स्वाति कुलकर्णी, यूटीआई एसेट मैनेजमेंट कम्पनी की उपाध्यक्ष एवं फण्ड मैनेजर हैं उनकी राय है कि आगामी वित्त वर्ष में बाजार के लिए कमीशन अवाॅर्ड दीर्घावधि लक्ष्य रहेगा। वे कहती हैं कि यदि सरकार पूंजीगत  मोर्चे पर खर्च करे तो यह खत्म हो सकता है और इसका गुणात्मक असर पड़ सकता है।

यदि आप बजार के प्रदर्शन को देखते हैं, कारोबार के जोखिम को अगर देखा जाए तो वह पूरी सितम्बर की तिमाही तक जोखिम से भरा था वहीं अब यह स्थिति नहीं रही। बाजार अब उन निचाइयों से पूरे विश्वभर में 5 से 10 प्रतिशत उबर गया है। भारत इस दौरान मंदा रहेगा क्योंकि जैसा की आय के सीजन से अपेक्षा की जा रही थी उतनी आय इस सीजन में दिखाई नहीं दी। इसलिए सूचकांक में किसी प्रकार  अधिक उतार-चढ़ाव की आशा इस समय नहीं की जानी चाहिए।

 इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि दिपावली तथा त्योहरी सीजन ने इस साल तीसरी तिमाही को धकेला है। इसलिये यह भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। आने वाली तिमाहियों में वर्ष दर वर्ष के आधार पर हमें अनुकूल आधार मिल सकेगा, क्योंकि गत वर्ष त्योहारी सीजन दूसरी तिमाही के दौरान आया था। यहां यह कहना उचित होगा कि एफएमसीजी क्षेत्र की कई कम्पनियों को कच्चे माल की कीमतें बढ़ने पर कीमत सुधार का अनुभव करना पड़ा था, इसका अर्थ यह नहीं कि वे  मार्जिन का निचोड़ चाहते थे, मार्जिन बढ़ रही थी, लेकिन टाॅप लाइन में खामोशी छाई हुई थी क्यों कि मूल्य सुधार एक हद तक पारित हो रहे थे। दूसरा पहलू यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों की मांग में भी किसी प्रकार की तेजी नहीं देखी गई। कुछ अवसर नीचे कारोबार या घटिया उत्पादों की तुलना गत वर्ष या एक तिमाही पीछे के बराबर तुलना की गई। इसलिए इन चीजों का प्रभाव निश्चित तौर पर एफएमसीबी क्षेत्र में देखने को मिला।

गैर बैंकिंग वित्तपोषण कम्पनियों (एनबीएफसी) जो कि दायित्वों की तरफ से लाभकारी रहती है उन्हें फण्ड की लागत में कमी का सामना करना पड़ा। ऐसी कई ।।।रेटेड एनबीएफसीज है, जिन्हें फण्ड की लागत में गिरावट का सामना करना पड़ा क्योंकि कुल मिला कर ब्याज दर नीचे आई क्योंकि लघु अवधि तरलता में सुघार आया। इन रुझानों में बाजार दर रेट कट होने से बहुत पहले से ही देखने को मिला। इसलिए दायित्व पक्ष में लाभ स्पष्ट नजर आने लगा। दूसरी तरफ, 150 दिन के एनपीए को यदि देखा जाए तो इसे 120 दिन के स्तर की मान्यता मिली, इसलिए सम्पत्ति पक्ष में आराम की दशा रही और यह और अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगा, इसलिए शायद ब्याज में उभार देखा गया। और तीसरा बिंदू जिससे बहुत अधिक आशाएं की जा रही थी, जब भी कोई विकास तेजी पकड़ता है, वह आपको विशाल आधार वाला विकास उपलब्ध करवाता है, क्योंकि वह स्पष्ट रूप से ऐसा सेगमेंट तैयार करता है जिसे बैंक वास्तव में देख नहीं पाते। इसलिए संभवत यह तीन-चार बिंदू इन एनबीएफसीज में ब्याज पैदा कर रहे हैं।

 पीएसयू बैंकिंग क्षेत्र में पुनर्गठन खिड़की (रिस्ट्रक्चरिंग विण्डो) अभी तक नहीं बन सकी है। कुल मिला कर, यह आशा की जा सकती है कि जहां तक पीएसयू बैंकिंग का सम्बन्ध है, शायद एसेट क्वालिटी अभी निम्नस्तर पर है। इसके अलावा मूल्यांकन भी अपनी हद तक आ गया है जो कि एसेट क्वालिटी मामलों को मान्यता प्रदान करता है।

 तीन वर्ष से पांच वर्ष के दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो सभी क्षेत्रों में रचनात्मक नजरिया रहा। जहां तक निजी बैंको का सम्बन्ध है, स्पष्ट है कि वहां आशा के अनुरूप 20 प्रतिशत से अधिक  विकास दर देखने को मिली जिसे की अत्यधिक विकास बिंदू नहीं कहा जा सकता है। इसने हालांकि निराश नहीं किया है, लेकिन जैसा कि पहले था, उनका मूल्यांकन भी अधिक समृद्ध रहा इसलिए मूल रूप से मूल्यांकन और विकास के आधार पर इसे पुनरुद्धार कहा जा सकता है।

वैश्विक चक्रिकों (साइक्लिकल्स) ने कई मूल्य सूचकांकों पर ध्यानाकर्षित किया है। निफ्टी50 या सूचकांक यह मूल रूप से वैश्विक हालातों से प्रभावित होते हैं। अब तक चीन की मंदी को इसके लिए धन्यवाद देना चाहिए  साथ ही इसे प्रभावित करने वाली कमोडिटी कीमतों को भी। इसलिए जहां उतार चढ़ाव से मुकाबला हो, और काफी कम अवधि में धात्विक क्षेत्र के असाधारण मंच से मुकाबला करना हो, ढांचागत रूस से मैटल एक ऐसी चीज है जिसे टाला जा सकता है। इसके अतिरिक्त रियल स्टेट को भी कुछ समय तक नजरअंदाज किया जा सकता है।