नई दिल्ली: सरकार ने फैसला किया है कि अब पेट्रोल पंप कोई भी कंपनी खोल सकती है, भले ही वह तेल उत्पादन नहीं करती हो। केंद्रीय कैबिनेट ने फैसला किया है कि अब नॉन-ऑयल कंपनियों को भी पेट्रोल पंप खोलने की अनुमति होगी। तर्क दिया गया है कि इससे इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। लेकिन वास्तव में क्या इससे कोई स्पर्धा बढ़ पाएगी, अभी तक के अनुभव से ऐसा दिखाई नहीं देता है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कैबिनेट की बैठक के बाद पत्रकारों को बताया कि फ्यूल रिटेलिंग सेक्टर खोलने से इस क्षेत्र में निवेश और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।

मौजूदा नियम के मुताबिक फ्यूल रिटेलिंग का लाइसेंस पाने के लिए कंपनी को 2000 करोड़ रुपये हाइड्रोकार्बन यानी तेल की खेज, उत्पादन, रिफाइनिंग, पाइपलाइन अथवा लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) टर्मिनल विकसित करने में निवेश करने होते हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीईए) ने परिवहन ईंधन की मार्केटिंग की अनुमति देने के लि गाइडलाइन की समीक्षा करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

नए नियम के मुताबिक 250 करोड़ रुपये कारोबार वाली कंपनियां फ्यूल रिटेलिंग सेक्टर में प्रवेश कर सकती है बशर्ते वह पांच फीसदी पेट्रोल पंप ग्रामीण क्षेत्रों में खोलेंगी। इस समय ऑयल मार्केटिंग के अधिकांश हिस्से पर सरकारी तेल कंपनियों इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आइओसी), भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (एचपीसीएल) का कब्जा है। देश भर में करीब 65000 पेट्रोल पंप हैं। इनमें से अधिकांश इन कंपनियों के हैं।

रिलायंस इंडस्ट्रीज, नयारा एनर्जी (पूर्व में एस्सार ऑयल) और रॉयल डच शेल निजी कंपनियां हैं जिनकी ऑयल मार्केटिंग में बेहद सीमित उपस्थिति है। दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी का संचालन करने वाली रिलायंस के पास भी सिर्फ 1400 पेट्रोल पंप हैं।