हाल के सालों में फ़ारसी के मशहूर शायर और सूफ़ी दिग्गज जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी की लोकप्रियता अमरीका में इतनी बढ़ी है कि कविता प्रेमियों के बीच वो सबसे मशहूर कवि माने जा रहे हैं. रूमी का जन्म 1207 में ताजिकिस्तान के एक गांव में हुआ था. उनके जन्म के 800 से ज़्यादा साल बाद भी अमरीका में उनकी रूबाईयों और ग़ज़लों की किताबों की लाखों प्रतियां बिक रही हैं.

दुनिया भर में तो उनके करोड़ों प्रशंसकों की संख्या है ही. रूमी की जीवनी लिख रहे ब्रैड गूच कहते हैं, “रूमी का सभी संस्कृतियों पर असर दिखता है.” गूच ने रूमी की जीवनी पर काम करने के लिए उन तमाम मुल्कों की यात्रा की है, जो किसी ना किसी रूप में रूमी से जुड़े रहे. गूच कहते हैं, “रूमी का जीवन 2500 मील लंबे इलाके में फैला हुआ है. रूमी का जन्म ताजिकिस्तान के वख़्श गांव में हुआ. इसके बाद वे उज्बेकिस्तान में समरकंद, फिर ईरान और सीरिया गए. रूमी ने युवावस्था में सीरिया (शाम) के दमिश्क और एलेप्पो में अपनी पढ़ाई पूरी की.” इसके बाद उन्होंने जीवन के 50 सालों तक तुर्की के कोन्या को अपना ठिकाना बनाया और वहीं रूमी का निधन हुआ था.

रूमी के मक़बरे पर हर साल 17 दिसंबर को उनके प्रशंसकों का जमावड़ा लगता है. उनकी पुण्यतिथि पर दरवेशी परंपरा के इस आयोजन में दुनिया भर से रूमी प्रशंसक पहुंचते हैं. रूमी के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव 1244 में आया जब वे सूफ़ी संत शम्स तबरेज़ी से मिले. गूच बताते हैं, “तब रूमी 37 साल के थे और अपने पिता और दादा की तरह वे एक मुस्लिम धार्मिक गुरू और विद्धान थे.” गूच कहते हैं, “रूमी और शम्स में तीन साल तक बेहतरीन दोस्ती रही. दोनों के बीच ये रिश्ता प्रेम का था या फिर मुरशिद-चेले (गुरू-शिष्य) का था, ये स्पष्ट नहीं हो पाया.” लेकिन इस सोहबत ने रूमी को सूफ़ियाना रंग में रंग लिया.

तीन साल बाद शम्स तबरेज़ी अचानक ग़ायब हो गए. रूमी सूफ़ी बन गए. कहा जाता है कि शायद शम्स की हत्या रूमी के किसी बेटे ने कर दी हो, जो अपने पिता और शम्स की दोस्ती से ईष्या करने लगा हो. इसके बाद रूमी पूरी तरह शायरी में डूब गए.

गूच बताते हैं, “उनकी लगभग सभी रचनाएँ 37 से 67 साल की उम्र में लिखी गईं. उन्होंने शम्स, पैगंबर मोहम्मद और अल्लाह के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने वाले करीब 3000 गीत लिखे. इसके अलावा उन्होंने 2000 रूबाईयां भी लिखीं. रूबाई चार पंक्तियों वाला दोहा होता है. साथ ही उन्होंने छह खंडों वाले अध्यात्मिक महाकाव्य मसनवी की रचना भी की.”

जीवन के इन तीन दशकों में रूमी ने शायरी, संगीत और नृत्य को धार्मिक परंपराओं से जोड़ने का काम किया. गूच कहते हैं, “रूमी जब अध्यात्म में डूबे होते थे या फिर शायरी बोल रहे होते, तो झूमते रहते थे.” उनकी मृत्यु के बाद उनके इसी अंदाज़ को लोगों ने अध्यात्मिक नृत्य के तौर पर अपनाया. रूमी ने अपनी एक ग़ज़ल में लिखा है, “मैं पहले प्रार्थना-सजदा सुनाता था. अब मैं धुन, शायरी और गीत सुनाता हूं.” उनकी मौत के सैकड़ों साल बाद रूमी की शायरी सुनाई जाती है, गाई जाती है, इसे संगीत में सजाया जाता है.

ये शायरी संगीत, फ़िल्म, यूट्यूब वीडियो और ट्वीट्स की दुनिया के लिए प्रेरणा स्रोत साबित हो रही है. क्या वजह है कि रूमी की रूबाईयां आज भी लोकप्रिय हैं? गूच कहते हैं, “रूमी प्रेम और उल्लास के कवि थे. उनकी रचनाएं शम्स के वियोग, प्रेम और विधाता से संबंधित उनके अनुभव और मृत्यु का सामना करते हुए उनके अनुभवों से निकली हैं. रूमी का संदेश सीधे संवाद करता है. एक बार मैंने एक बेहतरीन संदेश देखा, जो रूमी की रचना की एक पंक्ति थी- सही और ग़लत करने के विचार से परे, एक जगह होती है, मैं तुमसे वहीं मिलूंगा.”

नारोपा यूनिवर्सिटी के जैक कैरोएक स्कूल ऑफ डिसइम्बॉडिड पोएटिक्स विभाग की सह-संस्थापक और कवि एने वाल्डमान कहती हैं, “जब हम सूफ़ी परंपरा, परम आनंद और भक्ति भाव के अलावा शायरी की ताक़त को समझने का प्रयास करते हैं तो रूमी काफी रहस्यमयी और विचारोत्तेजक शायर के तौर पर सामने आते हैं.”

काव्यशास्त्र की प्रोफेसर एने वाल्डमान कहती हैं, “समलैंगिक परंपरा को भी उनसे बढ़ावा मिला. सैफ़ो से लेकर वॉल्ट व्हिट्मैन तक, वे परमानंद की तलाश करने वाली परंपरा में बने रहे.” अमरीका में नेशनल लाइब्रेरी सीरीज में रूमी को भी जगह मिली है. इस प्रोजेक्ट की सह प्रायोजक पोएट्स हाउस की कार्यकारी निदेशक ली ब्रीक्केटी कहती हैं, “समय, जगह और संस्कृति के लिहाज से रूमी की रूबाईयां आज भी जीवंत लगती हैं.” ब्रीक्केटी कहती हैं, “उनकी रचनाएं हमें अपनी उस खोज को समझने में मदद करती हैं, जो प्रेम और परमआनंद के भाव से जुड़ी है.” ब्रीक्केटी रूमी की रचनाओं की तुलना सौंदर्य और प्रेम की गूंज के लिहाज से शेक्सपीयर से करती हैं.

कोलमैन बार्क्स ने रूमी की रचनाओं का अनुवाद किया है. इन रचनाओं की लोकप्रियता ने ही रूमी की शायरी को अमरीका में सबसे ज्यादा बिकने वाली शायरी बना दिया. वे कहते हैं, “रूमी की कल्पनाओं में ताज़गी है. उन्हें पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि वे कहीं हमारे अंदर से आ रही हैं. उनमें गज़ब का ह्यूमर भी है. उनकी रचनाओं में चंचलता के बीच ही ज्ञान की झलक भी मिलती है.” 1976 में कवि रॉबर्ट ब्लाय ने बार्क्स को रूमी की रचनाओं का वह अनुवाद दिया जो केंब्रिज यूनिवर्सिटी के एजे अरबेरी ने किया था. ब्लाय ने बार्क्स से कहा था, “इन कविताओं को इनके पिंजरे से रिहा करने की जरूरत है.” इसके बाद बार्क्स ने उस अकादमिक अनुवाद को अमरीकी शैली की आमफहम अंग्रेजी में बदल डाला. इसके बाद 33 सालों में बार्क्स ने 22 खंडों में रूमी की रचनाओं का अनुवाद किया.

इनमें द इंसेशिएल रूमी, एन ईयर विद रूमी, रूमी: द बिग रेड बुक और रूमीस फादर्स स्पिरिच्यूयल डायरी, द ड्राउनड बुक शामिल हैं. इनका प्रकाशन हार्परवन ने किया है. इन किताबों की 20 लाख से ज़्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं और उनका 23 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है.

बार्क्स रूमी की इस लोकप्रियता के बारे में कहते हैं, “मेरे ख़्याल से दुनिया भर में रूमी को लेकर एक आंदोलन जैसा चल रहा है, जो सभी धर्मों में दिख रहा है. इसके पीछे सांप्रदायिक हिंसा को खत्म कर, धर्म को धर्म से अलग करने वाली दीवारों को हटाने की भावना है. ऐसा कहा जाता है कि 1273 में रूमी को दफ़न करने के समय सभी धर्मों के लोग शामिल हुए थे, क्योंकि वे हर किसी की आस्था को मज़बूत करने में कामयाब हुए थे. रूमी के लेखन में आज भी यही अहम तत्व है.”

रुटर्जस यूनिवर्सिटी में मध्यकालीन सूफीवाद के विद्धान जावेद मोजादेदी कहते हैं, “रूमी फ़ारसी कवियों में प्रयोगधर्मी थे और सूफ़ी दिग्गज थे. उनकी रूबाईयों में रहस्य की गहराई भी है और एक तरह की बोल्डनेस भी है, इसी वजह से वो आज इतने लोकप्रिय हैं.”

मोजादेदी के मुताबिक रूमी की रचनाओं में सबसे पहली ख़ास बात तो ये है कि वे पाठकों से सीधा संवाद करती हैं. इसके अलावा रूमी की रचनाओं में पाठकों को कुछ सीख देने की प्रबल इच्छा भी अभिव्यक्त होती है.

रूमी की तीसरी खास बात है उनकी कल्पनाशीलता है. मोजादेदी के मुताबिक चौथी बात ” सूफ़ी परंपरा तो यह रही है कि प्रेम मिलन के अप्राप्य होने और प्रेमिका के ठुकरा देने के दर्द पर ज़ोर दिया जाए. लेकिन रूमी मिलन को एक उत्सव की तरह मनाते हैं.”

मोजादेदी ने रूमी की सबसे बेहतरीन रचना मसनवी के छह खंडों में से तीन खंडों का अनुवाद भी किया है. रूमी की मसनवी एक ही शायर के लिखे हुए 26 हज़ार अशार की सबसे लंबी आध्यात्मिक काव्य रचना है. मोजादेदी की नज़र में इस्लामी दुनिया में रूमी की मसनवी क़ुरान के बाद सबसे प्रभावी रचना है.