‘‘इलाज बित् तदबीर’’ विषयक दो दिवसीय सेमीनार का शुभारम्भ 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार यूनानी चिकित्सा के प्रति काफी संवदेनशील है। प्रदेश के शासकीय चिकित्सालयों में यूनानी चिकित्सकों की भी तैनाती की जायेगी। इसी क्रम में इण्डियन मेडिसिन एक्ट में संशोधन करके यूनानी चिकित्सकों को एलोपैथी दवाएं लिखने का अधिकार दिया गया है। 

यह बात प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा एवं आयुष, श्री अनूप चन्द्र पाण्डेय ने आज यहां राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह, कैसरबाग में राजकीय तकमील उत्तिब कालेज एवं आयुष मंत्रालय के सहयोग से आयोजित ‘‘इलाज बित् तदबीर’’ विषयक सेमीनार में कही। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने वयोवृद्ध एवं विश्वविख्यात 115 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पद्म भूषण हकीम, सैय्यद मोहम्मद शरफुद्दीन कादरी को यश भारती सम्मान से नबाजे जाने का फैसला किया है। इस संबंध में मुख्यमंत्री, श्री अखिलेश यादव ने आज यहां श्री कादरी को अपने आवास पर सम्मानति करते हुए इसकी घोषणा की। 

श्री पाण्डेय ने कहा कि वर्तमान समय में आधुनिक चिकित्सा प्रणाली पूरी तरह से व्यवसायिक हो गयी है, किन्तु हमारी पुरानी चिकित्सा पद्धतियां यूनानी व आयुर्वेदिक आज भी निःस्वार्थ भाव से मानव सेवा में तल्लीन हैं।

प्रमुख सचिव ने कहा कि यूनानी चिकित्सा पद्धति को और अधिक आधुनिक बनाये जाने की आवश्यकता है। लोगों में इस चिकित्सा के प्रति अभी भी विश्वास है। इसलिए नये-नये अविष्कारों को अपना कर यूनानी चिकित्सा को और अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जनमानस के लिए यूनानी चिकित्सा पद्धति अधिक अफोर्डेबल है, इससे गरीब व्यक्ति इसका लाभ आसानी से ले सकते हैं। इस पद्धति के डाक्टर गांव-गांव में भी उपलब्ध होने चाहिए। इस हेतु सरकार शीघ्र ही प्रदेश में जहां-जहां डाक्टरों के पद रिक्त हैं, वहां तैनानी करेगी। 

इस अवसर पर प्रो0 खान मसूद अहमद, कुलपति, ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय, ने बतौर मुख्य अतिथि अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जब ला-इलाज बीमारियों का इलाज इलोपैथी में सम्भव नही होता, तब लोग यूनानी एवं आयुर्वेदिक जैसी प्राचीन चिकित्सा पद्धति की ओर रूख करते हैं। उन्होंने कहा कि इस चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों को जागरूक करने की भी जरूरत है। 

सेमीनार में कोलकाता से आये 115 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पद्म भूषण हकीम, सैय्यद मोहम्मद शरफुद्दीन कादरी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। उन्होने कहा कि सन् 1935 से वह लोगों का इलाज यूनानी चिकित्सा पद्धति से कर रहेे हंै, जो बिल्कुल मुफ्त होता है। उन्होंने वहां मौजूद हकीमों काआह्वान किया कि ईश्वर ने जो हमे नियामती बख्शी है, उसका उपयोग हमे जनमानस के कल्याण हेतु निस्वार्थ भाव से करना चाहिए। लोगों का उपचार पूर्णतया निःशुल्क होना चाहिए तभी यह सार्थक सिद्ध होगा। 

कार्यक्रम के दौरान डा0 सिकन्दर हयात, निदेशक यूनानी एवं प्राचार्य राजकीय तकमील उत्तिब कालेज ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह चिकित्सालय एशिया का यूनानी विधा का प्राचीनत्म एवं अग्रणी कालेज है। उन्हांेने कहा कि इसकी स्थापना सन् 1902 में हुई थी। उन्होंने ‘‘इलाज बित् तदबीर‘‘ विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके माध्यम से विभिन्न उपायों एवं विधियों द्वारा रोगों का निवारण किया जाता है, जिसमें औषधियों का कम से कम प्रयोग होता है। 

श्री सिकन्दर हयात ने कहा कि इन विधियों में कपिंग, लीचिंग(जांेक लगाना), फसद(रक्त मोक्षण), तकमीद(सिकाई), दलक(मसाज), कै(उल्टी), हम्माम (टर्किश बाॅथ), एवं इसहाल (दस्त लाना) आदि सम्मिलित हैं। इस विधि द्वारा अनेक जटिल रोगों जैसे गठिया, स्पानडीलाईटिस, उच्च रक्तचाप, अवसाद, त्वचा रोग एवं विभिन्न स्त्री रोगों का निवारण किया जाता है। उन्हांेने कहा कि इलाज बित् तदबीर की विभिन्न विधियों द्वारा प्राप्त हो रहे चिकित्सीय लाभ को वर्तमान समय की वैज्ञानिक अपेक्षाओं के अनुरूप, वैज्ञानिक आधार प्रदान करने हेतु सेमीनार का आयोजन किया गया है। 

सेमीनार में देश के कोने-कोने से आये यूनानी विधा के बुद्धजीवी एवं शोधकर्ता यथा-श्री मुमताज अहमद खां, सचिव राज्य वित्त आयोग, डा0 मोहम्मद अशफाक, लखनऊ, डा0 गुलाम नबी खान, जयपुर, हकीम सैय्यद अहमद खान, डा0 तौफीक अहमद, नई दिल्ली, डा0 वसीम अहमद आजमी, डा0 एहसान उल्लाह, डा0 अब्दूल कुद्दूस, डा0 अहमद वशीर अलवी, डा0 इरफान नजफ अलीमी, डा0 सलमान खालिद, डा0 मुईद अहमद, डा0 खावर नवाब तथा हकीम साहब हुसैन को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।