भारत में कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू बाल श्रम से लेकर बालिकाओं की तस्करी तक पर रोक लगाने जैसे बच्चियों से जुड़े तमाम मुद्दे काफी चुनौतीपूर्ण हैं जिन पर सभी जिम्मेदार पक्षों के निरंतर प्रयास करने की जरूरत है। दूसरे अन्य अधिकारों, मसलन पोषण, विकास, संरक्षण और भागीदार का अधिकार आदि, की तरह ही किसी लड़की के लिए शिक्षा का अधिकार अब भी एक महत्वपूर्ण और काफी कठिन चुनौती जान पड़ता है।

क्राई-चाइल्ड राइट्स एंड यू में निदेशक (पाॅलिसी, रिसर्च एंड एडवोकेसी) कोमल गनोत्रा का कहना है, ‘भारत में अब लड़कियों को शिक्षित करने की मानसिकता में बदलाव आ रहा है। दूरदराज के गांवों में भी कई अभिभावक अपनी बेटियों को स्कूल भेजना चाहते हैं। हमें माध्यमिक और उच्चस्तर की शिक्षा, किफायत और शिक्षा तक लड़कियों की आसान पहुंच की मांग को पूरा करने के लिए संसाधनों में बड़ा इजाफा करने की जरूरत है।’

पिछले कुछ वर्षों  में प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर स्कूलों में नाम दर्ज करान के मामले में महत्वपूर्ण सुधार देखे गए हैं। हालांकि, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर ऐसा नहीं देखा जा रहा है। वास्तविक नामांकन, जो सही तरीके से स्कूल जाने वाली लड़कियों के प्रतिशत के आधार पर मापा जाता है, प्राथमिक स्तर पर 89 है जबकि उच्च माध्यमिक शिक्षा तक जाते-जाते यह गिरकर 32 प्रतिशत पर आ जाता है। (स्रोतः यू-डीएसई 2014-15)। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) 6 से 14 साल के बच्चों के लिए प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर तक की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है। हालांकि, 14 साल के बच्चों से ऊपर के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा के अभाव में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा ही हालत अच्छी नहीं है। लड़कियों के सालाना स्कूल छोड़ने का औसत प्राथमिक स्तर पर 4.14 प्रतिशत से लेकर माध्यमिक स्तर पर 17.8 प्रतिषत तक है।