गांव के कुछ दलित लोगों के ऊपर वहां की ऊंची जाति के लोगों द्वारा अत्याचार  हुए। कई साल तक ये लोग जंतर ।मंतर पर धरना देते रहे 

लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी। उस वक़्त हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी और केंद्र में कांग्रेस सत्ता में भी थी। लेकिन सत्ता और सरकार दोनों ही चुप थी। 

इससे ये साफ है कि हर पार्टी का एक दुसरे पर बस लांछन लगाना ही उनकी किसी भी केस की कार्यवाही बन चुका है। फिर चांहे वो कांग्रेस हो, बीजेपी हो या अन्य कोई पार्टी। अब हमारे उभरते राजनीतीकर्ता केजरीवाल जी को ही देख लो वो तो कोई भी केस हो बस मोदी पर हमला करना चांहते है। तो यहां भला कैसे पीछे रह सकते थे। केजरवाल जी भी चल पड़े  हैदराबाद और कहने लगे की मोदी को देश से माफी मांगनी चाहिए।  लोगों की निगाह भी नरेंद्र मोदी पर थी । 

मोदी को जब रोहित की मौत के प्रश्न का सामना करना पड़ा तो मोदी ने भी रुहसा और संवेदनशीलता से इसका सामना किया। जो लोगों पर मोदी पर सवाल खड़े करने के लिए प्रेरित तो नही करता पर ये जरुर हो सकता है की मोदी जी इतना आत्मविश्वास कहा से जुटाते है। इस पूरे केस में मोदी ने सिर्फ इतना  कहा की इस पर राजनीति नही चाहिए मैं समझ सकता हूं कि रोहित की  मां पर क्या बीती होगी। 

इतेफाक की बात ये ही मोदी के बोलने के बाद जैसे सब शांत हो गया है। लेकिन अंत में सवाल है पर जवाब सिर्फ जांच के बाद ही आ सकते है। हर स्तर पर इस पूरे प्ररकरण की जांच होनी चाहिए तभी जाकर ये पता चलेगा की कौन असली राष्ट्र विरोधी है।

पूजा सिंह