रमेशचंद्र गुप्ता

जब बात से बात नही बनती तो जूतो से बनती है ,जब सामने वाला आपकी क़ायदे की या बेकायदे की बात सुनने,समझने को तैयार ना हो तो यह काम अपने जूतों को सौंप दीजिये ,जूते आपकी बात ,आपसे बेहतर तरीक़े से समझा सकते है !

जूते बेहतर सहज ,सरल ,बोधगम्य भाषा जानते हैं ,जब वो बोलते है तो सामने वाला अतिशय विनम्र और मानवीय हो उठता है ,फ़ौरन समझ जाता है ,जूतो की कही को सब सुनते भी हैं और मानते भी हैं !
,जूतों की भाषा ,अन्तराष्ट्रीय भाषा है , अमेरिका को ही देख लीजिये ,जूतो की पूरी दुकान सजाये बैठा है ,जिसके सर का जो नाप हो ,उसके लिये वैसै जूते हाज़िर हैं ,उसकी तरफ़ से हमेशा उसके जूते बात करते है ,और पूरी दुनिया उसकी कही पूरी इज़्ज़त से सुनती है ,हमारे विधायको और सांसदों भी जानते है कि उनकी बातों से उनके जूते ज़्यादा वज़नदार हैं ,समझदार जनप्रतिनिधि बात करने मे अपना क़ीमती वक्त बरबाद नही करते ,संसद हो या विधानसभा ,वे सीधे जूता उतारते है और सामने वाला उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता है ,ऐसा करना उनकी मजबूरी भी है ,हमारे अख़बार और टीवी चैनल भी गंभीर बहसों मे जुटे सांसदों को तवज्जो नही देते ,वे जानते है जनता को जूते ही पसंद है ,इसलिये वे भी उनकी ही शक्ल दिखाते है जिसने सामने वाले को जुतियाने मे पीएचडी कर रखी हो !

अब कोई समझदार करे भी तो क्या करे ,हमारे यहाँ वही चल सकता है जिसे जूते चलाना आता हो ,यह नियम प्रशासन ,नौकरशाही सहित जीवन के हर क्षेत्र में लागू है ,क़ायदे से काम करने वाले ,मृदुभाषी बंदे हमारे यहाँ बेचारे माने जाते हैं , यदि आप जूते चलाना नही जानते तो आपकी औक़ात कभी भी फटे पुराने जूतों से ज़्यादा नही होगी ,धूल खाते रहेंगे आप ,उपेक्षित से धरे रहेगें किसी शू रैक में ,कोई भी इठलाती ,गर्वीली चप्पल कभी आँख उठा कर भी नही देखेगी आपकी तरफ़ ,बस रोते रहिये और पिटते रहिये ,आप मारे भूख के भी मर सकते है ,आपको पता होना चाहिये ,हमारे देश में दाल जूतों मे बँटा करती है ,जाहिर है जूता चलाने मे माहिर लोग ही सारी दाल के मालिक होते हैं !

,जूतो मे भी वर्गभेद है ,जूते चाँदी के हो तो और बेहतर होते है ,ये हों आपके पास तो जूते खाने के इच्छुक आपके सामने लाईन लगाये खड़े रहेंगे ,मनुहार करेंगे आपकी ,आप जब चाहे सामने वाले की चमकती टाल पर जूते बजा कर उसे अनुग्रहित कर सकते हैं !

इसलिये मेरी यह बात गाँठ मे बाँध लीजिये ,दुनिया की कोई भी चढ़ाई मज़बूत जूतो के बिना नही चढ़ी जा सकती ,ना ही कोई भी लड़ाई, करारे जूतो के बिना जीती जा सकती है ! आदमी की नही उसके जूतो की इज़्ज़त होती है ,इसलिये चुप ही बने रहिये और अपने जूतो को बोलने दीजिये ।