नई दिल्ली: यूपी में हुए लोकसभा चुनावों के लिए किया गया सपा और बसपा का गठबंधन सफल नहीं हुआ. इस वजह से बसपा सुप्रीमो मायावती ने अखिलेश यादव से दूरी बना ली और गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया. अब अखिलेश ने इस मामले में बयान दिया है. उन्होंने कहा, 'यह एक प्रयोग था जो फेल हुआ और इसने हमारी कमजोरियों को उजागर किया.' उन्होंने कहा कि भविष्य के लिए वह अपनी पार्टी के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे. अखिलेश ने कहा, 'मैं विज्ञान का छात्र रहा हूं, वहां प्रयोग होते हैं और कई बार प्रयोग फेल हो जाते हैं लेकिन आप तब यह महसूस करते हैं कि कमी कहां थी. लेकिन मैं आज भी कहूंगा, जो मैंने गठबंधन करते समय भी कहा था, मायावती जी का सम्मान मेरा सम्मान है.'

अखिलेश ने कहा, 'जहां तक ​​गठबंधन का सवाल है, अगर हमें उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में अकेले लड़ना है, तो मैं अपनी पार्टी के नेताओं से भविष्य की रणनीति के लिए सलाह लूंगा.' बता दें कि उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव को लेकर सपा-बसपा गठबंधन टूट गया है. लोकसभा चुनाव में बड़े जोर-शोर से बने इस गठबंधन में आरएलडी भी शामिल थी. जिस दिन गठबंधन हुआ था उस दिन ऐसा लग रहा था कि अब यह महागठबंधन उत्तर प्रदेश की राजनीति ही नहीं पूर देश में असर डालेगा और बीएसपी सुप्रीमो मायावती औरसपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की बातों से ऐसा लग रहा था कि दोनों के बीच अच्छा समन्वय है और लोकसभा चुनाव में दोनों मिलकर पीएम मोदी के विजय रथ को रोक देंगे.

दरअसल यह आत्मविश्वास गोरखपुर, फूलपुर और कैराना उपचुनाव में हुई जीत के बाद का था. यहां तक मायावती ने कांग्रेस को भी इस गठबंधन में शामिल नहीं होने दिया. उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस का कोई वजूद नहीं है और बीएसपी को हर बार कांग्रेस के साथ गठबंधन की वजह से नुकसान झेलना पड़ जाता है. जबकि अखिलेश यादव कांग्रेस को शामिल करने के पक्ष में थे. लेकिन बीएसपी सुप्रीमो के एक भी न चली. महागठबंधन वोट प्रतिशत के मामले में कागजों पर बीजेपी से मजबूत जरूर था लेकिन जमीन पर बीजेपी बहुत ज्यादा मजबूत थी और उसके कार्यकर्ताओं ने पूरी ताकत लगा रखी जिसका नतीजा सबके सामने है. लेकिन सवाल इस बात का है कि क्या महागठबंधन की नींव इतनी कमजोर थी कि एक हार भी बर्दाश्त नहीं कर पाया और धड़ाम से गिरता नजर आ रहा है.