लखनऊ: उत्तर प्रदेश के नगर विकास तथा अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद आज़म खां ने कहा कि प्रोफेसर महमूद इलाही की साहित्यिक सेवाओं के अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि उन्होंने अपना सारा जीवन उर्दू की तरक्की के लिए समर्पित कर दिया था। प्रोफेसर इलाही की अदबी खिदमात को भुलाया नहीं जा सकता है।

श्री खां आज यहां अपने सरकारी निवास पर डाॅ0 सलीम अहमद और डाॅ0 कुदसिया बानो के संयुक्त प्रयासों से संकलित प्रोफेसर महमूद इलाही के विभिन्न उर्दू प्रकाशनों के प्राक्कथन, व्यंगात्मक स्तम्भ तथा उनकी शायरी से सम्बन्धित पुस्तक ‘रश्हात’ का विमोचन करने के बाद अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उर्दू जैसी महत्वपूर्ण भाषा को और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए वर्तमान राज्य सरकार गम्भीरता से प्रयास कर रही है। 

अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ने कहा कि प्रोफेसर महमूद इलाही ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरूआत शायरी से की थी। लेकिन उनका अस्ल मैदान शोध और समालोचना था। उनके शिष्यों में कई बड़े व्यक्तित्व आज भी उर्दू अदब की सेवा में व्यस्त हैं। 

श्री खां ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि आज मुझे प्रोफेसर महमूद इलाही जैसी हस्ती के लेखों के संकलन का लोकार्पण करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। उसके लिए मैं दिल की गहराइयों से ‘रश्हात’ प्रकाशित करने वालों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं। 

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उर्दू मासिक पत्रिका ‘नया दौर’ के सम्पादक डाॅ0 वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के दौरान उन्हें प्रोफेसर महमूद इलाही को करीब से समझने का अवसर प्राप्त हुआ। उर्दू विभाग में अक्सर उनसे उपयोगी जानकारियां प्राप्त होती थीं और वे समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन करते रहते थे।

इस अवसर पर पुस्तक के संकलनकर्ता डाॅ0 सलीम अहमद ने ‘रश्हात’ की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राफेसर महमूद इलाही उनके उस्ताद रहे हैं। अपनी पत्नी डाॅ0 कुदसिया बानो के साथ उन्होंने प्रोफेसर इलाही की विभिन्न पुस्तकों पर लिखे गए शोधात्मक प्राक्कथन को तलाश करने और उनका संकलन करके पुस्तक का रूप दिया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह पुस्तक प्रोफेसर इलाही पर शोध करने वालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

डाॅ0 कुदसिया बानो ने अपने पिता प्रोफेसर महमूद इलाही के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे जितनी मोहब्बत के साथ हम लोगों से पेश आते थे उतना ही प्रेम भाव वे अपने शिष्यों के प्रति भी दर्शाते थे। उन्होंने कभी अपने बच्चों और शागिर्दाें में अन्तर नहीं रखा।