व्यंग्यास्त्रम्: देवेश शास्त्री

संवत 71 के पूर्वार्द्ध के माधव मास में देश के ‘आम’ ने बौरेपन से उबर कर परिपक्वता का परिचय देते हुए खास को घूल चटाकर फलराज होने का परिचय दिया, और नमो-नमो का जाप करते हुए आम समर्पण भक्ति का परिचायक बना। अभी पूरा वर्ष भी नहीं बीता था 71 के हेमन्त में पतझड़ ने आम को ठूंठ बना दिया, पत्ते झड़ चुके थे। इन्द्रप्रस्थी उपवन में पतझड़ के बाद खास-ओ-आम के बौराने का दौर आया, तो केजर में केशर की भ्रमात्मक अनुभूति से आम का बौरपन जबरदस्त दिखाई दिया। बसंत-बहार में बेलेंटाइन ने आम के धोखे खास को वर लिया। अब ‘नव संवत्’ 2072 का प्रथम पखवाड़ा है और आम के बौराने के दृश्य के बीच केले (बनाना) की गति बनते देख वास्तविक प्रकृति के अनुपम वैज्ञानिक प्रभाव को परिभावित करने का मन हुआ। प्रस्तुत है, व्यंग्यास्त्र का तत्क्षण संधान – खास की तो बात क्या, आम भी बौरा गये।  

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मदनोत्सव (होली) की मस्ती का खुमार अभी उतरा ही था, कि चैत्रीय नवरात्र का उपवास रख स्वशक्ति प्रतिभार्चन अनुष्ठान शुरू हो गया। 

इन्द्रप्रस्थ के सियासी उपवन में होली के मौके भिन्न-भिन्न प्रजाति के बौराये आम परस्पर बेमौसम बरसात की तरह एक दूसरे पर रासायनिक कीचड़ की बौछार करते हुए हाथा-पाई पर उतर आये। ये दृश्य चल ही रहा था। 

शक्ति उपासना के दौरान काॅॅल आई – ‘‘आप आम की अग्रिम पंक्ति (एनसी) में हैं, अतः रामनवमी समारोह में पधारें।’’ मैने सोचा मैं आम नहीं, खास हूं, फिर आम की अग्रिम पंक्ति में कहां से आ गया? लगता है, मूल-प्रकृति (सत्यनिष्ठ) की प्रजाति के सूचीबद्ध खास-ओ-आम को अग्रिम पंक्ति में रखा गया होगा। 

एकाएक ख्याल आया कि सत्य-असत्य के महासंग्राम ‘‘रामलीला’’ का मंचन शारदीय नवरात्रि में होता है जब लोक-परंपरानुसार विजया दशमी के दिन सत्य के प्रतीक मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम असत्य के प्रतीक लंकाधिराज रावण का अंत कर रामराज्य की आधारशिला रखते हुए अवध रवाना होते आये हैं। मगर ये तो शरद ऋतु नहीं, और न ही शारदीय नवरात्र। ऋतुराज बसंत और चैत्रीय नवरात्र में रामलीला, वो भी आम-खास के बीच पूरा देश टकटकी लगाकर इस रामलीला का लुत्फ उठा रहा है। कोई नहीं समझ पा रहा कि सत्य स्वरूप राम किसे मानें और असत्य का प्रतीक रावण कौन है? 

जब फागुन-चैत्र में बर्फवारी, बेमौसम अतिवृष्टि, ओलावृष्टि होकर वर्षा-शरद ऋतु का भ्रम प्रकृति कर रही है, तो बसन्त में बौराये आम भी ऋतु परिवर्तन का शिकार होकर ओलों की चोट से झरकर कीचड़ बन गये, आम के बौर के बेमौसम बरसात में सड़कर बने कीचड़ में होली का अजीब नजारा दिखाई दे रहा है, जब इन्द्रप्रस्थ के सियासी उपवन में रामनवमी पर ‘‘भये प्रकट कृपाला, दीन दयाला…’’ के श्रद्धास्पद दृश्य की बजाय दशहरी आम की रामलीला में तलवारें खिंची हुई हैं।

-देवेश शास्त्री