राजभवन ने लोक आयुक्त पद नियुक्ति की फाइल चौथी बार लौटाई

राजभवन और राज्य सरकार के बीच लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर टकराव बढ़ गया है। राज्यपाल राम नाईक ने दो दिन के परीक्षण के बाद मंगलवार को चौथी बार लोकायुक्त की नियुक्ति का फाइल सरकार को लौटा दी है।

राजभवन के सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल ने परीक्षण के बाद पाया कि लोकायुक्त के चयन के लिए निर्धारित कानूनी प्रक्रिया का राज्य सरकार ने पालन नहीं किया है। राज्यपाल ने कहा कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री, राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की कमेटी की किसी एक नाम या पैनल के नामों पर सहमति होनी चाहिए। लेकिन राज्य सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है।

राज्य सरकार ने तीनों की कमेटी की एक भी बैठक नहीं की है। राज्य सरकार ने लोकायुक्त के चयन के लिए कैबिनेट के फैसले का हवाला दिया है, जबकि राज्यपाल कैबिनेट के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। वैसे भी लोकायुक्त के चयन से कैबिनेट का कोई मतलब नहीं है। इसके लिए कमेटी के सदस्यों की सहमति जरूरी है।

लोकायुक्त की नियुक्ति में राज्य सरकार और राजभवन के बीच टकराव की सबसे बड़ी वजह यह भी है कि राज्य सरकार हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस रवींद्र सिंह यादव के नाम को ही बार-बार नियुक्ति के लिए आगे बढ़ाती है। जबकि जस्टिस रवींद्र सिंह यादव के नाम को लेकर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चंद्रचूड़ उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए अपनी आपत्ति दर्ज करा चुके हैं।

वे यह भी कह चुके हैं कि लोकायुक्त पद पर चयन के लिए हाईकोर्ट के तीन-चार रिटायर जजों का पैनल बनाकर भेजा जाए, लेकिन राज्य सरकार ने यह भी नहीं किया है। वह रवींद्र सिंह को ही लोकायुक्त बनाने पर अड़ी है और राज्यपाल बार-बार कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं होने का तर्क देकर फाइल वापस कर देते हैं। अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार आगे क्या रुख अपनाती है।