नई दिल्ली: टेलीकॉम कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के विवाद पर कोर्ट ने दूरसंचार विभाग (डॉट) के पक्ष में फैसला दिया है। डॉट ने 15 कंपनियों पर 92,641 करोड़ रुपये की देनदारी निकाली थी। हालांकि कोर्ट का फैसला ऐसे समय आया है जब ज्यादातर कंपनियां बंद हो चुकी हैं। इसलिए सरकार को आधी रकम ही मिलने की उम्मीद है। एयरटेल को सबसे ज्यादा 21,682 करोड़ रुपये देने पड़ सकते हैं। कंपनियों को भी यह भुगतान ऐसे समय करना पड़ेगा जब यह सेक्टर सात लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा है। दूसरे, सरकार ने इसी वित्त वर्ष में 5जी के लिए स्पेक्ट्रम नीलामी की भी घोषणा की है।

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कंपनियों की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें डॉट द्वारा डिमांड की गई रकम पर पेनल्टी और ब्याज भी देना पड़ेगा। बेंच ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस मामले में अब और कोई सुनवाई नहीं होगी। कोर्ट यह भी तय करेगा कि कंपनियों को कब तक पैसे जमा करने हैं। बेंच में जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एस. रवींद्र भट भी हैं।

इस मामले की सुनवाई के दौरान जुलाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि भारती एयरटेल, वोडाफोन और एमटीएनएल-बीएसएनएल समेत टेलीकॉम कंपनियों पर लाइसेंस फीस के तौर पर 92,641.61 करोड़ रुपये बकाया हैं। डॉट की तरफ से दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि एयरटेल पर 21,682.13 करोड़, वोडाफोन पर 19,823.71 करोड़, रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 16,456.47 करोड़, बीएसएनएल पर 2,098.72 करोड़ और एमटीएनएल पर 2,537.48 करोड़ रुपये बतौर लाइसेंस फीस बकाया हैं।

नई टेलीकॉम नीति के अनुसार टेलीकॉम कंपनियों को अपने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) का कुछ हिस्सा सरकार को लाइसेंस फीस के रूप में देना पड़ता है। कंपनियों को जो स्पेक्ट्रम आवंटित हुए हैं, उसके लिए उन्हें स्पेक्ट्रम यूजेज चार्जेज (एसयूसी) भी देना पड़ता है। एजीआर का तीन फीसदी स्पेक्ट्रम चार्ज और आठ फीसदी लाइसेंस फीस देने का नियम है। टीडीसैट ने फैसला दिया था कि किराया, फिक्स्ड एसेट की बिक्री से होने वाला मुनाफा, डिविडेंड और ट्रेजरी इनकम को भी एजीआर में शामिल किया जाएगा। कंपनियां इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थीं। एजीआर की परिभाषा पर दूरसंचार विभाग और कंपनियों के बीच 1999-2000 से विवाद चल रहा है।

भारती एयरटेल ने एक बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले से कमजोर टेलीकॉम सेक्टर की स्थिति और खराब होगी। सरकार को इसके असर की समीक्षा करनी चाहिए और देखना चाहिए कि कंपनियों पर आर्थिक बोझ को कैसे कम किया जाए। इस फैसले से जो 15 पुरानी कंपनियां प्रभावित होंगी, उनमें से ज्यादातर ऑपरेशनल नहीं हैं। सिर्फ दो निजी टेलीकॉम कंपनियों पर इसका असर होगा।