देश भर में अगस्त केे पहले सप्ताह को विश्व स्तनपान सप्ताह के रूप में मनाया जा रहा है, फिर भी देश में आज भी उन बच्चों के आंकड़े उपयुक्त नहीं हैं जिन्हें मां का दूध मिल पाता है। हालांकि देश में स्तनपान की प्रथाओं में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं, फिर भी पाया गया है कि जन्म लेने वाले 5 बच्चों में से सिर्फ 2 बच्चों को ही जन्म के पहले घण्टे के अंदर मां का दूध दिया जाता है। 2015-16 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (चैथे राउण्ड) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार तीन साल से कम उम्र के लगभग 60 फीसदी बच्चों को पहला टीकाकरण -कोलोस्ट्रम (मां का पहला दूध) नहीं दिया जाता। चिकित्सा की भाषा में कोलोस्ट्रम कहलाने वाला मां का पहला दूध बच्चे के लिए सबसे प्रभावी, प्राकृतिक रूप से उपलब्ध, सबसे किफ़ायती जीवनरक्षक पदार्थ है। ‘‘मां का दूध बच्चे में प्रतिरक्षी क्षमता (बीमारियों से लड़ने की ताकत) के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, ऐसे में बच्चे को मां का दूध देना अनिवार्य हो जाता है। जन्म के पहले 6 महीनों तक मां का दूध बच्चे की पोषण संबंधी सभी ज़रूरतों को पूरा करता है, यह प्रोटीन और उर्जा का सबसे अच्छा स्रोत है। इसलिए नवजात शिशु के समग्र विकास केे लिए पहले छह महीने तक सिर्फ मां का दूध देने की सलाह दी जाती है। हालांकि इस जानकारी का उतना प्रसार नहीं हुआ है, जितना कि होना चाहिए।’’ पूजा मारवाह, सीईओ, क्राई- चाइल्ड राईट्स एण्ड यू ने कहा। बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण पर किए गए सभी प्रमुख अध्ययन दर्शाते हैं कि नवजात शिशु को जन्म के पहले एक घण्टे केे अंदर मां का दूध-कोलोस्ट्रम ज़रूर देना चाहिए, यह नवजात शिशु में बीमारियों से लड़ने की ताकत पैदा करता है। छह महीने तक बच्चे को सिर्फ मां का दूध ही देना चाहिए, इसके बाद पूरक आहार शुरू करना चाहिए। हालांकि कम से कम 2 साल तक स्तनपान भी जारी रखना चाहिए। कुल मिलाकर, सभी स्तरों पर किए गए प्रयासों के चलते स्तनपान के बारे में जागरुकता बढ़ी है और पिछले दशक में कई राज्यों में स्तनपान की प्रथाओं में सुधार आया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 (2005-06) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (2015-16) के आंकड़ों की तुलना करें तो पता चलता है कि जन्म के पहले एक घण्टे में बच्चे को मां का दूध देने की प्रतिशतता राष्ट्रीय स्तर पर 18.2 अंक बढ़ गई है। यह दर 20005-06 में 23.4 फीसदी थी जो 2015-16 में 41.6 फीसदी हो गई है। साथ ही एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पहले छह महीने में भी बच्चे को सिर्फ मां का दूध देने के आंकड़े भी बेहतर हुए हैं। 20015-06 में 46 फीसदी से अधिक बच्चों को पहले छह महीने तक सिर्फ मां का दूध दिया जाता है, 2015-16 में यह संख्या बढ़कर 54.9 फीसदी हो गई है।
हालांकि स्तनपान के साथ बच्चों को अर्द्धठोस और ठोस पूरक आहार दिया जाना भी चिंताजनक तथ्य है। 2005-06 में 6-8 महीने के 52 फीसदी से अधिक बच्चों को स्तनपान के साथ पूरक आहार दिया जाता था, यह आंकड़ा 2015-16 में कम होकर 42.7 फीसदी हो गया है। वहीं ग्रामीण शिशुओं की तुलना में ऐसे शहरी बच्चों की संख्या कम है जिन्हें पहले छह महीने तक सिर्फ मां का दूध ही दिया जाता है। आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में 56 फीसदी बच्चों को पहले छह महीनों तक सिर्फ मां का दूध दिया जाता है, जबकि शहरों में यह संख्या 52 फीसदी है।

साथ ही बच्चों केे स्वास्थ्य के अन्य संकेतकों की बात करें तो देश में संस्थागत जन्म दर तकरीबन 80 फीसदी (NFHS-4) के आंकड़े तक पहुंच गई है, लेकिन स्तनपान के आंकड़े इन रूझानों के समकक्ष नहीं हैं। इससे साफ है कि संस्थागत जन्म को चुनने वाली महिलाएं भी स्तनपान के बारे में पूरी तरह से जागरुक नहीं हैं।

‘‘क्राई के हस्तक्षेप के 19 राज्यों में क्राई की विभिन्न पहलों जैसे ‘1000 दिवस अभियान’ (एक प्रोग्राम जिसे बच्चों के जन्म के पहले तीन सालों के दौरान उनके स्वास्थ्य और पोषण पर निगरानी रखने केे लिए पेश किया गया) और ‘पोषण दिवस’ के अनुभव तथा 786 आईसीडीएस केन्द्रों, 988 किशोर लड़कियों और 1518 बच्चों के समूह पर किए गए अध्ययन दर्शाते हैं कि इस दिशा में सामाजिक मानसिकता में सकारात्मक बदलाव आया है, किंतु अभी भी इस पर बहुत काम करना बाकी है। हम किशोरियों के लिए पोषण के महत्व पर भी काम कर रहे हैं।’’ पूजा मारवाह ने बताया।

उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि हर घर तक पहुंचना समय की मांग है, हमें लोगों को इस बारे में जागरुक बनाना होगा कि जन्म के पहले घण्टे के अंदर बच्चे को स्तनपान कराना शुरू करें, इसके बाद पहले छह महीनों तक सिर्फ मां का दूध ही दें। छह महीने बाद पूरक आहार शुरू करें, लेकिन 2 साल की उम्र तक स्तनपान भी जारी रखें।

अध्ययन के परिणाम दर्शाते हैं कि जिन बच्चों को पहले छह महीने तक सिर्फ मां का दूध दिया जाता है उनमें डायरिया और न्युमोनिया जैसी बीमारियों की संभावना कम होती है। सतत विकास लक्ष्य-3 के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए पूजा ने 2030 तक पांच साल से कम उम्र के बच्चों मृत्यु दर कम करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की। इन दो लक्ष्यों में शामिल है- हर देश में 1000 बच्चों के जन्म में नवजात शिशुओं की मृत्यु के आंकड़े को 12 तक लाना; और हर देश में 1000 बच्चों के जन्म पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु के आंकड़े को कम कर 25 तक लाना।