सत्यव्रत त्रिपाठी

 देश की जनता पूर्ववर्ती कांग्रेस के एक दशक के भ्रष्टाचार एवं मंहगाई  से परेशान होकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा तथा इसकी सहयोगी पार्टियों को ऐतिहासिक समर्थन दिया। नरेंद्र मोदी की सरकार को विरासत में यूपीए सरकार द्वारा कमजोर अर्थव्यवस्था मिली थी। पूर्व आर्थिक सलाहकार के मुताबिक यूपीए सरकार के शासनकाल के दौरान १२ तिमाहियों में लगातार जीडीपी घटी थी एवं २४ तिमाहियों में मुद्रा स्फीति बढ़ी थी  । यूपीए के पिछले दो सालों के दौरान कुल पूंजीनिर्माण का भी पतन हुआ था एवं कई वर्षों में पहली बार इसमें वित्तीय घाटा एवं सरकार तथा निवेशकों के बीच विश्वसनीयता में कमी के कारण निवेश में कमी हुई थी। अकेले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में पिछले तीन सालों में निवेशकों को ६ लाख ८० हजार करोड़ रूपये का घाटा हुआ था। वर्षों के घोटालों एवं भ्रष्टाचार के कारण यहां तक कि साहसी निवेशकों ने निवेश से किनारा कर लिया था। पिछले १२ महीनों में अर्थव्यवस्था में दृढ़ता से सुधार हुआ है। सरकार को वर्षों के अपव्यय एवं कुशासन को सुधारना पड़ा है जिसने चीजों को और चुनौतीपूर्ण बना दिया हैं। वर्षों के वित्तीय घाटे ने अर्थव्यवस्था को और विकृत बना दिया है एवं आगामी पीढ़ी के लिए कर्ज बढ़ गया है। मोदी सरकार को निवेश चक्र को पुनर्जीवित करने वित्तीय समेकन एवं व्यय समीकरण को दुरूस्त करना होगा। मोदी सरकार का पहला साल कठिन परिस्थितियों में अर्थव्यवस्था को सुधारने एवं आर्थिक वृद्धि दर को १० प्रतिशत बढ़ाने के लिए पहला कदम है। पिछले दशक में यूपीए सरकार ने बड़े आधारभूत मुद्दों को अनदेखी की थी तथा सरल उपायों से वृद्धिदर को बढ़ाने का प्रयास किया था।

26 मई को मोदी सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूर्ण होने जा रहा है। इस एक वर्ष में देश के समक्ष ऐसे कई मौके आए जब हर देशवासी का मस्तक गर्व से ऊंचा हो गया। जैसे , हिंसाग्रस्त यमन से भारतियों समेत विदेशी नागरिकों को सकुशल वापस लाना, भूकंप की पीड़ा झेलरहे नेपाल को पडोसी की हैसियत के तहत दिल खोल कर मदद करना, विदेश नीति के तहत पडोसी देशों से दोस्ती और सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखना, विकसित देशों के समक्ष भारत की छवि मजबूत करना आदि।जनधन योजना एवं 12 रूपये में बीमा जैसी योजनायें सरकार ने चलायी है जो की भाजपा के मूल विचार अन्तोदय को साकार करती दिख रही है । राजनीतिक लिहाज से देखें तो भाजपा इस दौरान विश्व की सबसे बड़ी पॉलिटिकल पार्टी बनने में कामयाब रही वहीं दिल्ली के सदमे को छोड़ अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बिना खोए – ज़्यादा पाया है। अब जबकि मोदी सरकार का एक वर्ष पूर्ण हो रहा है, सरकार ने इस दौरान किए जाने वाले कार्यक्रम का प्‍लान जारी किया है। इसके तहत देशभर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्‍य मंत्री १०० रैलियां करेंगे। वहीं जमीनी स्‍तर पर लोगों तक पहुंचने की तैयारी में भाजपा २६ मई से एक जून तक सप्ताह भर चलने वाले ‘जन कल्याण पर्व’ का आयोजन करेगी। इस दौरान मोदी सरकार के एक वर्ष के ‘अच्छे दिनों’ का जनता के बीच ब्यौरा दिया जाएगा। ‘जन कल्याण पर्व’ में मंत्री, पार्टी सांसद और वरिष्ठ पदाधिकारी देशभर में जाकर सरकार की विभिन्न नीतियों और गरीबों एवं किसानों के लिए उठाए गए कदमों को प्रस्तुत करेंगे। इस दौरान सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि जाति और धर्म का भेदभाव किए बिना समाज के हर वर्ग तक पहुंचना उसका लक्ष्य है।

हमारे देश में संसद सत्रों का बेबजह ह्रास बड़ा तकलीफ देय होता था किन्तु हाल ही में समाप्त हुए बजट सत्र में शुरुआती गलतियों के बाद मोदी सरकार कामयाब रही। इस बजट सत्र के दोनों सदनों से रिकॉर्ड 24 विधेयक पारित कराने में सफलता के साथ-साथ पिछले पांच-छह वर्षो में सबसे ज्यादा काम का रिकॉर्ड भी बना। हालांकि सदन के सुचारू रूप से चलने का एक कारण विपक्ष का साथ भी था मगर देखा जाए तो यह मोदी सरकार के नियंत्रण और विनम्र निमंत्रण के चलते ही संभव हुआ। इस बजट सत्र में सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि रही बांग्लादेश के साथ सीमा समझौता- जिसे दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से पारित किया। आर्थिक रफ्तार की दिशा में सरकार कई अहम विधेयक पारित कराने में सफल रही जबकि सत्र के अंतिम दिन काला धन का विधेयक भी पारित हो गया। इसके साथ ही जीएसटी और भूमि अधिग्रहण बिल को अगले सत्र में पारित कराने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। सरकार की उपलब्धि को इससे समझा जा सकता है कि पिछली मई से अब तक दोनों सदनों ने ४७ विधेयक पारित करवाए। साथ ही लोकसभा की ९० तो राज्यसभा की ८७ बैठकें हुईं। यह पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा हैं। लोकसभा के लगभग सात घंटे तो राज्यसभा के १८ घंटे से ज्यादा हंगामे की भेंट चढ़े। इसके बावजूद लोकसभा में ११७ फीसद तो राज्यसभा में १०१ फीसद ज्यादा काम हुआ। कांग्रे स की दृष्टि से देखा जाए तो सदन का यह सत्र उसके लिए भी अच्छा रहा। लंबी छुट्टी मनाकर लौटे कांग्रेस उपाध्यक्ष  राहुल गांधी इस दफा बजट सत्र में जितना दिखे, उतना पिछले एक दशक में कभी नहीं दिखे। सरकार इसे भी अपना सकारात्मक पक्ष मानकर जनता को प्रभावित करना चाहती है।

(लेखक इंटरनेशनल सोसिओ पोलिटिकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन नई दिल्ली में रिसर्च फेलो है )

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