लखनऊ: उत्तर प्रदेश में रहने वाले दिनेश कुमार की जिंदगी का हर दिन चुनौती से भरा है। वजह है उनके तीन छोटे-छोटे बच्चों का एमपीएस-1 बीमारी से पीड़ित होना। दिनेश के तीन बच्चे रंजना(12), कल्पना (9) और विवेक (6) एक दुर्लभ आनुवांशिक विकार ‘एमपीएस-1‘ से पीड़ित हैं। यह एक ऐसा रोग है जिसमें इंसान का शरीर में एक विशिष्ट प्रकार के इंजाइम का बनना बंद हो जाता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की स्थिति धीरे-धीरे बेहद खराब होती जाती है और उसे अत्यंत दर्द का सामना करना पड़ता है। यही नहीं, अधिकतर मरीज इसके इलाज का खर्च नहीं उठा पाते हैं। दिनेश जोकि पेशे से एक दर्ज़ी हैं, पिछले कई सालों से यह सुनिश्चित करने के लिए कई लड़ाईयां लड़ रहे हैं कि उनके बच्चों को उचित उपचार मिल सके और वे एक सामान्य जीवन जी सकें।

दरअसल, जिंदगी के साथ दिनेश का संघर्ष तब शुरू हुआ जब उसकी पहली बेटी रंजना को हड्डी एवं जोड़ से संबंधित कुछ परेशानी होना आरंभ हुई। दिनेश अपने परिवार के साथ लखनऊ के पास एक छोटे से कस्बे इस्माईलपुर में रहता है। उसने अपनी बेटी को कई डॉक्टरों को दिखाया पर 5-6 सालों तक उसकी इस हालत का असली कारण पता नहीं चल पाया। इसी दौरान, उनके तीन और बच्चे हुये, जिनमें से दो में रंजना के जैसे ही लक्षण दिखने लगे। आखिरकार उन्हें लखनऊ में संजय गांधी पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआइ) भेजा गया और वहां डॉक्टरों ने बताया कि तीनों बच्चों को एमपीएस-1 नामक बीमारी है।

एसजीपीजीआइ के डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि एमपीएस का इलाज एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरैपी (ईआरटी) से किया जा सकता है और यह मरीज की जिंदगी में सकारात्मक असर लाने में काफी असरदार साबित हुई है।
दुर्भाग्यवश, दिनेश और उसका परिवार इतना सक्षम नहीं था कि वह अपने तीनों बच्चों के इलाज का खर्च खुद से उठा सके। और तब उन्होंने एलएसडी के लिए एक पेशेंट ग्रुप लाइसोसोमल स्टोरेज डिस्ऑर्डर्स सोसायटी (एलएसडीएसएस) से संपर्क साधा, सोसायटी ने स्थानीय विधायक को एक पत्र भेजकर उनकी मदद की। इस पत्र में दिनेश के बच्चों के इलाज के लिए फंड्स मुहैया कराने का अनुरोध किया गया था। इसके बाद, यह पत्र आगे मुख्यमंत्री (सीएम) कार्यालय को भेज दिया गया।

दिनेश कुमार ने बताया कि ‘‘शुरू में हमें पिछली सरकार में मुख्यमंत्री कोष से 9 लाख रूपये की धनराशि मिली और अब मौजूदा सरकार के अंतर्गत हमें बच्चों के उपचार के लिए 15 लाख रूपये (हर बच्चे के लिए 5 लाख रूपये) आवंटित किये गये हैं। हम उत्तर प्रदेश सरकार के बेहद आभारी हैं जिन्होंने हमें यह धनराशि देने की पेशकश की। यह दिखाता है कि सरकार हमारी हालत को लेकर संवेदनशील है और उसने इस बीमारी की गंभीरता को पहचाना है। हालांकि, इस धनराशि से सिर्फ तीन हफ्ते तक ही इलाज कराया जा सकता है और अब यह समय पूरा हो चुका है।‘‘

दिनेश ने कहा, ‘‘मुझे पक्का भरोसा है कि इस इलाज से मेरे बच्चों को फायदा होगा और इसे देखते हुये, हम उत्तरप्रदेश सरकार से यह सहयोग तब तक जारी रखने की गुजारिश करते हैं जब तक कि दुर्लभ बीमारियों के उपचार के लिए राष्ट्रीय नीति लागू नहीं हो जाती। मेरी सबसे बड़ी बेटी की हालत बहुत नाजुक है, यहां तक कि वह खुद से कोई काम नहीं कर पा रही है। मैं नहीं चाहता कि मेरे बाकी दोनों बच्चों को भी इस मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़े। इसलिए, सरकार का हस्तक्षेप ही हमारे लिए एकमात्र उम्मीद की किरण है।‘‘

बच्चों का इलाज कर रहे डॉ. कौशिक मंडल (मेडिकल जेनेटिसिस्ट, एसजीपीजीआइ) ने कहा, ‘‘इस बीमारी के कारण मरीज अपने रोजमर्रा के सामान्य काम भी नहीं कर पाता है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, मरीज की हालत और भी खराब होती जाती है क्योंकि इस बीमारी से पूरे शरीर को नुकसान पहुंचता है। उसके ज्वाइंट्स, हड्डियां, दिल और रेस्पिरेटरी सिस्टम प्रभावित होने लगते हैं। ईआरटी को यदि सही समय पर कराया जाये तो इसकी मदद से मरीज एक सामान्य जीवन जी सकता है। इसलिए, मरीज को समय पर उपचार दिलाना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है।‘‘