लखनऊ: उत्तर प्रदेश दंत चिकित्सा एवं उपचार में इस्तेमाल किये जाने वाले अन्य उपकरणों के कम लागत में निर्माण के प्रमुख केन्द्र के रूप में तेजी से उभर रहा है। श्रमिकों तथा तकनीशियनों सहित प्रशिक्षित श्रमशक्ति की बेहतर उपलब्धता इसका मुख्य कारण है। शीर्ष उद्योग मण्डल द एसोसिएटेड चैम्बर्स आॅफ काॅमर्स एण्ड इण्डस्ट्री आॅफ इण्डिया (एसोचैम) के एक ताजा अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है।

एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी. एस. रावत ने आज लखनऊ में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उद्योग मण्डल द्वारा किये गये ‘इंडियन मेडिकल डिवाइसेज इण्डस्ट्री: द वे अहेड’ विषयक अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा ‘‘उत्तर प्रदेश वर्ष 2020 तक चिकित्सा उपकरण निर्माण के मामले में मुख्य केन्द्र के रूप में उभर सकता है, बशर्ते राज्य सरकार इस उद्योग को कर रियायत के रूप में प्रोत्साहन पैकेज उपलब्ध कराये।’’

श्री रावत ने कहा ‘‘वर्तमान में देश के चिकित्सा उपकरण उद्योग पर नजर डालें तो यह मुख्य रूप से साजोसामान के आयात पर निर्भर करता है। यह इसी से जाहिर होता है कि चिकित्सा उपकरण बाजार में करीब 75 प्रतिशत हिस्सा आयातित औजारों का होता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के पास खुद को इस क्षेत्र में उभारने का बेहतरीन अवसर है। यह प्रदेश अपने यहां ग्रीनफील्ड चिकित्सा उपकरण पार्क स्थापित करके राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये घरेलू उत्पादन क्षमताओं का विकास कर सकता है।’’

एसोचैम के अध्ययन के अनुसार उत्तर प्रदेश में चिकित्सा एवं दंतरोग रोगपचार के उपकरण निर्माण की 33 फैक्ट्रियां हैं, जबकि पूरे देश में ऐसे कुल 316 कारखाने हैं। इस तरह कुल कारखानों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश की भागीदारी 10 प्रतिशत से ज्यादा है और इस मामले में वह गुजरात (18 फीसद) के बाद दूसरे स्थान पर है।

देश में संचालित हो रही चिकित्सा उपकरण इकाइयों द्वारा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध कराये जाने के मामले में उत्तर प्रदेश क्रमशः 12 प्रतिशत तथा 25 फीसद की हिस्सेदारी रखता है। इस मामले में भी वह दूसरी पायदान पर है।

एसोचैम के अध्ययन के मुताबिक ‘‘उत्तर प्रदेश में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र का कारोबार 568 करोड़ रुपये से ज्यादा है जबकि पूरे देश में इस क्षेत्र का कारोबार 5300 करोड़ रुपये है। इस प्रकार यह राज्य चिकित्सा उपकरण उत्पादन क्षेत्र के कुल कारोबार में 11 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। इस मामले में वह कर्नाटक (25 प्रतिशत) तथा हरियाणा (22 फीसद) के बाद तीसरे स्थान पर है।’’

एसोचैम के अध्ययन में सरकार को चिकित्सा उपकरण निर्माण के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य बनाने का सुझाव दिया गया है। चूंकि चिकित्सा एवं डायग्नोस्टिक क्षेत्र में बहुत तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है इसलिये देश में चिकित्सा उपकरणों तथा उससे जुड़े साजोसामान के एक विशाल एवं सम्भावनापूर्ण बाजार का निर्माण हो रहा है।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि चिकित्सा उपकरण निर्माण का क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में घरेलू निर्माण क्षमता बढ़ाने के लिये बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और सहयोगात्मक प्रबन्धन आवश्यक है।