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पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार का बदला देश के मुसलमानों से लेना चाहती है मोदी सरकार: मायावती

लखनऊ: नागरिकता क़ानून को असंवैधानिक और विभाजनकारी मानते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस क़ानून पर एकबार फिर असहमति जताई है| मायावती ने कहा जब सरकार अपने स्वार्थ में, अपने देश के संविधान को भी ताक पर रखकर किसी एक समुदाय व धर्म के लोगों की उपेक्षा करती है तथा उनके साथ भेदभाव आदि वाला वर्ताव करती है तब ऐसे हिंसक प्रदर्शन होते हैं| मायावती ने कहा, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार का बदला पाकिस्तान के मुसलमानों से लेना चाहिए न कि हिंदुस्तानी मुसलमानों से|

बसपा सुप्रीमो ने आज अपने बयान में कहा कि इस नये बने कानून में मुस्लिम समाज की पूरे तौर से उपेक्षा की गई है जिससे हमारी पार्टी कतई भी सहमत नहीं हैं| वर्तमान में बीजेपी की केन्द्र सरकार के इस कदम से हमें ऐसा लगता है जो लोगों की यह आमराय भी है कि यह (केन्द्र सरकार) सरकार पाकिस्तान में वहाँ हिन्दुओं के साथ की गई जुल्म-ज्यादती का बदला वर्तमान केन्द्र की बीजेपी सरकार यहाँ अपने आजाद भारत देश के मुसलमानों से लेना चाहती है जो कतई भी न्यायसंगत नहीं है तथा यह एक प्रकार से मानवता के विरुद्ध भी है। केन्द्र सरकार को यह बदला यहाँ देश के मुसलमानों से नहीं, बल्कि पाकिस्तान के मुसलमानों से ही लेना चाहिये और इस मामले में फिर हमारी पार्टी भी इनका पूरा-पूरा साथ देगी।

मायावती ने कहा कि अब यह सरकार इस कानून का विरोध करने वाले लोगों पर व खासकर सम्बन्धित समुदाय का जो पुलिस के ज़रिये इनका बड़े पैमाने पर उत्पीड़न आदि करवा रही है तो इसने अब सबको चिन्तित करके रख दिया है और यहाँ उ.प्र. में अलीगढ़ के बाद अब खासकर दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं के ऊपर कैम्पस में घुसकर केन्द्र सरकार की पुलिस द्वारा की गई जुल्म-ज्यादती का हर तरफ काफी ज्यादा विरोध हो रहा है जिसे अति-गम्भीरता से लेते हुये, इसका माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया है। हालांकि इस नये कानून को माननीय सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई है और हमें यह काफी उम्मीद भी है कि इस मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट भारतीय संविधान की गरिमा को किसी भी कीमत पर गिरने नहीं देगी।

मायावती ने कहा कि मैं केन्द्र सरकार से यह भी मांग करती हूँ कि वे इस विभाजनकारी व असंवैधानिक नागरिकता संशोधन कानून को वापिस ले ले, तो यह देश व संविधान के हित में सही होगा, वरना फिर इसके आगे चलकर काफी दुष्परिणाम भी आ सकते हैं और हो सकता है कि अगले लोकसभा आमचुनाव में इनकी भी हालत कहीं 1977 की तरह कांग्रेस पार्टी वाली ही अत्यन्त बुरी ना हो जाये

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