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ऑयल मार्केटिंग कंपनी BPCL को बेचने की तैयारी में सरकार

नई दिल्ली: सरकार देश की दूसरी सबसे बड़ी सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. (बीपीसीएल) को विदेशी और निजी कंपनियों को बेचने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। हालांकि इसे बेचने के लिए सरकार को संसद से मंजूरी लेनी होगी। यह जानकारी अधिकारियों ने दी है।

अधिकारियों ने कहा कि सरकार घरेल फ्यूल रिटेलिंग कारोबार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से बीपीसीएल की 53.3 फीसदी हिस्सेदारी रणनीतिक भागीदार को बेचने पर विचार कर रही है। इस कदम से सरकार लंबे अरसे से सरकारी तेल कंपनियों के दबदबे वाले क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा तेज कर सकेगी।

बीपीसीएल का बाजार पूंजीकरण पिछले 27 सितंबर को करीब 2.02 लाख करोड़ रुपये था। अगर सरकार 26 फीसदी ही हिस्सेदारी बेचती है तो वह 26,500 करोड़ रुपये जुटाने में सफल हो जाएगी। इसके अलावा सरकार को बीपीसीएल का नियंत्रण देने और फ्यूल मार्केट में एंट्री का प्रीमियम करीब 5000-10000 करोड़ रुपये मिल जाएगा। हालांकि बीपीसीएल के निजीकरण के लिए सरकार को संसद की मंजूरी लेनी होगी चालू वित्त वर्ष के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य हासिल कर पाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2003 में फैसला दिया था कि बीपीसीएल और एचपीसीएल के निजीकरण के लिए संसद से कानून संशोधन करवाना होगा क्योंकि इन दोनों कंपनियों के राष्ट्रीयकरण कानून बनाकर किया गया था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इन दोनों कंपनियों के निजीकरण की योजना बनाई थी। एचपीसीएल में सरकार की 51.1 फीसदी हिस्सेदारी में से 34.1 फीसदी हिस्सेदारी रणनीतिक भागीदार को बेचने और नियंत्रण सौंपने की योजना सुप्रीम कोर्ट ने रोक दी थी। रिलायंस इंडस्ट्रीज लि., ब्रिटेन की ब्रिटिश पेट्रोलियम, कुवैत पेट्रोलियम, मलेशिया की पेट्रोनैस, शेल-सऊदी अरोमको की संयुक्त कंपनी और एस्सार ऑयल ने एचपीसीएल की हिस्सेदारी खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी।

अधिकारियों का कहना है कि बीपीसीएल विनिवेश के लिहाज से इस समय सबसे आकर्षक कंपनी है। सऊदी अरोमको से लेकर फ्रांस की कंपनी टोटल एसए भारतीय फ्यूल रिटेल मार्केट में प्रवेश पाने को इच्छुक हैं। उनके लिए बीपीसीएल अच्छा विकल्प बन सकता है। पहले बर्मा शेल रही बीपीसीएल का राष्ट्रीयकरण 1976 में संसद के एक कानून के जरिये किया गया था। बर्मा शेल 1920 के दशक में रॉयल डच शेल और बर्मा ऑयल कंपनी और एशियाटिक पेट्रोलियम (इंडिया) के संयुक्त उपक्रम के रूप में स्थापित की गई थी।

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