लखनऊ: सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ में फार्मास्युटिक्स एंड फार्माकोकाइनेटिक्स डिवीजन में पदस्थ सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट, डॉ प्रभात रंजन मिश्रा को नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस, भारत (एनएएसआई) का फेलो चुना गया है। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस, भारत (एनएएसआई) एक पंजीकृत वैज्ञानिक निकाय है, जो भारत की सबसे पुरानी विज्ञान अकादमी है, जिसे भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग तथ डीएसआईआर, भारत सरकार द्वारा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन के एक व्यावसायिक निकाय के रूप में मान्यता प्राप्त है। डॉ मिश्रा को यह सम्मान, 21-23 दिसंबर, 2019 के दौरान आईसीएआर-नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च मैनेजमेंट (एनएएआरएम), हैदराबाद में आयोजित किए जाने वाले “विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित उद्यमिता विकास” पर एनएएसआई की संगोष्ठी के 89 वें वार्षिक सत्र के दौरान प्रदान किया जाएगा।

टार्गेटेड नैनो-थेरेप्युटिक्स के क्षेत्र में उनके द्वारा किए अनुसंधान कार्य को मिली सराहना एवं सम्मान

डॉ मिश्रा ने बताया कि कैसे न्यूनतम विषाक्तता के साथ औषधि की उच्च गुणवत्ता को टार्गेटेड नैनो-थेरेप्युटिक्स विधि द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। उन्हें, लिगैंड-रिसेप्टर इंटरैक्शन, रिसेप्टर मिडिएटेड एंडोसाइटोसिस और एंडोसोमल पीएच संवेदनशीलता की कार्यप्रणाली को समझने एवं उसकी विवेचना करने के माध्यम से दवाओं की कम विषाक्तता के साथ उच्च चिकित्सीय सूचकांक या उपयोगिता प्राप्त करने के लिए टार्गेटेड नैनो-थेरेप्युटिक्स (लक्ष्य आधारित नैनो-चिकित्सा प्रणाली) हेतु उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए यह सम्मान प्राप्त हुआ है।

डॉ मिश्रा ने कैंसर, अस्थि स्वास्थ्य और परजीवी रोगों पर विशेष जोर देने के साथ दवाओं की बढ़ी हुई चिकित्सीय प्रभावशीलता को प्राप्त करने के लिए लक्षित नैनो-चिकित्सीय पर आधारित ट्रांसलेशनल रिसर्च (अनुवादकीय अनुसंधान) में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके रिसर्च को अनेक अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान शोध पत्रिकाओं (पियर रिव्यूड जर्नल्स) नें प्रकाशित कर मान्यता प्रदान की है एवं अनेक पेटेंट भी उनके नाम से दर्ज हैं।

डॉ मिश्रा को अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें डीबीटी, भारत सरकार द्वारा प्रदत्त टाटा इन्नोवेशन फ़ेलोशिप (2018-19), आईएनएसए-डीएफ़जी फ़ेलोशिप (2008), डीएसटी , भारत सरकार द्वारा प्रदत्त फास्ट ट्रैक यंग साइंटिस्ट अवार्ड आदि। वे जर्मनी के फ़्री यूनिवर्सिटी बर्लिन में अतिथि वैज्ञानिक भी रह चुके हैं।