नई दिल्ली: नोबेल पुरस्कार विजेता लेमाह आर जीबॉवी का मानना है कि समाज का शोषण करने के लिए धर्म का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग वैश्वशांति के समक्ष सबसे बड़े खतरों में से एक है। उन्होंने यह भी कहा कि यह सांप्रदायिक हिंसा की बढ़ती घटनाओं से भी अधिक खतरनाक है।

2011 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजी गईं लेमाह ने कहा, ‘‘जहां तक विश्वशांति की बात है, तो हमारे सामने आज सबसे बड़ी चुनौती धार्मिक संघर्ष नहीं, बल्कि लोगों द्वारा समाज के शोषण के लिए धर्म का दुरुपयोग किया जाना है।’’

पहली बार भारत आईं घाना निवासी लेमाह ने हाल ही में आयोजित ‘‘नोबेल सॉल्यूशंस’’ समारोह में भाग लिया, जिसमें विश्वभर के विभिन्न क्षेत्रों के छह नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने मानवता के समक्ष सबसे बड़ी समस्याओं पर चर्चा की और उनके संभावित समाधान पेश किए।

43 वर्षीय लाइबेरियन शांति कार्यकर्ता के अनुसार अब समय आ गया है जब धार्मिक नेता आगे आएं और वार्ता शुरू करके शांति स्थापना की प्रक्रिया शुरू करने के प्रयास करें और यह जिम्मेदारी केवल राजनेताओं पर नहीं छोड़ें।

‘विमेन ऑफ लाइबेरिया मास एक्शन फॉर पीस’ नामक शांति आंदोलन का नेतृत्व करने वाली लेमाह ने कहा, ‘‘महिलाएं संघर्ष के दौरान शांति स्थापित करने की कोशिश करती हैं। महिलाएं इस बारे में बात करने के लिए लोगों को साथ लाने की कोशिश करती हैं। आप बमुश्किल ही महिलाओं को बंदूकें उठाते देखेंगे। बस हाल में हमने महिला आत्मघाती हमलावरों को देखा हैं, लेकिन महिलाओं ने शांति की वकालत करने की दिशा में हमेशा अपनी भूमिका निभाई है।’’