श्रीनगर: फ़ायरब्रांड अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की गिरफ़्तारी ने जम्मू कश्मीर में तनाव का माहौल है। अलगाववादी संगठनों ने शनिवार को घाटी में बंद का आह्वान किया है, इसमें चरमपंथी समूह भी शामिल हैं। 

शुक्रवार सुबह मसर्रत आलम की गिरफ़्तारी के बाद से ही घाटी में प्रदर्शन हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों की अगुवाई करने से रोकने के लिए प्रशासन ने सैयद अली शाह गिलानी, यासीन मलिक, मीरवाइज़ फ़ारुक़ और अन्य अलगाववादी नेताओं के घरों के बाहर अर्धसैनिक बल और पुलिस बल तैनात कर दिए हैं। शुक्रवार को पुलिस ने गिलानी के त्राल मार्च को भी होने नहीं दिया था।  दक्षिण कश्मीर के त्राल में एक विवादित मुठभेड़ में दो युवाओं की मौत के बाद से तनाव है। 

शुक्रवार रात जारी किए एक बयान में 85 वर्षीय अलगवावादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने शनिवार को कश्मीर घाटी में पूर्ण बंद का आह्वान किया था। उन्होंने कहा, “दक्षिण कश्मीर के त्राल में सेना के हाथों युवाओं की हत्या, हुर्रियत नेताओं की अनुचित और अमानवीय गिरफ़्तारी, युवाओं पर लागातार होने वाली छापेमारी और भारतीय मीडिया में कश्मीर के बारे में इकतरफ़ा और भड़काऊ रिपोर्टिंग’ के ख़िलाफ बंद रखें।”

दो दिन पहले भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कड़े लहजे में जम्मू-कश्मीर सरकार से मसर्रत पर कार्रवाई करने के लिए कहा था, जिसके बाद मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने जल्दबाज़ी दिखाते हुए शुक्रवार सुबह मसर्रत को गिरफ़्तार कर लिया। आलम को चार साल जेल में बिताने के बाद हाल ही में रिहा किया गया था।  आलम की रिहाई पर पीडीपी की सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के अंदर ही हंगामा हुआ था। 

अलगाववादी नेता सैयद गिलानी की स्वागत रैली में पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी के बाद मसर्रत आलम को गिरफ़्तार कर लिया गया है। गिलानी लंबे समय तक दिल्ली में रहने के बाद कश्मीर घाटी लौटे हैं। 

इसी बीच भारतीय जनता पार्टी, जो पहली बार जम्मू-कश्मीर सरकार में शामिल है, कटरा में दो दिनों का कार्यकर्ता सम्मेलन कर रही है। बीजेपी नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह का कहना है कि, “सरकार राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगी। “

मसर्रत आलम 2010 में घाटी में प्रदर्शन आयोजित कर सुर्खियों में आए थे। मसर्रत आलम को सैयद अली शाह गिलानी के बाद अगला अलगाववादी नेता माना जा रहा है। 

2010 में ही सरकार ने मसर्रत आलम को दंगे फ़ैलाने के आरोपों में गिरफ़्तार कर लिया था। उस साल गर्मियों में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान पत्थरबाज़ी करने वालों पर पुलिस की कार्रवाई में सौ से ज़्यादा कश्मीरी युवा मारे गए थे।